बहस लाइव ALARM: क्या कम हो रही है प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता?
क्या पिछले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है? अगर बीजेपी के विजय रथ की गति को देखेंगे, तो लगेगा नहीं, लेकिन अगर सोशल मीडिया से मिल रहे संकेतों का विश्लेषण करेंगे, तो कहा जा सकता है कि बीजेपी के लिए एलार्म बजने लगा है। 14 और 15 अगस्त को देश के दो जाने-माने पत्रकारों द्वारा नरेंद्र मोदी के भाषण को लेकर पूछे गए सवालों पर अधिकांश लोगों की जैसी प्रतिक्रिया आई है, वह चौंकाने वाली है।
सबसे पहले एनडीटीवी के राजनीतिक संपादक और लंबे अरसे तक बीजेपी बीट कवर कर चुके न्यूट्रल छवि के पत्रकार अखिलेश शर्मा ने 14 अगस्त को अपने फेसबुक पोस्ट में पूछा- “पीएम लाल क़िले से कल क्या ऐलान कर सकते हैं?”
इसके बाद 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद वरिष्ठ लेखक-पत्रकार और न्यूट्रल मीडिया प्रा. लि. के निदेशक अभिरंजन कुमार ने भी अपने फेसबुक पोस्ट में एक सवाल पूछा- “पीएम का भाषण आपको कैसा लगा?”
लेकिन दोनों सवालों के जवाब में आई अधिकांश टिप्पणियों से ऐसा लगा कि लोगों की मोदी से नाराज़गी है और अब वे उनके भाषण को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे, जैसे पहले लिया करते थे।
सबसे पहले विश्लेषण करते हैं अभिरंजन कुमार के सवाल यानी “पीएम का भाषण आपको कैसा लगा?” के जवाब में आई प्रतिक्रियाओँ का।
ख़बर लिखे जाने तक टिप्पणी करने वाले 24 लोगों में से सिर्फ़ तीन ने ही पीएम मोदी के भाषण की सीधी तारीफ़ की।
(1) मनोज कुमार– “तथ्यात्मक, सारगर्भित, समीचीन, मार्गदर्शक एवं संदेशप्रद।”
(2) दीपक शर्मा– “आतंकवाद पर अन्य देशों का साथ मिलने वाली बात अच्छी लगी। पहली बार किसी प्रधान सेवक ने ऐसी बात की प्राचीर से!!”
(3) अनूप नारायण सिंह– “पहली बार किसी ने देश के ज्वलंत मुद्दों की चर्चा करते हुए उनके निदान की भी चर्चा की।”
दो लोगों ने हालांकि सीधे तौर पर यह तो नहीं कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण उन्हें अच्छा लगा, लेकिन उनके भाषण की मुख्य बात जो उन्हें समझ में आई, वह ज़रूर लिख दिया।
(1) शम्भु कुमार– “भव्य और दिव्य भारत की परिकल्पना, जहां जातिवाद न हो, सम्प्रदायवाद का खेल न हो, भूख-भय से मुक्त भारत हो।”
(2) मोहन सिंह– “जिन्होंने गरीबों को लूटा है, उन्हें गरीबों को लौटाना ही पड़ेगा– प्रधानमंत्री मोदी !!!”
