सांप्रदायिक राजनीति करने में कांग्रेस के सामने बच्ची है बीजेपी!
बीजेपी बदनाम है, लेकिन सांप्रदायिक राजनीति करने में कांग्रेस के सामने वह आज भी बच्ची है। बीेजेपी हिन्दुओं की दोस्त है कि नहीं- कहना मुश्किल है, लेकिन कांग्रेस हिन्दुओं की दुश्मन है, कर्नाटक में यह बात एक बार फिर से स्पष्ट हो गई है।
आखिर कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को हिन्दुओं से अलग धर्म और अल्पसंख्यक का दर्जा देना क्या है? क्या यह सांप्रदायिक राजनीति नहीं है? क्या यह हिन्दुओं को बांटने वाली राजनीति नहीं है? क्या यह हिन्दू-विरोध की राजनीति नहीं है? अगर देश की सबसे पुरानी और सबसे लंबे समय तक राज करने वाली पार्टी ही हिन्दू-विरोध की सांप्रदायिक राजनीति करे, तो उसकी प्रतिक्रिया में हिन्दूवादी राजनीतिक ताकत के उभार को आप अस्वाभाविक कैसे ठहरा सकते हैं?
कल को कोई राजनीतिक दल आकर कहे कि दलित या आदिवासी हिन्दू नहीं हैं। या फिर शिव के उपासक एक धर्म के हैं और विष्णु के उपासक दूसरे धर्म के। तो इस घटिया फूट डालो और राज करो वाली राजनीति का क्या जवाब है? क्या कांग्रेस कभी कह सकती है कि शिया मुसलमान सुन्नी मुसलमानों से अलग हैं, इसलिए शियाओं को अलग धर्म का दर्जा दे दिया जाएगा?
इसलिए आप भले कहें कि कांग्रेस सेक्युलर पार्टी है, लेकिन मैं बार-बार नहीं, हज़ार बार कहना चाहता हूं कि इस देश में तमाम सांप्रदायिकता की जड़ में कांग्रेस पार्टी है और बीजेपी की सांप्रदायिकता या हिन्दूवादी राजनीति केवल कांग्रेस की सांप्रदायिकता या हिन्दू-विरोधी राजनीति के प्रतिक्रिया-स्वरूप है।
अब भला राहुल गांधी के जनेऊ पहनने और मंदिर-मंदिर भटकने से क्या होगा, अगर नीयत में ही अंग्रेज़ों जैसी खोट है? उनके पिता राजीव गांधी भारत के सर्वाधिक सांप्रदायिक प्रधानमंत्री थे। सिख विरोधी दंगे और उसके बाद उनकी संवेदनहीन प्रतिक्रिया, अयोध्या में विवादित परिसर में मंदिर का ताला खुलवाना और शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पलटना- इन तीन ऐतिहासिक वारदातों से उनकी सांप्रदायिकता साबित हो चुकी थी।
अब लगता है कि सांप्रदायिक राजनीति में राहुल गांधी अपने पिताजी के भी कान काटना चाहते हैं, तभी तो उनके नेतृत्व में कांग्रेस ऐसे-ऐसे कारनामे करती जा रही है, जिससे देश में घटिया सांप्रदायिक राजनीति के एक और भी बुरे दौर का संकेत दिखाई दे रहा है।
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