इन दस सवालों पर ग़ौर किए बिना आतंक और अलगाववाद से कैसे लड़ेगा भारत?

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं।

आतंकवाद और अलगाववाद से निपटने के लिए मोदी सरकार विल पावर तो दिखा रही है, लेकिन इसी विल पावर की वजह से पाकिस्तान और बौखला गया है। यही वजह है कि एक तरफ़ जहां नियंत्रण रेखा पर वह सीज़फायर का लगातार उल्लंघन कर रहा है, वहीं उसके पैसे पर पलने और उसके इशारे पर चलने वाले कश्मीरी अलगाववादी भी पत्थरबाज़ों को लगातार शह दे रहे हैं।

इसलिए, जैसा कि कई लोग समझते हैं कि कोई जादू की छड़ी हिलाकर पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सकता है या कश्मीर में स्थायी शांति बहाल की जा सकती है, वैसा नहीं है। लेकिन यह भी सही है कि अगर भारत को आतंकवाद और अलगाववाद के ख़िलाफ़ आखिरी जंग छेड़नी है, तो उसे इन दस सवालों पर ग़ौर करना ही होगा।

1. पाकिस्तान की भारत नीति स्पष्ट है, लेकिन क्या भारत की पाकिस्तान नीति स्पष्ट है? चार युद्धों की पराजय के बाद भी पाकिस्तान जिस तरह से लगातार कश्मीर के पीछे पड़ा हुआ है और पूरे भारत में आतंकवाद की सप्लाई कर रहा है, उससे स्पष्ट है कि जब तक पाकिस्तान अपने मौजूदा स्वरूप में रहेगा, उसे सुधारना संभव नहीं है। फिर क्या भारत के पास ऐसी कोई समयबद्ध योजना है, जिससे पाकिस्तान भंग हो जाए और जैसे बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ, वैसे ही सिंध और बलूचिस्तान जैसे उसके कब्जे वाले इलाके भी स्वतंत्र हो जाएं? अगर हां, तो ठीक। वरना करते रहिए अगले 70 साल और पाकिस्तान से बातचीत, चलाते रहिए बसें और ट्रेनें, होते रहिए नाती-नातिनों की शादी में शरीक… कुछ हासिल नहीं होने वाला है।

2. क्या भारत पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीनकर उसे आतंकवादी देश घोषित कर सकता है? पाकिस्तान के जो आतंकवादी एक्सपोज़ हो जाते हैं, अक्सर वह उन्हें “नॉन-स्टेट एक्टर्स” कहकर बच निकलने की कोशिश करता है, लेकिन पाकिस्तान में असली आतंकवादी तो वे “स्टेट एक्टर्स” हैं, जिन्हें वहां सेना, आईएसआई और सरकार कहते हैं। वे मूर्ख हैं, जो अब तक भी यह नहीं समझ पाए हैं कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और आतंकवाद ही उसका राष्ट्रीय धर्म है। यह बात समझ से परे है कि पाकिस्तान के आतंकवाद को हमेशा मुद्दा बनाए रखने वाला भारत उसे आतंकवादी देश घोषित करने से हिचकता क्यों है?

3. क्या भारत के पास पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हो रहे निरंतर दमन और वहां के नागरिकों के असंतोष को उजागर करने की कोई ठोस नीति है? हमारे कश्मीर में कुछ नहीं होता, फिर भी वह रोज़ मीडिया की सुर्खियों में रहता है, लेकिन उसके कब्जे वाले कश्मीर में सेना रोज़ सौ-पचास लोगों को रौंद भी जाए, उनकी बहन-बेटियों का सामूहिक बलात्कार भी कर ले, तो कहीं कोई ख़बर नहीं होती। आख़िर वहां हो रहे दमन की ख़बरें भी बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनें, इसके लिए भारत सरकार के स्तर से क्या रणनीति है?

4. क्या भारत अपने कब्जे वाले कश्मीर के उन आतंकी सरगनाओं पर नकेल कस सकता है, जिन्हें अलगाववादी नेता कहकर उनके गुनाहों को हल्का कर दिया जाता है? वे प्रतिदिन घाटी में हिंसा और अशांति को हवा दे रहे हैं, उनकी वजह से बेकसूर लोग मारे जा रहे हैं, मासूम बच्चे और नौजवान गुमराह हो रहे हैं, आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है, पाकिस्तान से उन्हें फंड प्राप्त हो रहा है, पर हमारा कोई कानून उन्हें जेल में ठूंसे रखने और फांसी पर लटकाने में सक्षम क्यों नहीं है? हम पाकिस्तान से तो अपेक्षा रखते हैं कि वह हाफ़िज सईद और मसूद अजहर जैसों पर कार्रवाई करे, लेकिन हम अपने कश्मीर में बैठे इन अलगाववादी नेताओं पर कार्रवाई कब करेंगे, जो वस्तुतः आतंकवादी ही हैं?

