पहचान लीजिए नंगई के सात सौदागरों को!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि व मानवतावादी चिंतक हैं।

बाज़ारों में आते-जाते कई बार ऐसा लगता है कि वो दिन दूर नहीं, जब देश की आधुनिक लड़कियां कपड़ों पर होने वाला ख़र्च साफ़ बचा लिया करेंगी, जबकि पिछड़ी हुई लड़कियां महंगाई के हाथों मारी जाएंगी। जिस हाफ पैंट को हमने किशोरावस्था में प्रवेश करते ही शर्म के मारे पहनना छोड़ दिया था, उससे भी वन फोर्थ पैंट को देश की युवा लड़कियों ने बीच बाज़ार पर्यटन के लिए अपना लिया है। मेरा ख्याल है कि तरक्की की रफ़्तार अगर ऐसी ही रही, तो इतने कपड़े भी एक दिन उन्हें अखरने लगेंगे।

लेकिन जैसे ही आप इस नग्नता से असहमति जताने का प्रयास करेंगे, वैसे ही कथित स्त्रीवादियों की एक लॉबी तुरंत सक्रिय हो जाती है और आप पर हमले करना शुरू कर देती है। वे कहते हैं कि

  1. आप स्त्रीविरोधी हैं।
  2. आप स्त्रियों की आज़ादी के दुश्मन हैं।
  3. आप तालिबान हैं।
  4. आप सांस्कृतिक ठेकेदार बनने की कोशिश कर रहे हैं।
  5. नग्नता आपकी सोच और नज़रों में है।

यानी अपनी लच्छेदार बातों से वे आप पर इतने तीव्र और चौतरफ़ा हमले करते हैं कि आपको पीछे हटना पड़ता है और वे अपने एजेंडे में और आगे बढ़ जाते हैं। आइए, आज आपको बताता हूं कि वे कौन लोग हैं, जो स्त्रियों की आज़ादी के नाम पर समाज में नंगई को बढ़ावा दे रहे हैं-

 

  1. पहले वे, जो “जिस्मफ़रोशी” का धंधा करते/कराते हैं। चूंकि नंगई उनके धंधे को सूट करती है, इसलिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वे इसे बढ़ावा देने में जुटे रहते हैं। यह एक बहुत बड़ा रैकेट है। वे चाहते हैं कि पूरा भारत एक “वृहत देह-मंडी” में तब्दील हो जाए। इनका रैकेट अब कोठों और सड़कों तक ही नहीं सिमटा, बल्कि होटलों, पार्लरों और पर्यटन स्थलों इत्यादि को चपेट में लेते हुए स्कूल-कॉलेजों समेत लालची और कुंठित लोगों के घरों तक भी फैलता जा रहा है। इस रैकेट में बड़े-बड़े तनपशु, मनपशु और धनपशु पूरे तन-मन-धन से शामिल हैं। इन तमाम किस्म के पशुओं की पहुंच समाज के विभिन्न प्रभावशाली तबकों तक भी व्याप्त है।

 

  1. दूसरे वे, जो “जिस्मपरोसी” का धंधा करते/कराते हैं। चूंकि नंगई इनके भी धंधे को सूट करती है, इसलिए ये भी नंगई को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से बढ़ावा दे रहे हैं। इनमें मुख्यतः फिल्म, मीडिया और कला से जुड़े लोग शामिल हैं। इन्हें लगता है कि स्क्रीन पर, वेबसाइटों में, अखबारों में, कलाकृतियों में जिस्म परोसने से, नंगी-नंगी तस्वीरें दिखाने और छापने से उनका ‘प्रोडक्ट’ ज़्यादा बिकेगा, क्योंकि आम आदमी कुंठित है और ऊपर-ऊपर वह चाहे कुछ भी कहे, लेकिन भीतर ही भीतर नग्न स्त्री-देह को देखने के लिए तड़पता रहता है।

 

  1. तीसरे वे, जो “जिस्मफ़रोशी” या “जिस्मपरोसी” तो नहीं करते/कराते हैं, लेकिन स्त्रियों को भोग-विलास की वस्तु समझते हैं। 15 साल की बच्चियों से लेकर 75 साल की महिलाओं तक- सबको वे एक ही निगाह से देखते हैं। औरत उनके लिए सिर्फ़ एक देह है, इसलिए वे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उसे देह-दर्शन कराने के लिए उकसाते और प्रेरित करते रहते हैं।

