मोदी जी, आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने से आपका कद छोटा नहीं होगा, और बड़ा हो जाएगा!
देखिए, अगर बीजेपी आडवाणी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाती है, तो उन्हें नीतीश कुमार (जेडीयू) भी सपोर्ट करेंगे, मुलायम सिंह (सपा) भी करेंगे, अरविंद केजरीवाल (आआपा) भी करेंगे, एआईएडीएमके भी करेगी और थोड़ी ना-नुकुर के बाद ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस) भी करेंगी, क्योकि ममता बनर्जी के लिए कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ खड़ा होना इतना भी आसान नहीं है, अगर उम्मीदवार बंगाली न हो तो। और इस बार बंगाली उम्मीदवार होना संभव नहीं है, क्योंकि हार सुनिश्चित देखकर प्रणब मुखर्जी तो चुनाव लड़ने से रहे!
इसलिए बीजेपी के पास आडवाणी एक ऐसा नाम है, जिन्हें लेकर आम सहमति भले न बने, लेकिन विपक्ष का भी एक बड़ा हिस्सा एनडीए उम्मीदवार के साथ खड़ा हो जाएगा। कांग्रेस और लेफ्ट के कुछ साथी भले बाबरी विध्वंस मामले को लेकर ऊपरी तौर पर उनके नाम का विरोध करेंगे, लेकिन मुझे मिल रही रिपोर्ट के मुताबिक, भीतर ही भीतर वे भी चाहते हैं कि आडवाणी जी राष्ट्रपति बन जाएं।
दरअसल, कांग्रेस, लेफ्ट और तमाम विपक्षी नेता भी यह जानते हैं कि इस बार उनका उम्मीदवार राष्ट्रपति नहीं बन सकता, इसलिए वे भी ऐसा राष्ट्रपति चाहते हैं, जो नरेंद्र मोदी की सरकार पर ज़रूरत अनुसार थोड़ा-बहुत अंकुश भी रख सके। इस लिहाज से आडवाणी का नाम उन्हें सबसे उपयुक्त लगता है, क्योंकि वे न सिर्फ़ बीजेपी के सबसे बड़े नेता हैं, बल्कि मोदी और शाह समेत तमाम पार्टी नेता उन्हीं के बनाए हुए हैं और उनके लिए श्रद्धा और सम्मान का भाव भी रखते हैं।
हालांकि आडवाणी की यही ख़ूबी, जो विपक्षी नेताओं को लुभा रही है, बीजेपी के प्रमुख नेताओं के मन में हिचक भी पैदा कर रही है। उन्हें डर है कि अगर आडवाणी जी को राष्ट्रपति बना दिया, तो बीच-बीच में वे सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करते रहेंगे, जबकि इस धारणा में कोई दम नहीं है, क्योंकि एक तो राष्ट्रपति के पास ऐसे अधिक अधिकार हैं नहीं कि वे सरकार के लिए अधिक मुश्किलें खड़ी करें, दूसरे अपने ही विचार परिवार के अपने ही मानस-पुत्रों के लिए वे कोई मुसीबत क्यों खड़ी करेंगे? अगर 2013-14 में अपनी उपेक्षा को लेकर उनमें थोड़ी नाराज़गी भी रही हो, तो वह भी 2017 में उचित सम्मान पाकर दूर हो जाएगी।
कई लोग यह भी सोचते हैं कि आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने से प्रधानमंत्री मोदी का कद छोटा हो जाएगा, लेकिन यह भी एक भ्रांति ही है। राष्ट्रपति अपनी जगह और प्रधानमंत्री अपनी जगह होता है। दोनों की ज़िम्मेदारियां और भूमिकाएं अलग-अलग होती हैं। प्रधानमंत्री का कद तब छोटा होता है, जब वह बौना राष्ट्रपति बनवाता है। आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने से उन लोगों को जवाब मिल जाएगा, जो मोदी पर यह आरोप लगाते रहते हैं कि उनका दिल छोटा है और वे तानाशाह प्रवृत्ति के हैं।
संघ और बीजेपी के कई मित्र जिन्ना पर दिए एक विवादास्पद बयान के चलते भी आडवाणी की अक्सर आलोचना करते हैं, लेकिन आलोचना तक तो ठीक, इतने बड़े नेता को आप एक बयान के चलते हमेशा-हमेशा के लिए दुरदुराते नहीं रह सकते… और वह भी उस नेता को, जो भारतीय राजनीति में आपकी विचारधारा का सबसे बड़ा वाहक और उसे बुलंदियों पर पहुंचाने वाला रहा हो एवं जिसकी छत्रछाया में पल-बढ़कर ही आप सब आज ख़ुद को उस विचारधारा का पुरोधा मानने लगे हों।
