मुसलमानों की लाश पर इस्लाम का झंडा फहराता है पाकिस्तान!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि व मानवतावादी चिंतक हैं।

जीवन में तीसरी बार “तैमूर” नाम सुन रहा हूं। एक था तैमूर लंग, कुख्यात आक्रमणकारी। दूसरा सैफ अली खान और करीना कपूर का बेटा, जिसे यह नाम मिलते ही देश भर में विवाद शुरू हो गया। और तीसरा वह तैमूर है, जो पाकिस्तान में है, शिया मुसलमान है, सुन्नियों की अदालत ने उसे फांसी चढ़ाने का आदेश दिया है- तैमूर रज़ा। बेचारे को फेसबुक पर पोस्ट लिखने के चलते ईशनिंदा कानून के तहत मौत की सज़ा सुना दी गई।

बताया जाता है कि उसने फेसबुक पर सुन्नी समुदाय के गुरुओं एवं पैगम्बर मोहम्मद के बारे में कुछ लिख दिया था। हालांकि मेरा मानना है कि किसी भी व्यक्ति को अन्य लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अगर कोई व्यक्ति धार्मिक कुरीतियों एवं अंध-परम्पराओं के विरोध में कुछ लिखता-बोलता है, तो इसे दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं कहा जाना चाहिए। किसी भी धर्म या समाज में सुधार के लिए यह ज़रूरी है कि लोगों को अगर उसमें कोई बुराई दिखती है, तो उसके बारे में भी वह खुलकर बोल सके।

लेकिन पाकिस्तान, जो कि वस्तुतः एक आतंकवादी देश है, जिसने पिछले 70 साल से अपनी सरहद के भीतर और बाहर धर्म के नाम पर आतंक फैलाने के अलावा कुछ नहीं किया है, उससे उम्मीद भी क्या की जा सकती है? हैरानी की बात यह है कि तैमूर रज़ा नाम के 30 वर्षीय शख्स को यह सज़ा एक एंटी-टेररिस्ट कोर्ट ने सुनाई है। यानी एक ऐसे देश में जहां असली आतंकवादियों को असीम प्यार-दुलार देकर पाला-पोसा जाता है, वहां सिर्फ़ फेसबुक पर पोस्ट लिखने की वजह से एक शख्स को आतंकवादी करार देकर सज़ा-ए-मौत सुना दी जाती है। ज़ाहिर है कि वे अदालतें भी वहां धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलाने के काम में ही जुटी हुई हैं, जिन्हें पाकिस्तान में आतंकवाद-निरोधी अदालतें कहते हैं।

पाकिस्तान में यह पहला मामला नहीं है, जब किसी शख्स को तथाकथित ईशनिंदा के लिए मार डाला गया हो। कोर्ट तो कोर्ट, वहां के आम लोग भी धर्म के नाम पर पागलपन की तमाम हदें पार कर चुके हैं। आपको याद होगा कि 2011 में पाकिस्तानी पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की महज इसलिए गोली मारकर हत्या कर दी गई, क्योंकि उन्होंने ईशनिंदा कानून का विरोध किया था। और इसी साल अप्रैल में एक यूनिवर्सिटी छात्र का सिर उसके साथी छात्रों ने ही कुचल दिया था।

यानी, पिछले 70 साल से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का कत्लेआम तो चल ही रहा है, अपने ही धर्म के सूफियों और शियाओं की हत्या करने में भी उसका कलेजा नहीं कांपता। यह ऐसा ज़लील मुल्क है, जो स्कूल जाने पर अपनी बेटियों को गोली मार देता है, सूफियों की दरगाहों पर बम फोड़ देता है, मदरसों में आतंकवाद की ट्रेनिंग देता है और मस्जिदों में हथियारों का जखीरा इकट्ठा करता है। एक तरफ़ वहां कथित ईशनिंदा करने वालों को तो मौत के घाट उतार ही दिया जाता है, लेकिन ईश की प्रशंसा करने वालों को भी गोली मार दी जाती है। मशहूर कव्वाल अहमद साबरी की हत्या इसका सबूत है।

दुखद है, पर सच है कि आतंकवाद और ईशनिंदा को लेकर अपनी कट्टरता एवं नृशंसता के चलते पाकिस्तान आज वह देश बन गया है, जो ख़ुद मुसलमानों की ही लाश पर इस्लाम का झंडा फहराता है। इसलिए वहां अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के दमन के बारे में तो हम क्या चर्चा करें!

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