तूतीकोरिन को देखते हुए भद्दे मज़ाक जैसा लगता है “हम फिट तो इंडिया फिट” कैंपेन!
इस देश में दो घटनाएं एक साथ हो रही हैं. उन दोनों घटनाओं में गहरा विरोधाभास है. पहली घटना तमिलनाडु के तूतुकुडी की है. इस शहर को तूतीकोरिन के नाम से भी जाना जाता है. तूतीकोरिन समंदर किनारे बसा औद्योगिक शहर है और इसका मौजूदा नाम तूतुकुडी है. वहां वेदांता ग्रुप के स्टरलाइट कॉपर प्लांट की वजह से पानी विषैला हो गया है. हवा जहरीली हो गई है. साफ पानी और साफ हवा के लिए लोग आंदोलन कर रहे हैं. उन पर 22 और 23 मई को पुलिस ने गोलीबारी की और उसमें अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है और 100 से ज्यादा घायल हैं. इस प्रशासनिक कत्ल की एक तस्वीर सबने देखी है. वैन पर बैठा पुलिसकर्मी आम लोगों पर निशाना लगा कर गोली चला रहा है. जैसे कोई शिकार पर निकला हो. पुलिस प्रशासन का तर्क है कि लोग उग्र हो गए थे और उन्होंने पथराव कर दिया था. कई गाड़ियों को आग लगा दी थी. इसलिए गोलियां चलानी पड़ीं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई के पलानीस्वामी कहते हैं कि पुलिस ने कुछ गलत नहीं किया. गोलियां बचाव में चलाई गई हैं. उनका यह तर्क गले नहीं उतरता. फिर भी कुछ पलों के लिए उनके तर्क पर यकीन कर भी लें तो भी यह सवाल लाजिमी है कि आखिर यह नौबत आयी क्यों? स्थिति इतनी बिगड़ी तो उसके लिए क्या प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? अगर जिम्मेदारी बनती है तो पलानीस्वामी मुख्यमंत्री के पद पर क्या कर रहे हैं? उनकी निकम्मी सरकार को सत्ता में बने रहने का क्या हक है?
मंत्री चला रहे हैं “हम फिट तो इंडिया फिट” कैंपेन
दूसरी घटना सोशल मीडिया पर घट रही है. यह एक सोशल नेटवर्क कैंपेन है और इसे केंद्र सरकार में मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने शुरू किया है. कैंपेन का नाम है “हम फिट तो इंडिया फिट”. इसमें नेता, खिलाड़ी, अभिनेता, कारोबारी और उनके चाहने वाले कसरत कर के 30-40 सेकेंड का वीडियो बना रहे हैं. अपने सोशल नेटवर्क पेज पर वह वीडियो साझा कर रहे हैं और दूसरों को अपना फिटनेस फंडा बताने की चुनौती दे रहे हैं. कैंपेन इतना आगे बढ़ गया है कि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे दी है और प्रधानमंत्री ने जवाब में फिटनेस मंत्र साझा करने का वादा किया है.
जनता मांग रही है जीने का हक
कितनी अजीब बात है. एक तरफ एक औद्योगिक शहर और उसके आस-पास के लाखों लोग हैं जो स्वस्थ जिंदगी के लिए जरुरी साफ पानी और साफ हवा मांग रहे हैं. एक-दो दिन से नहीं बल्कि 20 साल से यह मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी बात कोई नहीं सुनता। आवाज़ उठाने के जुर्म में सीने पर गोलियां दाग दी जाती हैं। राज्य की सरकारें लोगों का साथ देने की बजाय कारोबारियों के हाथों की कठपुतली बनी हुई हैं. दूसरी तरफ वातानुकूलित कमरे में शूट-बूट पहने कुछ लोग फिटनेस मंत्र शेयर करते हैं और देखते ही देखते यह वायरल हो जाता है. चंद ही दिनों में बड़े-बड़े लोग इस कैंपेन से जुड़ जाते हैं. नेता, अभिनेता, खिलाड़ी, कारोबारी सब एक के बाद एक वीडियो बना कर साझा करने लगते हैं. कहते नजर आते हैं कि “हम फिट तो इंडिया फिट”!
