मानव-शृंखला के दौरान बच्चों को पहुंचे नुकसान पर बिहार सरकार से मांगी जाए रिपोर्ट
बिहार में मानव-शृंखला के दौरान घटी अनेक दुर्घटनाओ में बड़ी संख्या में बच्चे बेहोश हुए और कुछ की मौत की भी ख़बरें हैं। मैंने पहले ही कहा था कि नीतीश कुमार पहले भीड़ को संभालना सीख लें, फिर भीड़ जुटाने की राजनीति करें, क्योंकि जब-जब वे भीड़ जुटाते हैं, बेगुनाह नागरिकों की जान ख़तरे में पड़ जाती है। पटना में छठ घाट पर मची भगदड़ से लेकर गांधी मैदान में मची भगदड़ और हाल में मकर-संक्रांति के मौके पर हुई नाव-दुर्घटना तक यह बात प्रमाणित हो चुकी है।
मुझे दुख है कि एक बार फिर से हमारे मुख्यमंत्री ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए बेशुमार बच्चों की ज़िंदगी दांव पर लगा दी। लेकिन मकसद जब वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना हो, तो बिहार के बच्चों की परवाह कोई क्यों करे? मानव-शृंखला को ऐतिहासिक बताने वाले लोग अपने को उन परिवारों की जगह रखकर देखें, जिनके बच्चे बेहोश हुए या जिनके लोगों की मौत हुई, फिर बयान दें। भोले-भाले मासूम बच्चों को राजनीति का हथियार बनाया जाना ठीक नहीं।
एक परिपक्व लोकतंत्र में हर व्यक्ति के पास स्वयं यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि वह किसी सरकार या सियासी दल के अभियान में शामिल होगा या नहीं। चूंकि छोटे बच्चे अपना अच्छा या बुरा स्वयं तय नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें राजनीतिक लाभ के लिए आयोजित किए जा रहे ऐसे कार्यक्रमों में नहीं घसीटा जाना चाहिए। मुझे यह जानकारी मिली है कि सरकार और प्रशासन की तरफ़ से सभी स्कूलों और शिक्षकों पर इस बात का अनुचित, अमानवीय और अलोकतांत्रिक दबाव डाला गया कि वे सारे बच्चों को इस मानव-शृंखला में शामिल करें।
इसलिए, एक ज़िम्मेदार बिहारी और बच्चों का एक समर्पित लेखक होने के नाते मैं बच्चों के ऐसे शोषण की निंदा करता हूं। चूंकि पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार को मानव-शृंखला आयोजित करने की इजाज़त दी थी, इसलिए अब उसे मानव-शृंखला के दौरान बच्चों को पहुंचे नुकसान के लिए सरकार से जवाब-तलब ज़रूर करना चाहिए। साथ ही, मानवाधिकार आयोग और बाल आयोग से भी मेरी गुज़ारिश है कि इस मामले में वे बिहार सरकार से सफाई मांगें।
इस बात की पड़ताल ज़रूरी है कि इतने बड़े आयोजन के लिए सरकार ने क्या इंतज़ाम किये थे। ज़्यादातर जगहों पर
- छोटे-छोटे बच्चों को कई-कई घंटे भूखे-प्यासे क्यों खड़े रखा गया?
- भूख-प्यास लगने की स्थिति में बच्चों के खाने-पीने के लिए इंतज़ाम क्यों नहीं था?
- प्राथमिक चिकित्सा दलों को क्यों तैनात नहीं रखा गया?
- एंबुलेंस की व्यवस्था क्यों नहीं थी?
- बच्चों को लाने ले जाने के लिए परिवहन की उचित व्यवस्था क्यों नहीं थी?
साथ ही, इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि क्या सरकार ने स्कूलों और शिक्षकों पर दबाव डालकर बच्चों को लाइन में खड़े होने के लिए मजबूर किया गया? बिहार में शराब-बंदी का विरोध कोई नहीं कर रहा, लेकिन शराब-बंदी पर राजनीति चमकाने के लिए तुगलकी फैसलों और कानूनों का विरोध ज़रूरी है।