अगर उपरोक्त दोनों टिप्पणियों को भी प्रधानमंत्री के समर्थन में मान लें, तो जहां उनके समर्थन में केवल 5 टिप्पणियां आईं, वहीं उनकी आलोचना या उनके प्रति नाराज़गी में कुल 17 टिप्पणियां आईं। पहले ये 9 टिप्पणियां देखें-
(1) विवेक रंजन श्रीवास्तव– “गाली या गोली नहीं, गले लगाने का नोबल शांति पुरस्कार वाला हल, जो 70 सालों से कारगर नहीं रहा।”
(2) अखिलेश द्विवेदी– “भाषण शैली में अजीबोगरीब परिवर्तन दिखा। बेचैन से दिख रहे प्रधानमंत्री जी हर वाक्य को ज़ोर देकर बोलते दिखे। ऐसा लग रहा था बातों में दम नहीं है, वो अपनी आवाज़ से दम देना चाहते हैं।”
(3) शशि शंकर– “आज भी वे पिछली सरकार को कोसते रहते हैं। लगता है, अभी तक मोदी जी इलेक्शन मोड से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। अब उनको नाकामियों की ज़िम्मेदारी भी लेनी होगी। तीन साल से सत्ता में हैं, तो नाकामी की ज़िम्मेदारी भी अब बनती है। सिर्फ़ कोसने से काम नहीं चलेगा।”
(4) राजू कुमार– “मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने व बनने के 3 वर्षों बाद कांग्रेस व भाजपा में कोई अंतर नहीं प्रतीत हो रहा।”
(5) अरुण साथी– “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भाषण, भाषण जैसा ही लगा…”
(6) कुमार नीरज– “पीएम साहब का संबोधन में सवा सौ करोड़ जनता बोलना कहां तक उचित है, जबकि अभी देश का पोपुलेशन लगभग 134 करोड़ है। कृपा कर तीन साल पहले की बात को अभी न दुहराएं पीएम साहब। रटी रटाई बात को अब तो थोड़ा चैंज करें। अब आप सीएम नहीं, पीएम बन गए हैं।”
(7) वीरेंद्र कुमार निराला– “सिर्फ झूठ… अब तो झूठ को ही और बड़ा झूठ का पुलिंदा… और झूठ क्या बोले, खुद भी नहीं समझ पा रहे हैं मोदी जी… बस इनको एक ही चीज की लगी है, चारों तरफ मोदी मोदी हो… नोटों से गांधी जी को हटाना है, अपना फोटो लगाना है… ये मोदी जी का सपना है।”
(8) आलोक कुमार– “मोदीजी का भाषण आज तथ्य से परे रहा। पता नहीं कौन गलत डाटा देता है!”
(9) मृत्युंजय प्रभाकर ने अपने एक लेख का लिंक शेयर किया, जिसका शीर्षक था- “पीएम साहब, लाल किले से आकाश में हाथ घुमाकर भाषण देने से आप ज़िम्मेदारी से मुक्त थोड़े न हो जाएंगे!”
तीन लोगों ने प्रधानमंत्री के भाषण को चुनावी भाषण करार दिया। ज़रा उनकी भी टिप्पणियां देखें-
(1) संजीत कुमार– “नेक्स्ट इलेक्शन भी एक ही नारा एक ही नाम, जय श्री राम के स्लोगन से होगा… बाकी सब आंकड़े हैं।”
(2) कुमार गौरव– “वह जिस पद पर हैं, उससे भ्रामक जानकारी देना देश को गुमराह करना भी है। नोटबंदी, नौजवान आज रोजगार देने की स्थिति में है, जैसे कई मुद्दों पर तथ्यात्मक गलतियां थीं, क्योंकि वह जानते हैं कि कोई उनसे आंकड़े नहीं मांगेगा। पूर्ण रूप से एक चुनावी भाषण अधिक लगा।”
(3) सुबोध कुमार– “आतंकवाद से भी खौफ़नाक है जातिवाद। जब तक जातिविहीन समाज की परिकल्पना नहीं की जाएगी, लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति घृणा और अपमान का भेदभाव बना रहेगा, ऐसे में दिव्य भारत की परिकल्पना सार्थक नहीं होगी। कुल मिलाकर, मोदी जी अगले चुनाव के लिए ज़मीन तैयार करने की मानसिकता के साथ खड़े दिखे।”
तीन लोगों ने जहां साफ़ कह दिया कि वे अब मोदी जी का भाषण नहीं सुनना चाहते, वहीं दो लोगों ने एक-एक शब्द का दो-टूक जवाब दे दिया।
(1) कुंदन कुमार– “मैं तो उनको सुनना भी नहीं चाहता, लोग बता रहे थे उबाऊ था।”
(2) मोनू कुमार– “हम न सुनते अब पीएम का कोई भी भाषण। वही पुराना घिसा-पिटा बात रहता है। ऐसा लगता है, जैसे साहब आज भी 2014 वाले इलेक्शन मोड में हैं।”
(3) रवींद्र कुमार– “भाषण सुना ही नहीं, तो टिप्पणी क्या दें?”
