जीव-हत्या, वेश्यावृत्ति और नशाखोरी को जस्टिफाइ करने वाले मनुष्य नहीं हैं!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं।

मानवता, मानवीय गरिमा और मानवीय स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए तीन चीज़ों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे और इन्हें किसी भी किस्म के रोज़गार न जोड़ा जाए। एक- मानवता के लिए जीव हत्या रुके। दो- मानवीय गरिमा के लिए वेश्यावृत्ति रुके। तीन- मानवीय स्वास्थ्य के लिए पूर्ण नशाबंदी हो।

बीजेपी और आरएसएस सिर्फ़ गोहत्या पर पाबंदी की वकालत करते हैं, जबकि मेरा स्टैंड यह रहा है कि समस्त पशु-पक्षियों पर अत्याचार रुकना चाहिए। गोहत्या पर पाबंदी हिन्दुत्व की रक्षा के लिए ज़रूरी है, लेकिन सभी पशु-पक्षियों की हत्या रोकना मानवता की रक्षा के लिए ज़रूरी है।

इसलिए जब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों पर रोक लगाने का फ़ैसला किया, तो मैं बहुत ख़ुश हुआ। सोचा- चलो, पशु-पक्षियों की हत्या पर पूर्ण रोक के उच्च मानवीय आदर्श तक हम जब पहुंचेंगे तब पहुंचेंगे, इस फ़ैसले से फिलहाल कुछ जीव-जंतुओं के प्राण तो बचेंगे।

लेकिन कई विरोधी नेता इस नेक कदम की भी जिस तरह से आलोचना कर रहे हैं, वह उनकी अमानवीय सोच का परिणाम है। उन्हें सिर्फ़ यह दिखाई दे रहा है कि कुछ लोग इस कदम से बेरोज़गार हो जाएंगे, लेकिन वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि यह एक ऐसा रोज़गार है, जिसमें बेगुनाह पशु-पक्षियों की हत्या की जाती है, उनकी चमड़ी उतारी जाती है, उनका मांस बेचा जाता है और उनके ख़ून की नदियां बहाई जाती हैं।

भई आप बुरा मानें या भला… जिस तरह से रोज़गार के नाम पर मैं वेश्यावृत्ति का समर्थन नहीं कर सकता, उसी तरह रोज़गार के नाम पर मैं निर्दोष पशु-पक्षियों की हत्या का भी समर्थन नहीं कर सकता। रोज़गार के सभ्य-सुसंस्कृत और मानवीय तरीके ढूंढ़े जाने चाहिए।

सुपारी लेकर हत्याएं करना भी कई लोगों का रोज़गार ही है, लेकिन हम उनका तो समर्थन नहीं करते। क्यों? क्योंकि यहां आपकी (मनुष्य की) जान का सवाल है, लेकिन अगर सवाल बेगुनाह पशु-पक्षियों की जान का हो, तो फिर तो रोज़गार के नाम पर हम सुपारी किलरों की फ़ौज खड़ी हो जाने देंगे और जानवरों के इन सुपारी किलरों का समर्थन भी करेंगे। वाह भई वाह! क्या सोच है!

सबसे आपत्तिजनक टिप्पणी मुझे समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल की लगी, जो कह रहे हैं कि अगर बूचड़खाने बंद कराए गए तो इससे आतंकवाद बढ़ेगा। वस्तुतः आतंकवाद जैसी कुत्सित सोच को इस तरह के बयानों से ही बढ़ावा और समर्थन मिलता है। इनके कहने का तात्पर्य तो यही समझ में आ रहा है कि अगर मुझे मेरे मन लायक “रोज़गार” नहीं करने दोगे, तो मैं आतंकवादी बन जाऊंगा और फिर मुझे दोष मत देना।

मैं चाहता हूं कि इस देश में मानवता, मानवीय गरिमा और मानवीय स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए तीन चीज़ों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे और इन्हें किसी भी किस्म के रोज़गार न जोड़ा जाए-

  • एक- मानवता के लिए जीव हत्या रुके।
  • दो- मानवीय गरिमा के लिए वेश्यावृत्ति रुके।
  • तीन- मानवीय स्वास्थ्य के लिए पूर्ण नशाबंदी हो।

मेरा सवाल है कि क्या हम एक ऐसे भारत का निर्माण नहीं कर सकते, जिसमें रोज़गार के साधन भी पवित्र हों। मेरी तो यह सोचकर ही रूह सिहर जाती है कि कोई भी संवेदनशील मनुष्य जीव हत्या, वेश्यावृत्ति और नशाखोरी- इन तीनों चीज़ों को कैसे जस्टिफाइ कर सकता है।

और अगर कर सकता है, तो मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ेगा कि वह मनुष्य नहीं है। सिर्फ़ मनुष्य शरीर में जन्म ले लेने भर से कोई मनुष्य नहीं बन जाता। ऐसा ही शरीर तो रावण, कंस, कुंभकर्ण, महिषासुर, बाबर, औरंगज़ेब, नादिरशाह और तैमूर लंग के पास भी था, लेकिन क्या वे मनुष्य कहलाने के लायक थे? सोचकर देखिएगा।

याद रखिए, मनुष्य धरती का मालिक नहीं, एक निवासी मात्र है। यह अलग बात है कि हमने अपने बुद्धि-विवेक का दुरुपयोग कर इस धरती के दूसरे निवासियों की लगातार हत्याएं की हैं और उन्हें उनके हक़ और ज़मीन से लगातार बेदखल किया है। इस पाप का फल एक न एक दिन निश्चित रूप से संपूर्ण मानव जाति को भुगतना पड़ेगा। उस दिन के लिए मुझे आज से अफ़सोस है!

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