जेनरिक दवाओं पर कानून लाने का मोदी का फ़ैसला क्रांतिकारी, पर कई एहतियाती उपाय ज़रूरी
हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेनरिक दवा के संबंध में बयान क्या दिया, चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों में हड़कम्प मच गया है। वहीं दूसरी ओर आम आदमी जानना चाहता है कि आखिर क्या हैं ये जेनरिक दवाइयां? इस लेख में जेनरिक दवाइयां क्या होती हैं, क्या जेनरिक दवाइयां फायदेमंद होती हैं, क्या जेनरिक दवाइयां सस्ती मिल सकती हैं… और इससे सम्बन्धित तमाम जानकारियां प्रस्तुत कर रहा हूं।
जेनरिक दवाइयां क्या हैं?
वर्षों के अनुसंधान के बाद कोई दवा कम्पनी किसी एक दवा की खोज करती है। फिर इस दवा को अनेक तरह की जांच से गुज़रना पड़ता है, तब जाकर इसे बाज़ार में मरीज़ के लिए उपलब्ध कराया जाता है। इस प्रक्रिया में कम्पनी करोड़ों रुपये ख़र्च करती है। अतः इस ख़र्च की भरपाई के लिए उस कम्पनी को खोज की गई दवा का पेटेंट मिलता है, जो सामान्यतः 20 वर्षों के लिए होता है। पेटेंट अवधि के दौरान कोई भी अन्य कम्पनी इस दवा को बना या बेच नहीं सकती है। यही दवाइयां ब्राण्डेड दवाइयां कहलाती हैं। लेकिन जब पेटेंट की अवधि समाप्त हो जाती है, तो फिर इस दवा का उत्पादन या बिक्री कोई भी कम्पनी कर सकती है। यही दवा जेनरिक दवा कहलाती है।
क्या जेनरिक दवाइयां फ़ायदा नहीं करतीं?
हालांकि विश्व के जितने भी स्वास्थ्य नियामक (Regulatory Authority, जैसे USFDA, WHO, UK-MHRA) हैं, दवा कंपनियों को उनकी सख्त हिदायत होती है कि वे जो भी जेनरिक दवाइयां बनाएं, उनकी गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों के समतुल्य ही होनी चाहिए। अतः नियमतः ब्रांडेड और जेनरिक दवाइयों में कोई अन्तर नहीं होता है, बशर्ते कि वह दवा कम्पनी अन्तरराष्ट्रीय मानकों को मानती हो। अतः आप कह सकते हैं कि अच्छी दवा कम्पनियों की चाहे आप ब्राण्डेड दवा लें या जेनरिक दवा- दोनों की गुणवत्ता में कोई फ़र्क नहीं होता।
भारत में बिकने वाली 99 प्रतिशत दवाइयां जेनरिक!
भारत में बिकने वाली 99% दवाइयां जेनरिक दवा ही होती है। यानी हम आप रोज़ाना जो दवाइयां प्रयोग कर रहे हैं, उनमें ज़्यादातर जेनरिक दवा ही है। मतलब यह भी हुआ कि आपके डॉक्टर आपके पर्चे पर जो दवाइयां लिखते हैं, अमूमन वह भी जेनरिक दवा ही होती है। अब लाख टके का सवाल यह है कि फिर जो ये हमारे प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि अब डॉक्टरों को जेनरिक दवाइयां ही लिखनी चाहिए, इसका क्या मतलब है? और चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?
दरअसल, इसे हमारे देश की विडंबना कहें या कुछ और… भारत हर वर्ष 45 हजार करोड़ की जेनरिक दवाइयां निर्यात करता है। वो भी सिर्फ़ गरीब देशों को नहीं, बल्कि इनमें अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के समृद्ध देश भी शामिल हैं। अब आप ही बताएं कि अमेरिका और यूरोप के देश क्या घटिया क्वालिटी की दवाइयां लेना पसंद करेंगे?
दवा कंपनियों और डॉक्टरों की मिलीभगत!
हिन्दुस्तान में एक तीसरी तरह की दवा बिकती है, जिसे लिखना डॉक्टर अधिक पसंद करते हैं, वो है– ब्रांडेड जेनरिक। जी हां, हमारे देश में जेनरिक दवाइयों को ही अलग-अलग कम्पनियां अलग-अलग नामों से बेचती हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में ब्रांडेड दवा कहते हैं। इसे एक उदाहरण से समझें। देश की एक सबसे पुरानी एवं प्रतिष्ठित दवा कम्पनी Azithromycin नामक antibiotic दवा तीन नामों से बनाकर बेचती है-
- Azee
- Azimax
- Azipro
इनमें प्रथम दो दवा ब्रांडेड जेनरिक है, जबकि अन्तिम दवा जेनरिक है। यहां Azithromycin दवा का मूल नाम है, जिसे दवा का जेनरिक नाम कहते हैं। सरकार डॉक्टरों को यही जेनरिक नाम पुर्जे पर लिखने को कह रही है।
गरीब को चार से दस गुणा महंगी बेची जा रही हैं दवाइयां!