दूसरे कार्यक्रम की सार्थकता के समर्थन में लाख दलीलें दी जा सकती हैं, पर जब इसे पहली घटना के आइने के सामने खड़ा कर देते हैं, तो हमारे देश, समाज और सरकारों का विरोधाभासी चेहरा ही नज़र आता है। बल्कि यूं कहें कि एक वीभत्स मजाक जैसा लगने लगता है।
हो सकता है कि आपको मेरी बात बुरी लगे. अगर आप किसी नेता या किसी पार्टी के घनघोर समर्थक हैं तो यह मुमकिन है कि आपकी भावना आहत हो. अगर किसी बड़े सेलिब्रिटी के फैन हैं तो फिर मेरे शब्द आपको अपमानजनक लग सकते हैं. अगर ऐसा है तो मैं इसके लिए आपसे माफी मांग लेता हूं. लेकिन चंद पलों के लिए ठहर कर सोचिए. खुद से, अपने नेताओं से और पसंदीदा सेलिब्रिटी से पूछिए कि क्या बगैर साफ पानी और साफ हवा के कोई स्वस्थ रह सकता है? नहीं न! तो फिर यह बुनियादी सवाल हमारे नेताओं के किसी कैंपेन का हिस्सा क्यों नहीं बनता है? क्यों साफ पानी और हवा के सवाल पर हमारे नेता चुप रह जाते हैं और इसके लिए आंदोलन कर रहे लोगों की कोई सुनवाई क्यों नहीं होती? क्यों उन लोगों को इस बुनियादी अधिकार के लिए बार-बार सड़क पर उतरना पड़ता है या फिर अदालतों में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है? संविधान के मुताबिक पर्यावरण की रक्षा करना और उसे बेहतर बनाना लोगों का मौलिक कर्तव्य है. उस कर्तव्य को निभाने के लिए जब लोग सामने आते हैं तो फिर उन पर लाठियां-गोलियां क्यों बरसाई जाती हैं? यह सवाल भी पूछिए कि क्या संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी हाशिए पर मौजूद लोगों की है या सरकार और संवैधानिक संस्थाओं की है?
प्रदूषण से 25,00,000 लोगों की मौत
यह सभी जरूरी प्रश्न हैं, लेकिन हमारे नेताओँ को इन सवालों का जवाब देने की फुरसत नहीं है. अगर होती तो आज स्थिति इतनी भयावह नहीं होती. स्थिति कितनी भयावह है इसका अंदाजा केवल इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि हमारे देश में हर साल 25 लाख लोग प्रदूषण की वजह से मर जाते हैं. इस संख्या को यहीं रुक कर 4-5 बार फिर से पढ़िए. प्रदूषण से हर साल मरने वालों की संख्या 25 नहीं, बल्कि 25,00,000 है. यह बहुत बड़ी संख्या है. 1947 के विभाजन में मारे गए लोगों की कुल संख्या से कहीं अधिक है. और ऐसा हर साल हो रहा है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है. सांस की बीमारियां भयानक स्तर तक बढ़ गई हैं. अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़े के कैंसर जैसी बीमारियां बहुत तेजी से लोगों को मौत की ओर ढकेल रही हैं.
तूतीकोरिन में “हर घर में कोई न कोई बीमार है”
तूतीकोरिन में स्थिति और भयावह है. पिछले महीने स्क्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक तूतीकोरिन के “हर घर में कोई न कोई बीमार है” और सबसे खराब स्थिति बच्चों की है. स्क्रोल की इस रिपोर्ट से कुछ दिन पहले यानी 1 अप्रैल को द न्यूज मिनट में एक खबर छपी थी. उसमें तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की तरफ से 12 साल पहले किए गए रिसर्च का जिक्र है. उस रिसर्च में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज इंडिया लिमिटेड के प्लांट के पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वालों के सेहत की जांच की गई और व्यापक रिपोर्ट तैयार की गई. शोध के नतीजे चौंकाने वाले थे. जिस इलाके में विरोध प्रदर्शन हो रहा है वहां भू-जल में आइरन की मात्रा तय मानकों से 17 से 20 गुना ज्यादा थी. 2006-07 में करीब 14 प्रतिशत लोग सांस की किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे हैं. दूसरे इलाकों की तुलना में कान, नाक और गले की बीमारियां यहां बहुत ज्यादा लोगों में हैं. संदर्भ के लिए कृपया यहां क्लिक करके यह रिपोर्ट देखें. यह स्थिति 12 साल पहले की है.
