कविता: राहुल बाबा फिर विदेश चले गए हैं!
पिछले साल की बात है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और संजय गांधी की कोटरी का अहम सदस्य रहे एक पुराने कांग्रेस नेता से बात हो रही थी।
मैंने कहा- “राहुल गांधी सियासत में सीरियस ही नहीं हैं।”
उन्होंने कहा- “ऐसा आप किस आधार पर कह सकते हैं? वे काफी मेहनत कर रहे हैं।”
मैंने कहा- “सिर्फ़ एक उदाहरण। एन मौके पर वे रहस्यमय तरीके से विदेश चले जाते हैं।”
उन्होंने कहा- “ऐसा एक-दो बार ज़रूर हुआ है, पर आगे नहीं होगा।”
मैंने कहा- “देखते हैं।”
मज़े की बात यह है कि राहुल बाबा एक बार फिर विदेश में हैं। ऐसे समय में, जब देश में राष्ट्रपति चुनाव का माहौल गर्म है, कांग्रेस और विपक्ष को उनकी ज़रूरत है, वे नानीघर इटली में छुट्टियां मना रहे हैं।
इससे पहले, इसी साल की शुरुआत में जब यूपी समेत पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका था और समाजवादी पार्टी परिवार में घमासान मचा हुआ था, तब भी राहुल बाबा विदेश में नया साल मना रहे थे।
राहुल बाबा की ख़ासियत ही यही है कि वे किसानों, कुलियों, मनरेगा मज़दूरों, दलितों, मुसलमानों को छोड़कर ऐन वक्त पर विदेश चले जाते हैं। पढ़िए आज से ठीक एक साल पहले 20 जून 2016 को लिखी मेरी यह कविता, जो फिर प्रासंगिक हो गई है-