सुनीता जी, आपके पति केजरीवाल भी वही काट रहे हैं, जो उन्होंने बोया है!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि व मानवतावादी चिंतक हैं।

कपिल मिश्रा का यह कहना कि केजरीवाल को कॉलर पकड़कर जेल ले जाऊंगा, निश्चित रूप से अशोभनीय है। लेकिन अरविंद केजरीवाल जिस तरह से अपने समर्थकों के ज़रिए सोशल मीडिया पर इसी को मुद्दा बना देने की कोशिश में जुट गए हैं, वह भी कम हैरान करने वाला नहीं है।

अभद्र भाषा केजरीवाल की टोली की पहचान है!

यह वही केजरीवाल हैं, जिन्होंने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पिछवाड़े पर लात मारकर निकालने की बात कही थी और इसका ऑडियो सबके सामने आ चुका है। केजरीवाल के एक अत्यंत दुलारे मंत्री रहे सोमनाथ भारती ने भी बीजेपी के कद्दावर नेता अरुण जेटली के मुंह पर थूकने की बात कही थी।

इसी तरह, आज के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तत्कालीन जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव के लिए “चोर” शब्द का इस्तेमाल किया था, जिसकी सभी सांसदों ने एकजुट होकर निंदा की थी। दरअसल, केजरीवाल टोली के सदस्यों की भाषा कभी मर्यादित नहीं रही। ये लोग किसी को भी चोर कह देते थे। और जब इसपर इनसे सवाल पूछे जाते थे, तो इनका एकमात्र जवाब यही होता था कि “चोर को चोर नहीं कहेंगे जी, तो क्या कहेंगे?” इनकी इस भाषा के शिकार तत्कालीन मनमोहन सरकार के अनेक मंत्री बने।

पी चिदंबरम पर जूता फेंकने वाले पत्रकार जरनैल सिंह को भी आम आदमी पार्टी ने महिमामंडित किया, टिकट दिया और विधायक बनाया। अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की अमर्यादित भाषा और आचरण को अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने जनता के गुस्से का नाम दिया और इसे लगातार प्रोत्साहित किया।

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने एक पोस्टर जारी किया था, जिसमें बिना किसी सबूत, बिना किसी ट्रायल, बिना किसी आरोप-सिद्धि के तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को “बेईमान” और केजरीवाल को ईमानदार लिखा गया। यह पोस्टर दिल्ली के हर ऑटो के पीछे बेशर्मी से चस्पा था।

दिल्ली ही नहीं, समूचे देश में इन लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया था कि इनसे असहमत लोग भी इनकी आलोचना करने से डरते थे, क्योंकि इनके लोग फौरन उन्हें भ्रष्ट और बेईमान घोषित कर देते थे। सोशल मीडिया पर तो इनके वेतनभोगी कार्यकर्ताओं ने गाली-गलौज करके आतंक ही मचा रखा था। यहां तक कि इनपर सवाल खड़े करने वाले पत्रकार भी फौरन ही दलाल घोषित कर दिए जाते थे।

केजरीवाल की पार्टी में तमीज़दार लोगों की जगह नहीं!

अगर योगेंद्र यादव जैसे एकाध तमीज़दार लोग इस पार्टी में थे, तो अंतिम सच्चाई यही है कि उन्हें भी इस पार्टी से निकाल दिया गया। फिर अगर आज अरविंद केजरीवाल के ही सिखाए-पढ़ाए चेले उनके लिए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो किस नैतिक अधिकार से वे इसपर एतराज जताते हैं?

दरअसल जैसे केजरीवाल ने लोगों में एक आम धारणा फैलाई कि सभी नेता भ्रष्ट हैं, और इसीलिए जब उन्होंने उन्हें गालियां भी दीं, तो लोगों ने तालियां ही बजाईं। इसी प्रकार, जब आज यह आम धारणा बन चुकी है कि अरविंद केजरीवाल भ्रष्ट हैं, तो कपिल मिश्रा को भी लगता होगा कि उन्हें गालियां देकर वे तालियां बटोर सकते हैं।

इसलिए बेहतर ये होता कि दूसरों को भाषा की तमीज़ और नैतिकता का पाठ पढ़ाना छोड़कर अरविंद केजरीवाल आज अपने ऊपर लगे आरोपों का तथ्यसंगत जवाब देते। लेकिन इसका जवाब देने की बजाय वे कभी विधानसभा में ईवीएम टेम्परिंग का ड्रामा रचते हैं, तो कभी पत्नी को आगे करके सहानुभूति बटोरने की कोशिश करते हैं।

केजरीवाल भी अपना बोया ही काट रहे हैं!

लेकिन इससे क्या होगा? सवाल मर जाएंगे क्या? या आरोप ख़त्म हो जाएंगे? आरोप तो तभी ख़त्म होंगे, जब वे कुर्सी छोड़कर जांच में क्लीन निकलें। इसीलिए जब सुनीता केजरीवाल भी अपने पति के बचाव में सामने आती हैं, तो उनमें दम नज़र नहीं आता है। वे ट्वीट करती हैं- “प्रकृति का नियम है, कि जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। विश्वासघात करने वाले, झूठे आरोप बोने वाले कपिल मिश्रा के साथ यही होगा।”

लेकिन ऐसा लिखते हुए सुनीता जी भी यह भूल जाती हैं कि उनके पति भी वस्तुतः आज वही काट रहे हैं, जो उन्होंने बोया है। कपिल मिश्रा ने उनपर जैसे आरोप लगाए हैं, उससे भी हल्के आरोप दूसरों पर लगाकर उनके पति हीरो बन गए। कपिल मिश्रा ने आज उनके पति के लिए जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है, वैसी ही भाषा का इस्तेमाल उनके पति भी दूसरों के लिए करते रहे हैं।

जेल जाने पर लालू की तरह पत्नी को सीएम बनाएंगे केजरीवाल?

इसलिए सुनीता केजरीवाल के बचाव से केजरीवाल को फायदा तो नहीं हो रहा, उल्टे लोग उनकी तुलना लालू यादव से करने लगे हैं। यह चर्चा ज़ोर पकड़ चुकी है कि अगर उन्हें जेल जाना पड़ा, तो वे भी लालू यादव की तरह अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपना चाहते हैं। सूत्रों के मुताबिक, केजरीवाल के इस इरादे का पार्टी में पुरज़ोर विरोध भी हुआ है। संकेत ऐसे मिल रहे हैं कि अगर केजरीवाल ने ऐसा करने की कोशिश की, तो ख़ुद मनीष सिसोदिया भी उनके ख़िलाफ़ बगावत कर देंगे।

इसलिए, इस वक्त कपिल मिश्रा की भाषा-तमीज़ का विश्लेषण करने से कहीं अधिक ज़रूरी केजरीवाल के लिए अपनी कमीज़ साफ़ करना है। दाग गहरे होते जा रहे हैं और आप बहरे होते जा रहे हैं! यह बात हजम नहीं हो रही। कुछ तो बोलिए जनाब। मनमोहन और मोदी की चुप्पी पर तंज कसने वाले अपनी बारी आने पर जब मुंह पर ताला लगाकर बैठ जाते हैं, तो शक और गहराने लगता है कि इस ताले के पीछे सचमुच भ्रष्टाचार से अर्जित कोई खजाना तो नहीं छिपा है!

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