आम जनता को पीने का पानी नहीं, कंपनियों को करोड़ों लीटर पानी
तूतुकुडी यानी तूतीकोरिन तमिलनाडु का सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है. इसका समुद्री तट कंपनियों के विषैले कचरे के डंपिंग यार्ड में तब्दील हो चुका है. फैक्टियों से निकलने वाले जहरीले पानी की वजह से समंदर ही नहीं भू-जल भी विषैला हो गया है. इलाके के लोग इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार स्टरलाइट को मानते हैं. अभी इसके कॉपर प्लांट की उत्पादन क्षमता 4.38 लाख टन प्रति वर्ष है. इसके लिए 1.21 करोड़ लीटर पानी की हर रोज जरुरत पड़ती है. इसमें से 78 लाख लीटर ताजा पानी इस्तेमाल होता है. अब वेदांता समूह की योजना इसे बढ़ा कर 8 लाख टन करने की है. यह खबर यहां के लोगों तक पहुंची तो वो डर गए. उन्हें अपना अस्तित्व संकट में नजर आया. क्योंकि हालात पहले से ही बुरे थे. तूतीकोरिन समुद्र किनारे होने के बावजूद पानी के गंभीर संकट से गुजर रहा है. पिछले साल स्थिति बहुत बिगड़ गई थी. जहां लोग एक-एक बाल्टी पानी के लिए तरस रहे थे वहीं थामिराबरानी नदी पर बने बांध से शहर के लिए सप्लाई होने वाले पानी में से ज्यादातर (9.2 करोड़ लीटर प्रति दिन) गैरकानूनी तरीके से फैक्ट्रियों को सप्लाई कर दिया जाता था. संदर्भ के लिए कृपया यहां क्लिक करके यह रिपोर्ट देखें.
इसलिए प्लांट की क्षमता बढ़ाने की खबर से परेशान लोगों ने फरवरी में आंदोलन शुरू कर दिया. मतलब विरोध प्रदर्शन चार महीने से हो रहे हैं और इसी विरोध के बीच केंद्र सरकार के मंत्री पी राधाकृष्णन ने 17 अप्रैल को कहा कि स्टरलाइट कंपनी ने उन्हें रिश्वत देकर खरीदने की कोशिश की थी. संदर्भ के लिए यह रिपोर्ट पढ़ें.
वेदांता समूह के भ्रष्टाचार का इससे बड़ा गवाह कौन हो सकता है? लेकिन कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. हालात बिगड़ने दिए गए. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि जानबूझ कर हिंसा फैलाई गई, ताकि पुलिस लोगों पर गोलियां बरसा सके. खौफ पैदा कर सके. संदर्भ के लिए यह रिपोर्ट देखें.
अब इस पूरे घटनाक्रम के बीच “हम फिट तो इंडिया फिट” कैंपेन पर गौर कीजिए और मेरे उस सवाल का जवाब दीजिए कि क्या जनता को साफ हवा और पानी से महरूम करके फिटनेस की अधकचरी परिभाषा लागू करके देश को फिट रखा जा सकता है? क्या फिटनेस की ऐसी अधकचरी परिभाषाओं के तहत चलाए जाने वाले ऐसे कैंपेन विरोधाभासी नहीं लगते? क्या अपने नेताओं और सेलिब्रिटीज़ से यह सवाल नहीं पूछेंगे कि पर्यावरण को लेकर इस आले दर्जे की संवेदनहीनता के साथ कोई देश कैसे फिट रह सकता है? एक तरफ देश को बीमार बनाए रखने की साज़िश, दूसरी तरफ फिटनेस मंत्रा? यह देश की जनता से किया जाने वाला भद्दा मज़ाक नहीं तो और क्या है?
डिस्क्लेमर :- इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। ज़रूरी नहीं कि बहसलाइव.कॉम भी इन विचारों से सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावों या आपत्तियों के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं।
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