इस देश के हर आदमी में एक केजरीवाल छिपा बैठा है!

अभिरंजन कुमार देश के जाने-माने पत्रकार, कवि व मानवतावादी चिंतक हैं।

आजकल समाचार बनाना बेहद आसान है। एक इस पक्ष का बयान लगा दीजिए। एक उस पक्ष का बयान लगा दीजिए। बन गया संतुलित समाचार। समाचार लिखने वाले की भी निष्पक्षता बुलंद रहती है। अगर वह अखबार के लिए रिपोर्ट कर रहा है, तो अखबार का हीरो। अगर टीवी के लिए रिपोर्ट कर रहा है, तो टीवी का हीरो। जनता गदगद रहती है। उससे सभी बनाकर भी रखना चाहते हैं। बनाकर रखेंगे, तो बंदा कभी न कभी काम आ जाएगा।

लेकिन विचारों की दुनिया बड़ी विकट है। इसमें अगर आप एक सही विचारक हैं, तो सही को सही और ग़लत को ग़लत तो कहेंगे? फिर क्या है, आपने जिस भी पक्ष को गलत कहा, वह आपके ख़िलाफ़ हो जाएगा। आपको भ्रष्ट, बेईमान और दलाल बताने लगेगा। लगे हाथ पत्रकारिता का पाठ भी पढ़ाएगा। और ऐसे-ऐसे पाठ पढ़ाने वाले एक नहीं, कई खड़े हो जाएंगे। अब पढ़ते रहिए सबसे पत्रकारिता का पाठ।

और भी बड़ी मुश्किल तो तब आती है, जब आप कबीरदास बनने की कोशिश करते हैं। कबीरदास बनने का मतलब है कि एक मुद्दे पर एक की खिंचाई कर दी, दूसरे मुद्दे पर दूसरे की खिंचाई कर दी। जब पहले मुद्दे पर आपने पहले की खिंचाई की, तो पहले की गालियां सुनिए। दूसरे मुद्दे पर जब दूसरे की खिंचाई करेंगे, तो दूसरे की भी गालियां सुनिए। कभी पहला, तो कभी दूसरा पक्ष आपको भ्रष्ट, बेईमान और दलाल बताता रहेगा।

कई लोग ऐसे होते हैं, जो अपेक्षा करते हैं कि एक लेख या टिप्पणी में अगर आपने एक पक्ष की आलोचना की है, तो उसमें अनिवार्यतः दूसरे पक्ष की भी आलोचना कीजिए, चाहे आपको आलोचना के वैसे बिन्दु नज़र आते हों या नहीं। मसलन, अगर किसी लेख में आपने आतंकवादियों की निंदा की, तो उसी लेख में आपको सेना की भी आलोचना करनी पड़ेगी, वरना आपकी निष्पक्षता पर फौरन उंगली उठ जाएगी। विचारक बेचारा संतुलन बनाते-बनाते बेदम।

दरअसल, इस देश के हर आदमी में एक केजरीवाल छिपा बैठा है, जो खु़द को अच्छा और बाकी सबको बुरा समझता है। जिस बात को आप दूसरों के लिए गलत मानते हैं, उसी बात को अपने लिए गलत नहीं मानते। दूसरे का बेटा बलात्कार करे, तो उसे फांसी होनी चाहिए। लेकिन अगर अपना कोई बलात्कारी निकल जाए, तो पहले तो उसे निर्दोष बताएंगे, बात बढ़ने पर नाबालिग साबित करने की कोशिश करेंगे, और बात बढ़ने पर कहेंगे- “गलती हो गई, तो क्या फांसी चढ़ा दोगे?”

इस देश के हर आदमी में एक केजरीवाल छिपा बैठा है, जो खु़द को अच्छा और बाकी सबको बुरा समझता है। जिस बात को आप दूसरों के लिए गलत मानते हैं, उसी बात को अपने लिए गलत नहीं मानते।                                 – अभिरंजन कुमार

लोग ख़ुद तो विचारों की आज़ादी चाहते हैं, लेकिन दूसरों को यह आज़ादी नहीं देना चाहते। अपने प्रति चरम-सहिष्णुता की अपेक्षा रखने वाले लोग दूसरों के प्रति असहिष्णुता दर्शाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। हर आदमी चाहता है कि आपके विचार उसके विचारों से हू-ब-हू मेल खाने चाहिए। मुझे नहीं मालूम कि बहुत सारे लोग जो दूसरों कों अक्सर मर्यादा का पाठ पढ़ा जाते हैं, अपने-अपने जीवन में वे मर्यादाओं का कितना पालन करते हैं!

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