(4) शशांक सौनिक– “फ़ीका!”
(5) संजीव सिंह– “मीनिंगलेस!” (निरर्थक)
अभिरंजन कुमार के इस पोस्ट और उसपर आई टिप्पणियों को आप यहां देख सकते हैं-
अब विश्लेषण करते हैं वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा के पोस्ट पर आई टिप्पणियों की, जिन्होंने 15 अगस्त से एक दिन पहले पूछा था- “पीएम लाल क़िले से कल क्या ऐलान कर सकते हैं?”
जवाब देने वाले 40 लोगों में से सिर्फ़ 11 लोगों ने सकारात्मक जवाब दिए, जबकि 29 ने इसे मज़़ाक में उड़ा दिया।
अनेक लोगों ने भाषणों के दौरान अक्सर प्रधानमंत्री के भावुक हो जाने का मखौल उड़ाया है।
(1) सचिन गोस्वामी- आँखों में आँसू होंगे, बड़े भारी मन से अंतरात्मा की आवाज़ आएगी।
(2) मोहित श्रीवास्तव- बाल्टी भर आंसू
(3) विजय मलिक- रोएंगे
(4) साहल कुरैशी- भाई, एलान का तो पता नहीं, लेकिन कल सुबह पहले गोरखपुर के बच्चों की मौत पर भावुक ज़रूर होंगे पीएम और इसी के साथ लाल किले पर भाषण देते हुए भावुक होने वाले पहले पीएम बन जाएंगे हमारे मोदी जी!!!
(5) सान्या मल्होत्रा- जब मैं छोटा था, मेरी मां न… XYZ
कई टिप्पणीकारों ने अपने ही अंदाज़ में कहा है कि पीएम का भाषण धीरे-धीरे अपना चार्म खोता जा रहा है।
(1) प्रमोद कुमार- भाइयो और बहनों…
(2) भारत भूषण- मित्रो…
(3) आदित्य विक्रम मालीवाल- मित्रो…
(4) रोशन जोशी- भाइयो और बहनों… यह सुनते ही डर लगता है।
(5) सुमित कुमार जीनवाल- कुछ नहीं, आज पूरी रात रटेंगे बस भाषण को… मेरे प्यारे भाइयो बहनो… बस…
अनेक लोग इस बात से भी नाराज़ दिखे कि घोषणाओं पर अमल नहीं हो रहा।
(1) संदीप ठाकुर- बाबा जी का ठूल्लू… कुछ भी एेलान करें… क्या फर्क पड़ता है.. अमल ताे हाेना है नहीं।
(2) नीलम शुक्ला देवांगण- मुझसे पीएमओ ने वाया मेल सुझाव मांगा था, तो मैंने तो यही लिखा कि इस बार वही कहा जाए, जो एक साल में पूरा किया जा सके।
(3) अब्दुल नूर सिबली- पहले जो एलान किया है, उसे पूरा करें।
(4) उमंग मिश्रा- ऐलान जितना चाहो करा लो।😀😀
(5) वीरेंद्र श्रीवास्तव- कुछ भी नहीं, सिर्फ़ बोलेंगे
(6) चंदर देवगण- कोई नया जुमला
(7) विजय कुमार सिंह- दुनिया भर के सब काम तो उन्होंने कर दिए। भारत को विश्व का सिरमौर बना दिया। जवानों को रोजगार और अमन चैन का वातावरण दे दिया। लगता है, उस दिन फिर से अपने वैवाहिक जीवन का उद्घोष करके गृहस्थ जीवन मे प्रवेश करने की बात कह सबको चौंकाने वाले मंजर का अवलोकन कराएंगे।
(8) मनोज कुमार- हमें तो सिर्फ 15 लाख की आशा है… बैंक एकाउंट तैयार रखें…
कई लोगों ने गोरखपुर के अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते बच्चों की मौत को लेकर प्रधानमंत्री पर तंज कसा है।
(1) अभिषेक पांचाल- ऑक्सीजन देने का
(2) अरशद जमाल- भाइयो और बहनो, मैं बच्चों की मौत पर बोलना तो बहुत चाह रहा था, लेकिन ट्विटर हैंग हो गया था। सो सॉरी।
(3) धनंजय- सबका खात्मा सबका विनाश… और क्या बचा है अब?
