पाकिस्तान को सपोर्ट करना मतलब मुसलमानों की कब्र खोदना!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि व मानवतावादी चिंतक हैं।

जो मित्र तर्कों से मुकाबला नहीं कर सकते, वे दाएं-बाएं झांकते हुए फिजूल की दलीलें देते हैं और कई बार मुझ जैसे मानवतावादी कबीर-मार्गी लोगों को लांछित करने का प्रयास भी करते हैं। एक मित्र ने कहा कि “आप मुस्लिम-विरोधी हो गए हैं।” मैंने पूछा- “कैसे?” तो उन्होंने कहा कि “आपने खुल्लमखुल्ला लेख लिखा है कि पाकिस्तान का अस्तित्व मिटा देना चाहिए।”

अब आप यह बताइए कि पाकिस्तान का विरोधी होना मुस्लिम-विरोधी होना कैसे हो गया? पाकिस्तान तो स्वयं मुस्लिम-विरोधी है। वहां आज हर दिन जो लोग मारे जा रहे हैं, क्या वे मुस्लिम नहीं हैं? अपने लेख में मैंने स्कूल जाने पर मलाला बेटी और गाना गाने पर अमजद साबरी भाई को गोली मारे जाने का ज़िक्र किया। क्या इन्हें “बेटी” और “भाई” का दर्जा देना मुस्लिम-विरोधी होना है?

पाकिस्तान में जिन स्कूलों, मस्जिदों, मज़ारों, बाज़ारों में लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं, उनमें मारे जाने वाले बच्चे, बूढ़े, नौजवान, महिलाएं क्या मुस्लिम नहीं? वहां जिन लोगों के मानवाधिकार रोज़ कुचले जा रहे हैं, क्या वे मुस्लिम नहीं? पाकिस्तान में मुसलमानों के सिवा दूसरे मजहबों के लोग अब ज़िंदा ही कितने बचे हैं? फिर वहां जिन लोगों का दमन हो रहा है, वे मुस्लिम नहीं हैं तो कौन हैं?

सिंध में, बलूचिस्तान में, पीओके में क्या दूसरे मजहबों को मानने वाले लोग रहते हैं? मुझे बताएं प्लीज़ कि पाकिस्तान के कुकर्मों से आतंकवाद, कट्टरता, धर्मांधता और दूसरे धर्मों के लिए असहिष्णुता का कलंक किसके माथे पर चढ़ता है? पाकिस्तान जब भारत समेत पूरी दुनिया में आतंकवाद की सप्लाई करता है, तो इससे मुस्लिम नहीं तो कौन बदनाम होते हैं?

और क्यों सच्चाई से मुंह चुराते हो दोस्तो? क्या यह सच नहीं है कि एक तो भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से ही इस क्षेत्र के हिन्दुओं-मुसलमानों के मन में पैदा हुई लकीर आज तक नहीं मिटी है, ऊपर से जब रोज़-रोज़ पाकिस्तान की तरफ़ से दिक्कतें आती हैं, तो यह तनाव और बढ़ता है? फिर अगर मैं कहता हूं कि भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के आपसी सौहार्द्र और सह-अस्तित्व के लिए भी ज़रूरी है कि पाकिस्तान खत्म हो जाए, तो मैं मुस्लिम विरोधी कैसे हो गया?

आज जब हर छोटी-छोटी बात पर कुछ लोग मुसलमानों को ताना देते हैं कि पाकिस्तान चले जाओ, तो सबसे ज़्यादा किसके मन को ठेस पहुंचती है? आज जब पाकिस्तान से निर्यात हो रहे आतंक की वजह से देश के अलग-अलग कोनों में रोज़ कोई न कोई मुस्लिम नौजवान पकड़ा जाता है, तो सबसे ज़्यादा बदनामी किसकी होती है? उनकी चिंता करना मुस्लिम-विरोधी होना कैसे हो गया?

जब धर्म के आधार पर एक बंटवारा हुआ, तो उसकी टीस आज 70 साल बाद भी लोगों के मन से हटी नहीं है, और ख़ुदा न करे, अगर दूसरा बंटवारा हो जाए, तो फिर सोचिए कैसा ग़ज़ब हो जाएगा! क्या उसके बाद शेष भारत में मुसलमान चैन से रह पाएंगे? उसके बाद भारत के हिन्दुओं में जो विस्फोट होगा, क्या उसकी किसी ने कल्पना भी की है?               -अभिरंजन कुमार

एक बात और बता दूं। आज हमारे देश के जो तथाकथित प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, मानवाधिकारवादी, कई तरह के राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़े गए बुद्धिजीवी कश्मीर के आतंकवादियों, अलगाववादियों और पत्थरबाज़ नौजवानों को सपोर्ट करते हैं या उनसे हमदर्दी रखते हैं, सही मायनों में मुस्लिम-विरोधी तो वे हैं। ज़रा सोचकर देखिए तो पता चलेगा कि कश्मीर की आज़ादी की बात करने वालों से बड़ा मुस्लिम-विरोधी और कौन हो सकता है!

यह तो कॉमन सेंस की बात है कि जब धर्म के आधार पर एक बंटवारा हुआ, तो उसकी टीस आज 70 साल बाद भी लोगों के मन से हटी नहीं है, और ख़ुदा न करे, अगर दूसरा बंटवारा हो जाए, तो फिर सोचिए कैसा ग़ज़ब हो जाएगा? क्या उसके बाद शेष भारत में मुसलमान चैन से रह पाएंगे? उसके बाद भारत के हिन्दुओं में जो विस्फोट होगा, क्या उसकी किसी ने कल्पना भी की है?

इसलिए, जब मैं पाकिस्तान को ख़त्म करने की बात कहता हूं, तो पाकिस्तानी नागरिकों को नुकसान पहुंचाए जाने की वकालत नहीं कर रहा होता। पाकिस्तान से विरोध भले है, लेकिन पाकिस्तान के लोगों से मेरे मन में भी उतनी ही मोहब्बत है, जितनी किसी पाकिस्तानी के मन में होगी। हम “वसुधैव कुटुम्बकम” को मानने वाले और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की कामना करने वाले लोग हैं।

पूरी दुनिया के लोग हमारे भाई-बहन हैं। हम उनमें से किसी का भी नुकसान नहीं चाहते। लेकिन हां, जो मानवता के शत्रु हैं, उनके लिए मेरे मन में कोई हमदर्दी नहीं। मानवता की भलाई के लिए राक्षसों का वध हमारे उन देवी-देवताओं ने भी किया, जिनकी हम पूजा करते हैं। हर साहित्य में अच्छाई को बुराई से लड़ते हुए दिखाया जाता है, इसलिए आतंकवादियों और आतंकवाद को पनाह देने वाले पाकिस्तान से बेशक हमें कोई हमदर्दी नहीं है।

इसलिए इस बात पर मैं कायम हूं कि जिस दिन पाकिस्तान का अंत होगा, उस दिन पाकिस्तान सहित भारत और समूचे दक्षिण एशिया और काफ़ी हद तक समूची दुनिया के लोग चैन की सांस लेंगे। मैंने कभी सिंध और बलूचिस्तान को भारत में मिलाए जाने की बात नहीं की, इसलिए मैं साम्राज्यवादी भी नहीं। मैं चाहता हूं कि सिंध और बलूचिस्तान आज़ाद देश बनकर हमारे अच्छे पड़ोसी बनें और फिर से हमारे बीच भाईचारे का रिश्ता और निर्बाध आवागमन स्थापित हो।

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