5. क्या भारत के पास ऐसे कदम उठाने का माद्दा है, जिनसे घाटी में स्थायी शांति बहाली तक आतंकवादियों और अलगाववादियों के मानवाधिकार स्थगित कर दिए जाएं? पाकिस्तान के इशारे पर आतंकवादी और अलगाववादी मिलकर प्रतिदिन आम नागरिकों के मानवाधिकारों की हत्या करें, हमारे बहादुर जवान मारे जाते रहें और हम उन दानवों को मानव समझकर उन्हें मानवाधिकार मुहैया कराते रहें, यह कहां का इंसाफ़ है भाई?

6. क्या भारत में देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाले मुद्दों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने हेतु कठोर कानून लाने का दम है? अगर हां तो ठीक। वरना कोई भी हमारी छाती पर चढ़कर नंगा नाच कर जाएगा और हम लोकतंत्र और संविधान की कॉपियां ही बांचते रह जाएंगे।

आतंकवाद को ख़त्म करने का योग भारत की कुंडली मे है या नहीं?
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7. क्या भारत के पास देश में धार्मिक कट्टरता के कारोबारियों पर लगाम कसने के लिए कड़े कानून बनाकर उन्हें लागू करने का दम है? दुनिया में अन्य कहीं आतंकवाद की चाहे जो भी वजहें हों, लेकिन भारत में आतंकवाद इसी कट्टरता का बाय-प्रोडक्ट है। अगर इस कट्टरता को काबू में नहीं किया गया, तो कौन शूरवीर आतंकवाद को ख़त्म कर सकता है?

8. क्या भारत के पास गुमराह किए जा रहे बच्चों और नौजवानों को बचाने के लिए पुरातनपंथी शिक्षा की जगह आधुनिक मानवतावादी शिक्षा लागू करने की कोई साहसिक योजना है? अगर नहीं, तो हमारी अगली पीढ़ियां भी आतंकवादियों को धर्म के रास्ते पर चलने वाला मसीहा मानती रहेंगी और हम जपते रहेंगे कि वे गुमराह हैं। लेकिन हमारे जाप व प्रलाप से बेपरवाह वे आतंकवादियों के हमराह बने रहेंगे।

9. क्या हमारी ख़ुफिया एजेंसियों की नज़र उन बुद्धिजीवियों और पत्रकारों पर है, जो सालों से आईएसआई का पैसा खा रहे हो सकते हैं, जो अक्सर पाकिस्तान आते-जाते हैं और जिनका कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों के साथ भी किसी-न-किसी बहाने उठना-बैठना होता ही रहता है? अगर नहीं, तो यह बौद्धिक बिरादरी और पत्रकारों की जमात भारत के सारे प्रयासों की हवा निकालती रहेगी। वह दो कदम आगे बढ़ना भी चाहेगा, तो फिजूल का हंगामा खड़ा कर ये उसे चार कदम पीछे खींच लाएंगे। उसे ऐसे बुद्धिजीवियों और पत्रकारों पर सिर्फ़ भारत और पाकिस्तान में ही नहीं, दुनिया के दूसरे मुल्कों में भी नज़र रखनी होगी, कि वहां वे किनसे मिलते-जुलते हैं और क्या-क्या गुल खिलाते हैं?

10. क्या हमारी सरकार में यह कबूल करने का साहस है कि भारत में मुख्यतः दो ही तरह के आतंकवाद हैं- एक वामपंथी आतंकवाद, जिसे हम नक्सलवाद या माओवाद कहते हैं और दूसरा इस्लामिक आतंकवाद, जिसे पाकिस्तान, द्विराष्ट्रवादियों और कट्टर धार्मिक सोच रखने वाले व्यक्तियों और समूहों का समर्थन प्राप्त है? अगर आप सच्चाई पर परदा डालते रहेंगे, तो समस्या का हल कभी नहीं निकलेगा। यहां प्रश्न यह भी है कि जब आप इसे वामपंथी/इस्लामिक आतंकवाद कहते हैं, तो लोगों को यह क्यों नहीं समझा पाते कि इसका मतलब हर वामपंथी/मुसलमान को आतंकवादी मानना नहीं, बल्कि यह रेखांकित करना है कि इस आतंकवाद की विचारधारा को वामपंथी/इस्लामिक कट्टरपंथियों से पोषण प्राप्त होता है?

कुल मिलाकर, क्या भारत सरकार में आतंकवाद और आतंकवादियों का समर्थन करने वाली सोच को जड़ से समाप्त कर देने का माद्दा है? अगर हां, तो अपेक्षित नतीजे ज़रूर मिलेंगे। अगर नहीं, तो पालते रहिए अपने पेट में जोंक और इस लोक-तंत्र को बन जाने दीजिए जोंक-तंत्र!

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