व्यंग्य: लोग कहते हैं बहुमत लाना, राहुल गांधी समझते हैं बहू मत लाना!

अभिरंजन कुमार जाने-माने लेखक, पत्रकार और मानवतावादी चिंतक हैं।

जब लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के लिए राहुल गांधी “बहुमत लाएं”, तो राहुल गांधी समझते हैं कि लोग कह रहे हैं “बहू मत लाएं।”

अगर ऐसा समझते हैं तो कितना “हू-ब-हू” समझते हैं राहुल गांधी!

हालांकि इस पर विद्वानों में दो मत है। एक मत के अनुसार, राहुल गांधी समझते हैं “घर में बहू मत लाएं।” दूसरे मत के अनुसार राहुल गांधी समझते हैं “भारत में बहू मत लाएं।”

पहले मत के विद्वानों का मानना है कि जैसा कि ज़ाहिर है, राहुल गांधी ने शादी नहीं की है, इसलिए वह यही समझ रहे हैं कि “घर में बहू मत लाएं।” जबकि दूसरे मत के विद्वानों का कहना है कि मुमकिन है कि राहुल गांधी ने सीक्रेट शादी कर रखी हो, जिसे निभाने के लिए बार-बार वो लंबी छुट्टी पर विदेश जाते रहते हैं। अपने इस कयास के आधार पर इस मत के विद्वानों का मानना है कि राहुल गांधी समझते हैं “भारत में बहू मत लाएं।”

आलम यह है कि राहुल गांधी की शादी को लेकर “बहुबात” हो रही है। आखिर राहुल गांधी “बहुमत” और “बहू मत” के बीच के फ़र्क को समझने में क्यों कन्फ्यूज़ हो रहे हैं, इस बारे में भी विद्वानों के बीच मूलतः दो मत प्रचलित हैं।

पहले मत के विद्वान इसका दोष उनके एक हिन्दी टीचर को देते हैं। ये हिन्दी टीचर उन्हें ठीक-ठाक हिन्दी सिखा रहे थे। इसी बीच देश में कुछ ऐसा माहौल बना कि उन्हें लगा कि वे कांग्रेस-विरोधी राजनीति के पुरोधा बन सकते हैं। फिर क्या था, उन्होंने अपना झोला समेटा और जाते-जाते उन्हें “बहुमत” का मतलब “बहू मत” बता गए।

जबकि दूसरे मत के विद्वान बताते हैं कि इस बारे में तो अब कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी जनेऊधारी ब्राह्मण हैं। लेकिन चूंकि सोनिया गांधी इटली से आई थीं और जनेऊ की परंपरा के बारे में उन्हें ठीक से जानकारी नहीं थी, बस इसीलिए थोड़ी गड़बड़ी उन्हीं से हो गई। प्राचीन काल में जनेऊ का संस्कार गुरुकुल में जाने यानी शिक्षा प्राप्त करने से पहले ही दे दिया जाता था, ताकि बच्चे सही-सही शिक्षा प्राप्त कर सकें। लेकिन सोनिया गांधी से चूक यह हो गई कि राहुल गांधी को जनेऊ उन्होंने शिक्षा प्राप्त कर लेने के काफी बाद यानी हाल-फिलहाल ही कभी दी है। उसमें भी एक और चूक हो गई कि उनके जनेऊ कार्यक्रम को काफी सीक्रेट रखा गया था और उसमें रणदीप सुरजेवाला जैसे उंगलियों पर गिने जाने लायक कुछ लोग ही मौजूद थे। इससे जनेऊ के वक्त बच्चों को जो बड़ी संख्या में नाते-रिश्तेदारों, शिक्षकों और समाज के लोगों से आशीर्वाद मिलते हैं, राहुल गांधी उससे वंचित रह गए।

हालांकि राहुल गांधी के “बहू मत” लाने के बारे में एक और थ्योरी विद्वानों में काफी प्रचलित है। वे बताते हैं कि राहुल गांधी घोषित तौर पर भले ही शिव के भक्त हैं, लेकिन अघोषित तौर पर वे बजरंग बली के भक्त हैं। बजरंग बली की भक्ति के फॉर्मूले पर चलने से उन्हें अनेक लाभ भी हुए हैं। जैसे, उनके भीतर अपार बल इकट्ठा हो गया है। इतना बल, कि अक्सर जोश में आकर वे अपने कुरते की बांहें चढ़ाते हुए पाए जाते हैं। कभी और अधिक जोश आ जाता है, तो हाथ में कोई काग़ज़ लेकर उसे ही फाड़ डालते हैं। कभी उनके बोलने से भूकंप आ जाता है। कभी लोग पंद्रह मिनट के लिए भी उनका सामना करने से कतराते हैं।

इन सबके बीच, एक और अवधारणा का पता चला है, जिसके मुताबिक राहुल गांधी “बहुमत” और “बहू मत” के बीच में बिल्कुल भी कन्फ्यूज़ नहीं हैं और उन्हें दोनों शब्दों के सही-सही अर्थ मालूम हैं। दरअसल आसाराम टाइप के किसी त्रिकालदर्शी बाबा ने उनसे कह रखा है कि “बहू मत” लाना, तभी जनता “बहुमत” देगी। अगर “बहू” लाए, तो जनता “बहुमत” नहीं देगी।

फिलहाल यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या उस त्रिकालदर्शी बाबा को राहुल गांधी का कोई सीक्रेट मालूम है इसलिए ऐसा कहा है या ऐसे ही डींगे हांकने में उन्हें फंसा दिया है। बम भोले…।

उधर, भारत के मैचमेकर्स भी कम नहीं हैं। जहां कहीं एक फ़ोटो भर सीन भी नज़र आता है, वे फौरन सक्रिय हो जाते हैं और राहुल गांधी का मैच बनाने लगते हैं। चाहे कोई विज्ञापन-बाला हो, या फिर राहुल गांधी किसी कन्या को उंगली पकड़कर जीप पर चढ़ा लें या किसी ख़ूबसूरत विधायिका के साथ उनकी कोई तस्वीर आ जाए, इन मैचमेकर्स की क्रिएटिविटी को मानो पंख लग जाते हैं। लेकिन इन सारी क्रिएटिविटी का फ़ायदा तो तभी है, जब “बहुमत” और “बहू मत” के बीच की गुत्थी सुलझ जाए।

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