मंदिर-मस्जिद तोड़ने से भी बड़ा है केजरीवाल का अपराध!
कांग्रेस, बीजेपी, लालू, नीतीश, माया, मुलायम- किसी से मुझे उतनी शिकायत नहीं, जितनी केजरीवाल से, क्योंकि केजरीवाल की वजह से देश में वैकल्पिक राजनीति का सपना टूट गया। अब जब भी कोई व्यक्ति ईमानदारी, बदलाव या सुधार की बात करता है, लोग उसे शक की निगाह से देखने लगते हैं। कम से कम इस पीढ़ी के नौजवान तो अब किसी जन-आंदोलन के लिए खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे।
बाबा कबीरदास ने कहा है-
“मंदिर तोड़ो, मस्जिद तोड़ो, यह सब खेल मज़ा का है।
पर किसी का दिल मत तोड़ो, यह तो वास खुदा का है।”
केजरीवाल ने इस देश के 125 करोड़ लोगों का दिल तोड़ा है, इसलिए उनसे तो ख़ुदा को रूठना ही है। कबीरदास की परिभाषा के मुताबिक, उनका गुनाह उन लोगों से भी बड़ा है, जिन्होंने पिछले एक हज़ार साल में इस देश में मंदिरों-मस्जिदों को तोड़ा है या अन्य तरह के अपराध और भ्रष्टाचार किये हैं।
बदलाव की उम्मीद में लाखों नौजवानों ने केजरीवाल के लिए अपना तन-मन-धन अर्पित कर दिया, उनकी आलोचना करने वाले हर शख्स को बिना जाने-समझे भ्रष्ट, बेईमान और बदलाव को बाधित करने वाला माना, उनके लिए ऐसी अंधभक्ति दिखाई, जैसी ईश्वर और अल्लाह के लिए भी नहीं दिखाते। लेकिन अब कुछ वेतनभोगी कार्यकर्ताओं, भाड़े के समर्थकों और भ्रष्टाचार के सहयोगियों को छोड़कर तमाम लोगों का भरोसा उनसे टूट चुका है।
केजरीवाल ने बड़ी-बड़ी बातें की थीं. खुद को ईमानदार और बाकी सबको चोर, भ्रष्ट, बेईमान बताया था। लेकिन जब उनपर भरोसा करके लोगों ने उन्हें मौका दिया, तो उन्होंने एक-एक करके जनता के सारे भरम तोड़ डाले। कांग्रेस के ख़िलाफ़ आंदोलन करके कांग्रेस के ही समर्थन से सरकार बना ली। जिस गणतंत्र की बदौलत मुख्यमंत्री बने, राजपथ पर उसी की परेड को बाधित करने की धमकी देने लगे।
फिर, रातों-रात प्रधानमंत्री बनने का सपना लेकर 49 दिन में ही सरकार छोड़कर भाग गए, लेकिन लोकसभा चुनाव में कुछ ख़ास नहीं कर पाए, तो जनता से कहा कि गलती हो गई, माफ़ कर दो, अब दिल्ली छोड़कर कभी नहीं भागूंगा। लेकिन हाल ही में हमने देखा कि एक बार फिर से वे दिल्ली को छोड़ पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के लिए किस कदर लालायित थे। यह अलग बात है कि पंजाब की जनता ने भी उनकी मुराद पूरी नहीं होने दी।
बंगला, गाड़ी, तनख्वाह, सिक्योरिटी नहीं लेने का ढोंग रचने वाले केजरी भाई और उनके लगुए-भगुओं ने न सिर्फ़ सब कुछ लिया, बल्कि दूसरी पार्टियों के नेताओं से भी बढ़-चढ़कर लिया। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना डाला। इस बड़े पैमाने पर रेवड़ियां बांटने की कोशिश इससे पहले दिल्ली की किसी भी सरकार ने नहीं की थी। इस मामले में भी चुनाव आयोग का फैसला आने ही वाला है।
इतना ही नहीं, दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी, तो वे हर बात के लिए मुख्यमंत्री को दोषी ठहराते थे। अपनी सरकार बनी, तो बात-बात पर प्रधानमंत्री को दोषी ठहराने लगे। आए दिन लेफ्टिनेंट गवर्नर से बेमतलब पंगे लेते रहे। नियमों-कानूनों के हिसाब से काम करने में उन्हें अपनी हेठी महसूस होती रही। नियुक्तियों और तबादलों को तो उन्होंने ऐसा समझ लिया कि इनके लिए किसी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं, उनकी इच्छा ही अंतिम है।
फिर, जो लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा था, वह सब भी हुआ। एक-एक करके केजरीवाल के कई मंत्री और विधायक भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी समेत कई मामलों में फंसे। स्वयं इस “ईमानदार” नेता ने अपनी छवि चमकाने के लिए जनता के सैकड़ों करोड़ दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में विज्ञापन देकर फूंक दिए। अपने राजनीतिक केस के वकील की फीस भी दिल्ली की जनता के पैसे से ही चुकाने की कोशिश की। शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट ने भी इस व्हाइट कॉलर नेता की पोल खोलकर रख दी।
पर अगर कपिल मिश्रा के आरोप अगर सच्चे हैं, तो यह तो जनता का भरोसा तोड़ने की इंतहां है। उनकी सरकार में भी भ्रष्टाचार किसी अन्य पार्टी की सरकार से कम नहीं रहा है, इसका संदेह तो लगातार उनके आचरण से हो ही रहा था, लेकिन अब उनके मंत्री ने जिस मज़बूती और आत्मविश्वास के साथ उनपर दो करोड़ रुपये कैश लेने का आरोप लगाया है, उसके बाद कुछ कहने को बच ही नहीं जाता।
इसलिए, केजरीवाल जितनी तेज़ी से चढ़े, उतनी ही तेज़ी से उनका पराभव भी सुनिश्चित है। उनके राजनीतिक ताबूत में कपिल मिश्रा ने पहली कील ठोंकी है। अभी और भी कीलें ठोंकी जाएंगी। बस देखते रहिए।