 

  1. चौथे वे, जो बदचलन बाज़ार के नुमाइंदे हैं। उन्हें अपना हर तरह का प्रोडक्ट बेचना है। इसके लिए स्त्री-देह के इस्तेमाल और प्रदर्शन को उन्होंने अपना शॉर्टकट बना लिया है। इससे लोग तुरंत आकर्षित होते हैं, चर्चा करते हैं, सोचते हैं, याद करते हैं, लालायित होते हैं, तरसते हैं, आहें भरते हैं। तन-मन-धन की वासना उनकी जाग उठती है। और फिर बाज़ार उन्हें आसानी से अपनी गिरफ़्त में ले लेता है।

 

  1. पांचवें वे, जो कॉन्डोम्स, गर्भनिरोधक गोलियों, सेक्सजनित बीमारियों की दवाओं, बीयर-शराब-सिगरेट-तंबाकू और तमाम तरह के नशीले पदार्थों, तरह-तरह के सौंदर्य प्रसाधनों, नंगई फैलाने वाले कपड़े-लत्तों इत्यादि के व्यापार से जुड़े हैं। नंगई बढ़ेगी, तो सेक्स-उच्छृंखलता बढ़ेगी। सेक्स-उच्छृंखलता बढ़ेगी, तो इनका धंधा बढ़ेगा।

 

  1. छठे वे, जो पैसे और पावर के खेल में शरीर को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं। वे अपने शरीर को भी सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं और दूसरों को भी इसी रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करते हैं। ये जीवन में हर चीज़ का शॉर्टकट ढूंढ़ने वाले नीच नैतिकता (Low-Moral) वाले लालची और अय्याश किस्म के लोग होते हैं।

 

  1. सातवें वे, जो उपरोक्त छह श्रेणियों में आने वाले लोगों के षडयंत्रों का शिकार हो जाते हैं। इनके पास अपना विज़न नहीं होता। ये ख़ुद की ख़ूबियां नहीं जानते और हीन-भावना से ग्रस्त रहते हैं। ये दूसरों की नकल करके उन जैसा बनना और दिखना चाहते हैं। ये भीड़ का हिस्सा होते हैं। अगर इन्हें लगे कि आजकल नंगे रहने का चलन है, तो ये नंगे हो जाएंगे। अगर इन्हें लगे कि आजकल बुरक़े का चलन है, तो ये बुरका पहनने लगेंगे। ये लिजलिजे, पिलपिले, आत्म-हीन, अस्तित्व-हीन जीव होते हैं। अपनी आत्म-हीनता व अस्तित्व-विहीनता के चलते भीड़ के हिस्से ये लोग नंगई के चलते-फिरते ब्रांड एम्बेसडर बन जाते हैं। इनकी वजह से ऐसा लगता है जैसे नंगई सचमुच एक आधुनिक विचार है और इसे बड़ी संख्या में लोग अपना रहे हैं।

कुल मिलाकर, इन सात तरह के लोगों की वजह से हर तरफ नंगई का नृत्य चालू है। वैसे भी, नंगे घूमने वाले और कपड़ों में घूमने वाले – दोनों बराबर हैं। ऐसा नहीं है कि एक सती सावित्री से बलात्कार करने की सज़ा अधिक होती है और वेश्यावृत्ति से जुड़ी किसी महिला से बलात्कार की सज़ा कम, या एक पूरी तरह ढंकी महिला को घूरने की सज़ा अधिक होती है और एक नग्न स्त्री को घूरने की सज़ा कम।

इस तरह, कानून से “निर्वस्त्रों” को भी उतना ही संरक्षण हासिल है, जितना “वस्त्र-धारियों” को। और यह पहले ही स्पष्ट है कि इसमें नैतिकता का भी कोई प्रश्न उठता नहीं है। मर्यादा की बात करने वाले पहले ही स्त्री-स्वातंत्र्य के शत्रु और तालिबान घोषित किये जा चुके हैं। इसलिए लोग बेधड़क नंगे घूमते हैं और क्यों न घूमें?

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