कुछ और चुनिंदा टिप्पणियां देखें, जिनमें लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी का मखौल उड़ाया है।
(1) कुमार वीर भूषण- झोला तैयार है, कभी भी निकल लूंगा।
(2) वीरेंद्र बेहुरा- आप इनाम की घोषणा कर दो अगर कोई सही अनुमान लगाता है प्रधानमंत्री 15 अगस्त को क्या कहेंगे अनुमान सही होने पर उसे जम्मू कश्मीर में 3 दिन चार रात का टूर पैकेज दिया जाएगा।
(3) प्रतिभा राय- इस देश मे सिर्फ एक ही पार्टी होनी चाहिए और हम उस दिशा में जी जान से जुटे हुए हैं। हर हाल में अगले साल आज ही के दिन ये वादा पूरा करूँगा।
(4) शैलेश शर्मा- वो कसमें वादे निभाएंगे हम। जीत के रहेंगे 2019 की जंग। वो झूठा है, वोट न उसको देना। नोटबंदी भी कर दें, तो भी उफ्फ मत कर देना!!!
अखिलेश शर्मा के इस पोस्ट और उसपर आई टिप्पणियों को आप यहां देख सकते हैं-
इस प्रकार दोनों पत्रकारों के सवालों के जवाब देने में कुल 64 लोगों ने भागीदारी की, जिनमें सिर्फ़ 16 लोग प्रधानमंत्री मोदी के प्रति सकारात्मक दिखे, जबकि 46 लोगों की प्रतिक्रिया प्रतिकूल नज़र आई। दो लोगों का स्टैंड पता नहीं चल सका।
यद्यपि यह सैम्पल काफी छोटा कहा जा सकता है, लेकिन इनमें हिस्सा लेने वाले लोगों ने अपने विचार स्वतंत्र और निर्भीक तरीके से रखे हैं। साथ ही, वे अलग-अलग जातियों, समुदायों और सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग हैं। अगर उनकी प्रतिक्रियाओं को एक संकेत माना जा सके, तो बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को अब सावधान हो जाना चाहिए।
हो सकता है कि ऐसी प्रतिक्रियाएं गोरखपुर में बच्चों की मौत से उपजे गुस्से की वजह से आई हों, लेकिन यह भी मुमकिन है कि लोग सरकार द्वारा पिछले तीन साल में किए गए काम और उनके नतीजों का आकलन करने लगे हैं।
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हमे लगता बहस लाइव बेकार बेमतलब है
अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आधुनिकता की दौड़ में भारतवर्ष को पीछे नहीं देखना चाहते हैं। उन्होंने युवा वर्ग से भी इसे आन्दोलन का रूप देने का आह्वान किया। किन्तु कई मामलों में उनका तटस्थ रहना खल गया। बहरहाल, अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए मोदी को सवा सौ करोड़ के जुमले से भी आगे कुछ करना होगा, अन्यथा जैसी पूर्ववर्ती सरकार वैसी ही मोदी सरकार।