इसलिए, राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम पर बीजेपी के मेरे दोस्त बेकार की इतनी माथापच्ची कर रहे हैं। सुषमा स्वराज, मोहन भागवत, सुमित्रा महाजन, वेंकैया नायडू… ये सब भी इस पद के लिए योग्य नाम हो सकते हैं, पर इन सबके पास अभी कम से कम 10-15 साल का करियर बाकी है, इसलिए उन्हें राष्ट्रपति बनने की हड़बड़ी नहीं होनी चाहिए। इसलिए, बीजेपी के पास आडवाणी से बड़ा, बेहतर और उपयुक्त कोई उम्मीदवार है नहीं।
हमारे बीजेपी के दोस्तों को शायद इस बात का भी इल्म नहीं है कि 2014 का चुनाव जीतने के लिए लोगों ने भले नरेंद्र मोदी के नाम का समर्थन किया, लेकिन बीजेपी के मतदाताओं के मन में आडवाणी के लिए सम्मान और कृतज्ञता का भाव कभी कम नहीं हुआ और आज भी वह बरकरार है। वे सभी इस बात पर एकमत हैं कि आडवाणी बीजेपी के पितृपुरुष हैं और उन्हें उनका उचित सम्मान अवश्य मिलना चाहिए।
मज़ेदार बात यह है कि हमारे नेशनल मीडिया के भाई-बंधु नगर निगमों के चुनाव तक के लिए भी सर्वे कराते रहते हैं, लेकिन देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद के चहेते उम्मीदवारों के बारे में लोगों का मन टटोलने की कोशिश कभी नहीं करते। अगर ऐसा कोई सर्वे किया जाए, तो एनडीए के संभावित उम्मीदवारों में आडवाणी जी को निस्संदेह सर्वाधिक लोगों का समर्थन प्राप्त होगा।
मेरा ख्याल है कि लोकतंत्र में जनभावनाओं का आदर किया जाना चाहिए और इसका अनादर करके कोई भी राजनीतिक दल या नेता लंबे समय तक जनता का चहेता बना नहीं रह सकता। आडवाणी के पास छह दशकों का लंबा राजनीतिक और संसदीय अनुभव है। उनका संसदीय रिकॉर्ड शानदार रहा है और राजनीतिक जीवन बेदाग रहा है। बीजेपी को यह बात स्वीकार करके उन्हें उचित सम्मान देना चाहिए। और इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि देश के दो सबसे महत्वपूर्ण पदों यानी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदों पर देश के दो सबसे मज़बूत और लोकप्रिय नेता बैठें।
अगर आडवाणी राष्ट्रपति बनते हैं, तो इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत के इतिहास में वे पहले ऐसे राष्ट्रपति होंगे, जिनका इतना मज़बूत राजनीतिक जनाधार रहा हो। देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद तो कभी संसदीय चुनाव में उतरे नहीं, इसलिए उनके बारे में पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि उनका राजनीतिक जनाधार इतना था कि नहीं, लेकिन अन्य राष्ट्रपतियों के बारे में यह सहज अनुमान्य है कि उनका जनाधार आडवाणी जितना व्यापक नहीं था।
मेरा ख्याल है कि राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए, जो देश के पहले नागरिक के तौर पर देश और सरकार के गार्जियन की भूमिका निभाने की हैसियत रखता हो और आडवाणी इस भूमिका और हैसियत में बिल्कुल उपयुक्त दिखाई देते हैं। याद रखिए, बौने राष्ट्रपति बनाने से इस पद की गरिमा बढ़ती नहीं, उल्टे उसपर रबड़-स्टाम्प होने का कलंक चढ़ जाता है। यह न सिर्फ़ देशवासियों के लिए निराशाजनक होता है, बल्कि सरकार के लिए भी बदनामी का विषय बन जाता है।
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