क्या कुमार विश्वास के अमानतुल्ला हैं कपिल मिश्रा?
केजरी भाई पर दो करोड़ लेने का आरोप लगाने वाले कपिल मिश्रा आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। हर सवाल का दनादन जवाब दे रहे हैं। अलग-अलग चैनलों पर उनके कई इंटरव्यू देखे। हर चैनल के एंकर ने घुमा-फिराकर उनसे तरह-तरह के सवाल पूछे, लपेटने की भरपूर कोशिश की, पर एक बार भी वे लपटाए नहीं।
दूसरी तरफ़, केजरी भाई चुप हैं। संत्येंद्र जैन भी ख़ामोश हैं। मनीष सिसौदिया खिसियानी हंसी हंसते हुए एक-दो वाक्य बोल देते हैं- सब मज़ाक है टाइप। आम आदमी पार्टी के जो भी नेता टीवी पर आ रहे हैं, वे सब पैनल डिस्कशन में हंसते हैं, दांत दिखाते हैं और इस गंभीर आरोप को हंसी में उड़ाने की कोशिश करते हैं।
ऐसा लगता है, जैसे आम आदमी पार्टी ने अपने तमाम लोगों को यह हिदायत दी है कि किसी भी टीवी डिस्कशन में अपन इस आरोप को गंभीरता से लेते नहीं दिखेंगे, हंसते-हंसते उड़ा देंगे, जैसे एक बच्चे ने अपने चच्चे के बारे में तुतली जुबान में कुछ कह दिया है। बस इतना ही है। इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं।
इससे प्रथम दृष्टया यह प्रतीत हो रहा है कि अरविंद केजरीवाल पर लगे आरोप सच्चे हो सकते हैं, वरना केजरी भाई चुप रहने वाले आदमी नहीं हैं। बेगुनाह होना तो दूर, अगर उन्हें इतना भी भरोसा होता कि उनके गुनाह का कोई सबूत कपिल मिश्रा के पास नहीं है, तो अभी तक उन्होंने धुआं उड़ा दिया होता।
यानी केजरीवाल को इस बात का डर सता रहा है कि हो न हो, कपिल मिश्रा ने उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत बना लिया है। मुमकिन है, उन्हें अपना स्टिंग होने का डर सता रहा हो। अपनी ईमानदारी पर लोगों को यकीन दिलाने के लिए केजरीवाल स्वयं उनसे स्टिंग करने को कहते थे। तो क्या, कपिल मिश्रा ने उन्हीं की हिदायत पर अमल कर दिखाया है?
कुछ तो बात है। कपिल मिश्रा डंके की चोट पर कह रहे हैं कि एसीबी, सीबीआई सबको बताऊंगा। मेरा भी लाइ डिटेक्टर टेस्ट करा लो। केजरीवाल और सत्येंद्र जैन का भी करा लो। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। वे यह भी कह रहे हैं कि उन्हें मंत्रिपद से हटाया ही इसलिए गया है, क्योंकि उन्होंने इस घूसकांड पर केजरीवाल से पूछताछ करने का दुस्साहस किया।
पूरे घटनाक्रम के सिलसिलेवार विश्लेषण से ऐसा भी प्रतीत हो रहा है कि इसमें कुमार विश्वास की भी अहम भूमिका हो सकती है। मुमकिन है कि कुमार विश्वास ने मौका देखकर चौका मारा हो। उन्होंने सोचा होगा कि पार्टी तोड़ने या छोड़ने से बात नहीं बनेगी, बल्कि केजरीवाल को एक्सपोज़ करना होगा।
इसलिए जैसे केजरीवाल ने उनके ख़िलाफ़ अमानतुल्ला को आगे किया, उसी तरह कुमार विश्वास ने कपिल मिश्रा को आगे कर दिया। जैसे अमानतुल्ला कुमार विश्वास को बीजेपी का एजेंट बताते रहे और अरविंद केजरीवाल उन्हें अपना छोटा भाई बताते रहे। ठीक वैसे ही, कपिल मिश्रा अरविंद को घूसखोर बता रहे हैं और कुमार विश्वास कह रहे हैं कि मुझे ऐसे आरोप पर यकीन नहीं।
यानी कुमार विश्वास ने इस मुद्दे पर जो कुछ भी कहा है वह अरविंद केजरीवाल को क्लीन चिट देना नहीं, बल्कि उन्हीं के स्टाइल में राजनीति करके उन्हें यह बताना भी हो सकता है कि तुम सेर हो, तो हम भी सवा सेर हैं। ज़ाहिर सी बात है कि आम आदमी पार्टी में अगर केजरीवाल का किला ध्वस्त होता है, तो उनके साथ-साथ मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जैसे उनके सारे सिपहलसालार भी ध्वस्त हो जाएंगे।
ऐसी परिस्थिति में पार्टी की कमान कुमार विश्वास के ही हाथों में आएगी और कपिल मिश्रा उनके मनीष सिसोदिया बनेंगे। अगर ऐसा होता है, तो अरविंद केजरीवाल की वजह से पार्टी छोड़ने वाले या निकाले गए ऐसे नेता, जिन्हें कुमार विश्वास से समस्या न हो, वापस आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं।
और अगर ऐसा हुआ, तो माइनस केजरीवाल आम आदमी पार्टी की राजनीति एक बार फिर से आगे बढ़ सकती है। वरना केजरीवाल वाली आम आदमी पार्टी की राजनीति तो अब रसातल में ही जाती हुई दिख रही है। बहरहाल, इस पूरे प्रसंग की दशा और दिशा अब मुख्य रूप से इन दो बातों से तय होने वाली है-
एक- कपिल मिश्रा के आरोपों पर एसीबी और सीबीआई तथा अन्य जांच एजेंसियां क्या रुख़ अपनाती हैं।
दो- 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के मामले में चुनाव आयोग का फ़ैसला क्या आता है।
अगर 21 विधायकों के मामले में भी चुनाव आयोग का फ़ैसला अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ चला जाता है, तो कपिल मिश्रा ने उनके राजनीतिक ताबूत में जो पहली कील ठोकी है, उसके बगल में ही वह भी दूसरी कील की तरह ठुक जाएगी।