दरअसल, दवा कम्पनियां जिन दवाइयों की बिक्री MR (मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव ) के माध्यम से करती हैं, वो ब्राण्डेड जेनरिक कहलाती हैं और जिन दवाइयों को दवा दुकानदार सीधे कम्पनी के डिस्ट्रीब्यूटर से ख़रीदकर स्वयं बेचते हैं, उन्हें जेनरिक दवा कहते हैं। एक दवा दुकानदार को जेनरिक दवाइयां बेचने में बहुत ज़्यादा मुनाफा है। कम से कम 400% से लेकर 1000% तक। मतलब यदि एक जेनरिक दवा की कीमत 100 रूपये है, तो दुकानदार उसे बमुश्किल 20 रूपये में खरीदता है। वास्तव में ब्राण्डेड जेनरिक और जेनरिक दवाइयों के MRP (Maximum retail price) में कोई अन्तर नहीं होता है। अन्तर मुनाफ़े के मार्जिन में होता है। सामान्य दवा दुकानों से आप चाहें जेनरिक दवा खरीदें या ब्राण्डेड जेनरिक… आपको पैसे उतने ही लगेंगे, क्योंकि दुकानदार तो आपको प्रिंट रेट से एक भी रुपया कम करने से रहा।
हमारा सुझाव:-
सरकार को जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाने चाहिए। इसके लिए बहुत सारे काम पहले करने की ज़रूरत है।
- फार्मा इंडस्ट्री में लाखों लोग काम करते हैं, यदि डॉक्टरों ने दवा का जेनरिक नाम लिखना शुरू कर दिया, तो लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे। इन्हें कैसे समायोजित करेंगे, पहले इसके लिए एक्शन प्लान तैयार होना चाहिए।
- पहले लोगों को, जेनरिक दवा क्या होती है, यह समझाने की ज़रूरत है, क्योंकि लोग प्रायः जेनरिक दवा को घटिया क्वालिटी की दवा समझते हैं।
- हर शहर और गांव में जेनरिक दवाइयों की दुकान खोली जानी चाहिए। फार्मा इंडस्ट्री से बेरोज़गार हुए लोगों को अपनी दवा दुकान खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सरकार या बैंक उन्हें आथिॅक सहायता भी दे सकते हैं।
- सरकार को चाहिए कि दवा कम्पनियों को कहे कि जेनरिक दवाइयों की MRP कम करे और प्रॉफिट मार्जिन 25% से अधिक नहीं रखें।
- अन्तरराष्ट्रीय मानकों को अपनाने वाली दवा उत्पादक कम्पनियों को ही लाइसेंस मिले, बाकियों का लाइसेंस रद्द हो। इस देश में घटिया दवा बनाने और बेचने वाली कम्पनियों की भरमार है। इस देश में 10,000 से भी अधिक दवा कम्पनियां रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से 100 कम्पनियां भी अन्तरराष्ट्रीय मानकों पर खरी उतरने लायक नहीं हैं। यह कटु किन्तु परम सत्य है।
- डॉक्टर को चाहिए कि मरीज़ के हित में प्रत्येक दवा का जेनरिक नाम स्पष्ट शब्दों में लिखें। आप चाहे कितना भी पढ़े-लिखे हों, एक डॉक्टर का पुर्जा क्यों नहीं पढ पाते हैं, जबकि एक 10वीं पास केमिस्ट पढ़ लेता है। यह भी एक राज़ है। MCI (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) का सख्त निर्देश है कि आप पर्ची पर सब कुछ स्पष्ट शब्दों में लिखें।
कम्बिनेशन थेरेपी बंद होनी चाहिए!
बहरहाल, सरकार के इस निर्णय से एक बड़ा फ़ायदा यह होगा कि combination therapy (दो या दो से अधिक दवा को मिलाकर नई दवा तैयार करना) हतोत्साहित होगा, जो होना भी चाहिए। इस देश में दवा कम्पनियां अपने फ़ायदे के लिए ऐसी दो या दो से अधिक दवाओं को मिलाकर नई दवा इजाद कर रही हैं, जिसका कोई मतलब ही नहीं है और चिकित्सा की दृष्टि से भी ऐसा करना गलत है। अधिकांश विकसित देशों में combination therapy पर प्रतिबंध है। वहां सिर्फ़ monotherapy की इजाज़त होती है।
जेनरिक दवा से जुड़ा कानून ठीक से लागू हो जाए, तो क्रांतिकारी!
अन्त में यही कहना चाहूंगा कि सरकार यदि सोच-विचार कर जेनरिक दवाइयों के उत्थान हेतु कदम उठाती है, तो यह एक अत्यंत ही साहसिक एवं क्रांतिकारी कदम होगा, क्योंकि इस देश में करोड़ों लोग दवा के अभाव से मर रहे हैं, जिनके पास खाने को रोटी नहीं है, वे महंगी दवा कहां से खरीदेगें? चिकित्सकों को चाहिए कि देश हित में सरकार का सहयोग करें।