इन तीन मुद्दों ने कर्नाटक में निकाल दी है मोदी के तूफ़ान की हवा!

ब्रजमोहन सिंह जाने-माने पत्रकार और दैनिक सवेरा ग्रुप में डिजिटल मीडिया और टीवी के हेड हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनावी अंदाज़ तूफ़ानी होता है। वह अपने ही तर्ज़ पर चुनावी अभियान चलाते हैं। इसलिए, आने वाले 10 दिनों तक पीएम मोदी कर्नाटक में छाए रहेंगे, लेकिन उनका ये दौरे कितने कारगर साबित हो सकेंगे, इस बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ भी कहना आसान नहीं है, क्योंकि कर्नाटक में सियासत में बिसात तो पहले ही बिछाई जा चुकी है, मोहरे पहले ही तैनात कर दिए गए हैं। इसलिए, मोदी के लिए यह चुनावी अभियान आसान कतई नहीं होगा।

पूरे देश में आईटी क्रांति की पहली रोशनी बेंगलुरु शहर में आई और आज भी वही छवि लोगों के जेहन में बसी हुई है, लेकिन बेंगलुरु में आई सम्पन्नता के साथ-साथ कर्नाटक में बहुत से ऐसे अँधेरे कोने रह गए, जहाँ विकास की रोशनी नहीं पहुँच पाई।

कर्नाटक के लोगों की सबसे बड़ी शिकायत यह रही कि नेताओं ने बंगलुरु के अलावा बाकी शहरों का बराबर विकास नहीं किया। आज अगर विकास के मुद्दे को लेकर ग्रामीण कर्नाटक के लोग गुस्से में हैं, तो कांग्रेस, बीजेपी सहित जेडी (यू) को चिंतित होने की ज़रूरत है।

आइए आपको बताते चलते हैं कर्नाटक के तीन बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे, जिनका ध्यान मोदी को रखना होगा।

 

1. कन्नड़ झंडा का मसला

1960 के दशक से ही कर्नाटक के पीले और लाल झंडे से यहाँ के लोगों का विशेष लगाव रहा है। इससे कन्नड़ अस्मिता और कन्नड़ भाषा और कर्नाटक को अलग राज्य बनने की दिशा में पहचान मिली। भारतीय संविधान किसी भी राज्य के लिए अलग से झंडा फहराने की अनुमति नहीं देता (सिर्फ जम्मू और कश्मीर को छोड़कर). मुख्यमंत्री सिद्दरमैया कहते हैं कि कन्नडिगा अस्मिता के लिए अलग झंडा ज़रूरी है, लेकिन अगर कर्नाटक में ऐसा होता तो इस तरह की मांग सभी राज्यों में शुरू हो जाएगी. कांग्रेस और बीजेपी में इस मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकती।

 

2. कर्नाटक में लिंगायत का मुद्दा सबसे पेचीदा

इस मुद्दे पर कर्नाटक में सरकार बनती और बिगड़ती है। सिद्दारमैया लिंगायत को एक अलग धरम के तौर पर मान्यता देने के पक्ष में हैं। बासवन्ना 12 सदी के बहुत ही बड़े समाज सुधारक हुए, जो हिन्दू धर्म में व्याप्त जातिवाद और पोंगापंथ के खिलाफ लगातार आन्दोलन चला रहे थे।

सिद्दारमैया के हाथ में लिंगायत का एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है, जिससे बीएस येदियुरप्पा और अमित शाह अच्छे खासे मुसीबत में फंस गए हैं।

 

3. किसानों की बदहाली और जल बंटवारे की फांस

बीजेपी शायद गुजरात चुनाव अब तक नहीं भूली होगी कि किस तरह से उसे ग्रामीण गुजरात में पटखनी खानी पड़ी। 2013 से 2017 के बीच ग्रामीण कर्नाटक में 3500 किसानों ने ख़ुदकुशी की है। उत्तरी कर्नाटक में भयंकर सूखा पड़ा हुआ है और सरकार ने अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकाला है। महानदी के जल बंटवारे को लेकर भी उत्तरी कर्नाटक में राजनीति गरमाई हुई है।

कर्नाटक में आगे जो भी सरकार बनती है, उसको गोवा के साथ मिलकर जल बंटवारे का समाधान करना पड़ेगा। कावेरी जल विवाद की आंच इस चुनाव में सुनाई देगी,  हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले में कर्नाटक के हिस्से के पानी में बढ़ोत्तरी हुई है, इसलिए सिद्दारमैया को इसका सियासी फायदा मिल सकता है।

 

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