ऑक्सीजन की कमी से बचपन में ही गुज़र गए 63 रामनाथ कोविंद और नरेंद्र मोदी!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि व मानवतावादी चिंतक हैं।

गोरखपुर में 63 बच्चों की मौत की ख़बर सुनकर सन्न हूं। इतने सारे बच्चे, जिन्हें समूची इक्कीसवीं सदी जीनी थी, शायद 22वीं सदी में भी कुछ साल बिताना था, हम सब लोग जीवित रहे और वे हमें छोड़कर चले गए। और ज़्यादा घुटन इसलिए हो रही है, क्योंकि सुना है कि ये 63 बच्चे ऑक्सीजन की कमी से मरे हैं। न जाने इनमें कौन रामनाथ कोविंद, कौन नरेंद्र मोदी और कौन योगी आदित्यनाथ हो? आज उन सभी के मरने की ख़बर आई है।

अब दोष किसको दें? राष्ट्रपति भी गरीब परिवार से हैं। प्रधानमंत्री भी गरीब परिवार से हैं। मुख्यमंत्री भी संन्यासी हैं, तो गरीब ही हैं। इसके बावजूद अगर गरीबों की दशा नहीं सुधरती, उनके बच्चे बिना इलाज थोक में मर जाते हैं, तो दोष ज़रूर उनकी किस्मत का ही है!

गोरखपुर इनसेफलाइटिस से होने वाली मौतों के लिए पहले ही कुख्यात रहा है। इस मौसम में अमूमन हर साल वहां बड़ी संख्या में हमारे बच्चे मारे जाते हैं, लेकिन ग़रीबों की बात करने वाली सरकारें आज तक इस बीमारी की काट नहीं ढूंढ़ पाई हैं।

बिहार के गया, जहानाबाद, मुजफ्फरपुर समेत करीब 12-14 ज़िलों में भी हर साल इनसेफलाइटिस का कहर बरपता है। तब इसके ख़िलाफ़ कैम्पेन चलाते हुए डॉक्टरों से हमने जाना कि यह एक्यूट इनसेफलोपैथी सिंड्रोम है, जिसे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने गंदगी, गरीबी और कुपोषण से उपजने वाली बीमारी बताया था।

मेरा ख्याल है कि थोड़े बहुत अंतर के साथ गोरखपुर की बीमारी भी कुछ वैसी ही है। गंदगी, गरीबी और कुपोषण से जन्म लेने वाली। इस थ्योरी पर मुझे इसलिए भी विश्वास है, क्योंकि मैंने आज तक नहीं सुना कि इस बीमारी से सांसदों, विधायकों, पूंजीपतियों, ठेकेदारों के बच्चे मर गए।

यानी गरीबों की बात करने वाली किसी भी सरकार ने अगर गंदगी, गरीबी और कुपोषण पर सचमुच में चोट की होती, तो यह बीमारी कब की ख़त्म हो चुकी होती। योजनाएं तो कल भी थीं। आज भी हैं। लेकिन बच्चे मर जाते हैं। बीमारी मुई ये मरती नहीं। ऊपर से अब तो अस्पतालों की बदइंतज़ामी इनसेफलाइटिस से भी बड़ी बीमारी दिखाई दे रही है।

आदित्यनाथ योगी जब मुख्यमंत्री बने थे, तो लगा था कि कम से कम गोरखपुर की गरीबी तो अब दूर हो ही जाएगी और वहां तो इनसेफलाइटिस से बच्चों का मरना रुक ही जाएगा। लेकिन यह ख़बर आई है, तो दिल टूट गया है। उम्मीद टूट गई है। भरोसा टूट गया है। हर तरफ ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही है। वायुमंडल में ही कुछ ख़राबी आ गई लगती है।

जो लोग दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, उन्हें बता दें कि इस तरह के अपराध के लिए भारत में आज तक किसी को भी फांसी नहीं हुई है। यानी बच्चे तो मर गए, उन्हें मारने वाले कुल मिलाकर चैन से ही जीते रहेंगे।

जो कल को नरेंद्र मोदी या रामनाथ कोविंद बन सकते थे, वे मीडिया की ख़बरों का आंकड़ा बनकर ख़त्म हो गए। कल जब कोई अन्य बड़ी ख़बर आ जाएगी, तो यह आंकड़ा भी टीवी स्क्रीन से मिट जाएगा और अगले दिन से फिर हम जन गण मन अधिनायकों की जय-जय करने लगेंगे।

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