कोर्ट और कांग्रेस का रिश्ता देख याद आ जाती है साधु और बिच्छू की कहानी!
कांग्रेस ने पहले न्याय और लोकतंत्र का खूब मखौल उड़ाया है, इसका मतलब यह नहीं कि न्याय मांगने और हासिल करने का उसे अधिकार नहीं है। लेकिन उसे हड़बड़ाना नहीं चाहिए और कोर्ट पर पूरा भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि उसके सामने ऐसे उदाहरण हैं, जहां भारत की अदालतें केंद्रीय सत्ता से भी प्रभावित नहीं हुई हैं। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप को सही पाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दे दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें आधी-अधूरी राहत ही मिली थी, जहां 24 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक तो लगा दी गई थी, लेकिन संसद में इंदिरा गांधी के वोटिंग अधिकार को बहाल नहीं किया गया था। इसके बाद अगले ही दिन 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के बंधक लोकतंत्र की रक्षा के लिए देश में इमरजेंसी लगा दी थी।
तो कांग्रेस को हड़बड़ाना नहीं चाहिए। देश का सुप्रीम कोर्ट निष्पक्ष है। इसे कांग्रेस ने खुद अपनी नेता इंदिरा गांधी के प्रसंग में भी टेस्ट कर लिया है। जहां तक कर्नाटक के संबंध में उसकी याचिका का सवाल है, तो सुप्रीम कोर्ट ने उसपर पूरी रात सुनवाई की है। येदियुरप्पा का शपथग्रहण नहीं रोका है, जो कि रोकने का आधार बनता भी नहीं था, क्योंकि कोर्ट के पास न तो येदियुरप्पा द्वारा बहुमत के दावे के समर्थऩ में दी गई चिट्ठी थी, न राज्यपाल द्वारा येदियुरप्पा को सरकार बनाने का निमंत्रण देने के लिए दी गई चिट्ठी थी। लेकिन कोर्ट ने दोनों पक्षों से अपने समर्थक विधायकों की लिस्ट सौंपने को कहा है। बीजेपी से राज्यपाल को दी गई चिट्ठी दिखाने को भी कहा है। राज्यपाल द्वारा बीजेपी को बहुमत साबित करने के लिए दिए गए 15 दिन के लंबे वक्त पर भी सवाल उठाए हैं।
इसलिए, देश की जनता को कोर्ट पर भरोसा है, कांग्रेस को भी यह भरोसा कायम रखना चाहिए, क्योंकि कोर्ट और उसके बीच जो रिश्ता है, उसमें उसी ने बार-बार कोर्ट की गरिमा को गिराने का प्रयास किया है, जबकि कोर्ट ने उसे हर बार न्याय ही दिया है। दो साल पहले मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा केंद्र सरकार को झटका देते हुए कांग्रेस की हरीश रावत सरकार बहाल कर दी थी। इसके बाद जुलाई 2016 में अरुणाचल प्रदेश में भी उसने केंद्र सरकार को झटका दिया और कांग्रेस की नबाम टुकी सरकार बहाल कर दी थी।
इसे भी एक अजीब इत्तिफाक ही कहना चाहिए कि हाल-फिलहाल चार जजों के कंधे पर बंदूकर रखकर कांग्रेस और उसकी कुछ सहयोगी पार्टियों ने जिस तरह से सु्प्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और प्रकारांतर से सुप्रीम कोर्ट पर हमले किए हैं, उसके बावजूद बार-बार उसे सुप्रीम कोर्ट का ही दरवाज़ा खटखटाना पड़ रहा है। इसलिए, हमारी तो सलाह कांग्रेस को एक बार फिर से यही होगी कि अपने स्वार्थ की सियासत में वह सुप्रीम कोर्ट को चोटिल करने के प्रयास न करे।
कोर्ट और कांग्रेस के रिश्ते को देखकर मुझे बचपन में पढ़ी साधु और बिच्छू वाली कहानी याद आ जाती है, जिसमें साधु बार-बार पानी में डूबते हुए बिच्छू को अपनी हथेली पर लेकर बचाने की कोशिश करता था, लेकिन बिच्छू बार-बार उस साधु की हथेली में डंक मार देता था। इसी तरह कोर्ट ने भी बार-बार कांग्रेस को न्याय दिया है, लेकिन कांग्रेस ने बार-बार उसकी गरिमा तार-तार करने के प्रयास किए हैं।
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