पढ़िए, NDTV से जुड़े खुलासे पर सवाल उठाने वालों को अभिरंजन कुमार ने क्या दिया जवाब?

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं।

वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व एनडीटीवी जर्नलिस्ट अभिरंजन कुमार ने जबसे एनडीटीवी की एजेंडा पत्रकारिता का खुलासा किया है, तबसे जहां बड़ी संख्या में लोग उनका समर्थन कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग सवाल भी उठा रहे हैं। अभिरंजन कुमार ने अपने फेसबुक पोस्ट में उन सवालों का बड़ा ही ज़ोरदार जवाब दिया है। उनके जवाब को हम यहां ज्यों का त्यों छाप रहे हैं-

“कई मित्र मुझसे लगातार सवाल कर रहे हैं कि आप जब एनडीटीवी में थे या जब एनडीटीवी से आपका संबंध-विच्छेद हुआ था, तभी आपने ये खुलासे क्यों नहीं किए? इतने साल बाद ये बातें करने की क्या तुक है? यह एक बेहद ज़रूरी सवाल है, इसलिए मैं उन तमाम मित्रों का शुक्रगुज़ार हूं, जिन्होंने यह सवाल उठाया है।

इसके जवाब में आप सबसे अनुरोध यह है कि मेरे संदर्भित लेख को ठीक से पढ़ें। मैंने लिखा कि जब मैं एनडीटीवी में था, तब भी इस तरह की घटनाओं का विरोध करता था। ये दो घटनाएं तो चंद बानगियां हैं। विरोध नहीं करता होता, तो मैं भी वहां बीस साल की पारी नहीं खेलता? संस्थान को सूट करता होता, तो मैं भी “सुपर-स्टार” नहीं होता?

रही बात एनडीटीवी से निकलने के फौरन बाद बोलने की, तो किसी भी ज़िम्मेदार और मूल्यवान व्यक्ति को ऐसा कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे लड़ाई पर्सनल और ओछी हो जाती है। ऐसा लगता है जैसे यह एक व्यक्ति और संस्थान के बीच निजी हितों की लड़ाई है। आज जबकि मुझे एनडीटीवी से अलग हुए करीब साढ़े आठ साल हो चुके हैं, इस लड़ाई में निजी हितों के टकराव का कोई भी मुद्दा नहीं रह जाता।

इसलिए, कृपया यह ध्यान रखें कि मेरी लड़ाई मेरी आदरणीया पूर्व सहयोगी बरखा दत्त इत्यादि की तरह नौकरी से निकाले जाने के चलते शुरू नहीं हुई है। मेरी लड़ाई पत्रकारिता के मूल्यों के लिए है। मेरी लड़ाई लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए है। मैं कोई बगुला भगत भी नहीं कि अचानक मीडिया के मूल्यों की बात करने लगा हूं। यकीन नहीं होता, तो कृपया गूगल सर्च करके और मेरे पुराने फेसबुक पोस्टों के माध्यम से मेरे बीसियों पिछले लेख और टिप्पणियां देख सकते हैं, जिनमें मैंने पत्रकारिता में मूल्यों के ह्रास और मीडिया संस्थानों की गिरती विश्वसनीयता को लेकर अलार्म बजाया है और इन प्रयासों के चलते विभिन्न चैनलों ने कई मौकों पर अपना कन्टेन्ट सुधारा भी है, जिसके लिए मैं हृदय से उनका आभारी हूं।

मेरी लड़ाई मेरे अपने लिए नहीं, बल्कि उन 300 पत्रकार-गैरपत्रकार साथियों के लिए भी है, जिन्हें एनडीटीवी ने हाल ही में निकालने का फैसला किया है। मेरी लड़ाई अपने देश के लिए भी है और अपनी सेना के सम्मान के लिए भी। मेरी लड़ाई इसलिए भी है कि देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र बना रहे, धर्म की बुराइयों पर चोट हो, आतंकवाद और कट्टरता का नाश हो। बात-बात में मीडिया स्टोरीज़ को जाति और धर्म का एंगल न दिया जाए, इसके लिए लड़ता रहूंगा मैं।

मैंने किसी कुरान या पुरान, गांधी या मार्क्स को रटकर विचारधारा नहीं बनाई है। बाबा कबीरदास के नक्शेकदम चलता हूं। मेरी लड़ाई देश के 130 करोड़ आम नागरिकों के हक़ों और हितों के लिए ही नहीं, धरती पर रहने वाले अन्य जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, नदियों-पहाड़ों के लिए भी है, जो आए दिन इंसानी हिंसा का शिकार हो रहे हैं। समस्या यह है कि इन लड़ाइयों में जब कोई राजनीतिक एंगल बनता है, तभी लोग उसे अधिक नोटिस करते हैं।

यह भी बता दूं कि जब मुझे लगा कि भारतीय मीडिया के पतन के इस दौर में किसी संस्थान की नौकरी करते हुए हम यह लड़ाई नहीं लड़ सकते, तब हमने अपना मीडिया प्लेटफॉर्म (न्यूट्रल मीडिया प्रा. लि.) बनाया और छोटे पैमाने पर ही सही, आज भी पूरी मेहनत और ईमानदारी से उसका संचालन कर रहे हैं।

मेरे कुछ मित्रों ने मेरे प्रति प्यार और सम्मान जताने के लिए अपने मीडिया उपक्रमों में मुझे कंसल्टिंग एडिटर या एडिटोरियल एडवाइज़र इत्यादि की मानद उपाधि अवश्य दे रखी है, लेकिन उनसे भी यह स्पष्ट है कि मेरे नाम का प्रयोग करके कुछ भी अनुचित नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, उन सभी उपक्रमों में मेरी भूमिका सिर्फ़ मांगे जाने पर सलाह देने तक ही सीमित है।

आपका यह भाई आदमी छोटा ज़रूर है, लेकिन ज़िंदगी का मकसद बड़ा है। वह पर्सनल और ओछी लड़ाइयां नहीं लड़ता। अपने 20 साल के पत्रकारिक करियर में उसने कभी भी अपने फायदे के लिए किसी पर निशाना नहीं साधा। पैसे नहीं बनाए। ख़बरों में मिलावट नहीं की। किसी के इशारे पर नहीं लिखा। किसी की चापलूसी नहीं की। अगर कभी कोई गलती हुई, तो भूल का अहसास होने पर फौरन उसे दुरुस्त किया।

अगर आप मेरी नीयत का भली-भांति अंदाज़ा लगाना चाहते हैं, तो सिर्फ़ मेरे लेखों को न पढ़ें, मेरे तीन कविता-संग्रहों को भी पढ़ें और 1994 से मेरा ट्रैक रिकॉर्ड चेक करवाएं। मां सरस्वती का बेटा हूं। विश्वास रखें कि नीर-क्षीर विवेक रखता हूं, कांव-कांव नहीं करता। शुक्रिया।”

 

अभिरंजन कुमार के इस फेसबुक पोस्ट को आप यहां देख सकते हैं-

 

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