कविता: राहुल बाबा फिर विदेश चले गए हैं

साहित्य में इसे ही कहते हैं कालजयी कविता। 20 जून 2016 को लिखी गई यह कविता बार-बार प्रासंगिक हो उठती है। ऐन तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के समय राहुल बाबा फिर विदेश चले गए हैं। इससे पहले वे पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी के बीच और यूपी में विधानसभा चुनाव के एलान और मुलायम परिवार में मचे घमासान के बीच भी अप्रत्याशित रूप से विदेश-प्रवास पर जा चुके हैं। पढ़िए वरिष्ठ लेखक-पत्रकार अभिरंजन कुमार की यह कविता-
 
अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं।

“राहुल बाबा फिर विदेश चले गए हैं

किस देश गए हैं, बताकर नहीं गए, वरना ज़रूर बताता

उनकी ग़ैर-मौजूदगी में बड़ी अकेली पड़ जाती हैं उनकी माता!

 

कितने दिन के लिए गए हैं, यह भी तो उन्होंने बताया नहीं

क्या करने गए हैं, इस बारे में भी कुछ जताया नहीं

जून की इन सुलगती गर्मियों में पार्टी के लोग हो गए बिना छाता!

 

मुझे चिंता हो रही है कांग्रेस की, जिसे सर्जरी की ज़रूरत है

और सर्जरी की डेट टलती ही जा रही है

130 साल पुरानी काया अब गलती ही जा रही है

पर जो सर्जन है, वही फिर रहा है क्यों छिपता-छिपाता?

 

राहुल बाबा का जी अगर है ज़िम्मेदारी से घबराता

तो प्रियंका बेबी को ही हम बुला लेते

उनके मैजिक की माया में साल दो साल तो ख़ुद को भुला लेते

पर इस अनिश्चय की स्थिति में तो हमें कुछ भी नहीं है बुझाता!

 

दिग्गी से पिग्गी से, मणि से शनि से भी तो काम नहीं चलता

क्या करें, कांग्रेस में गांधी-नेहरू के सिवा कोई नाम नहीं चलता

ये कैसे कठिन समय में हमें डाल दिया, हे दाता!

 

पहले वाले दिन कितने अच्छे थे।

एक मम्मी थी और हम ढेर सारे बच्चे थे।

न कोई बही थी, न था कोई खाता।

जो जी में आता, वही था खा जाता।”

 

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