कहीं आपकी दवा नकली तो नहीं? भारत में बिकने वाली हर चौथी दवा नकली है!
बिहार की सबसे बड़ी एवं देश की दूसरी सबसे बड़ी दवा मंडी पटना के गोविंद मित्रा रोड में आए दिन बड़ी मात्रा में नकली एवं एक्सपायरी दवाओं का पकड़ा जाना हैरान करता है। मौत के ये सौदागर अधिक धन की लालसा में जिस तरह का ख़तरनाक व्यापार कर रहे हैं, उसके लिए इन लोगों को जितनी भी सजा दी जाए, कम होगी। इस तरह के अपराधी एक नहीं, हज़ारों बार फांसी चढ़ाए जाने के योग्य है।
एक इंसान जब बीमार पड़ता है, तो डॉक्टर और दवा इन्हीं दोनों पर उसकी सारी उम्मीदें टिकी होती हैं। एक गरीब से गरीब आदमी भी पैसे की चिंता नहीं करते हुए अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज कराना चाहता है। इतने प्रयास के बावजूद यदि दवा ही नकली हो, तो इसमें धरती का वह भगवान भी भला क्या करेगा?
भारत में बिकने वाली हर चौथी दवा नकली!
ASSOCHAM के अनुसार, भारत में बिकने वाली हर चौथी दवा नकली या दोयम दर्जे की होती है अर्थात इस देश में बिकने वाली 25% दवाएं नकली हैं। इस बात की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को भी है और सरकार को भी है, लेकिन मौत बेचने के इस कारोबार में देखकर आंख मूंद लेने के लिए मिलने वाला कमीशन इतना अधिक होता है कि इसे रोकने के ज़िम्मेदार तमाम लोग भी चुप रहना ही बेहतर समझते हैं। एक ड्रग इंस्पेक्टर की सालाना कमाई लाखों नहीं, करोड़ों में होती है। एक दवा दुकानदार फार्मेसी के नियमों को ताक पर रखकर जो चाहे, जैसे चाहे बेचे। सिर्फ ड्रग इंस्पेक्टर की जेबें गर्म करता रहे।
कैसे होता है नकली दवाओं का कारोबार?
नकली दवाओं की सबसे बड़ी मंडी आगरा है, जहां से पूरे देश में नकली दवाओं की सप्लाई की जाती है। वहीं दिल्ली और आसपास एनसीआर क्षेत्र में नकली दवाओं का सबसे अधिक उत्पादन होता है। दिल्ली में बिकने वाली हर तीसरी दवा नकली है। जिस तेज़ी से नकली दवाओं का कारोबार भारत में बढ़ रहा है, ऐसा अनुमान है कि 2017 तक इस देश में नकली दवाओं का कारोबार 10 बिलियन यूएस डॉलर होगा। (Source- ASSOCHAM)
दरअसल इस मामले में सरकार की व्यवस्था ही लचर है। वह खुद नहीं चाहती कि लोगों को उत्तम क्वालिटी की दवाएं मिलें। दवा बनाने से लेकर वितरण एवं बिक्री तक हर जगह दोषपूर्ण तरीके अपनाए जा रहे हैं। कहीं भी मानकों का पालन नहीं किया जाता। देश की विभिन्न जगहों पर कुकुरमुत्ते की तरह ड्रग मैनुफैक्चरिंग प्लांट्स स्थापित किए जा रहे हैं, जहां नियमों को ताक पर रखकर दोयम दर्जे की दवाओं का उत्पादन किया जाता है। देश में अभी 10 हज़ार से भी ज्यादा दवा मार्केटिंग कंपनियां हैं, जिनमें से कुछ ही के पास अपनी उत्पादन इकाई है, बाकी सभी इन उत्पादक कंपनियों से दवा खरीद कर अपने नाम की लेबलिंग कर बाज़ार में बेचते हैं। सवाल है कि जो कंपनी खुद दवा का उत्पादन ही नहीं करती, वह दवा की क्वालिटी की गारंटी कैसे ले सकती है?
बड़े डॉक्टरों ने सगे-संबंधियों के नाम से खोल रखी हैं दवा कंपनियां!
दुखद तो यह भी है कि बिहार और देश भर में बड़े-बड़े नामी-गिरामी डॉक्टरों ने अपने सगे-संबंधियों के नाम पर दवा कंपनियां खोल रखी हैं, जो इस तरह की दोयम दर्जे की दवाएं ऊंचे दामों पर बेच रही हैं। यानी, हमारे भगवान खुद अपनी ही कंपनी की दवा लिखते हैं और अपनी ही दुकानों के माध्यम से इसे बेचते भी हैं!
नकली दवाओं के कारोबार की सबसे बड़ी वजह जहां एक ओर सरकार की निष्क्रियता है, वहीं दूसरी ओर आम लोगों में जागरूकता का अभाव है। आखिर हममें से कितने लोग दवा लेने के बाद उसका पक्का बिल लेते हैं? दवा के साथ उसका पक्का बिल लेना, नकली दवा होने की संभावना को काफी हद तक कम कर देता है, क्योंकि उस बिल पर दवा का बैच नंबर अंकित होता है, ऐसे में जिस बैच नंबर की दवा उस दुकानदार ने खरीदी ही नहीं है, वह उसे बेच कैसे सकता है? ऐसे में गलत दवा देने पर उसके पकड़े जाने की काफी संभावना होती है। दवा का पक्का बिल लेने पर आपको किसी भी तरह का एक्स्ट्रा चार्ज या टैक्स नहीं देना होता है, क्योंकि दवा की MRP में वह सभी शामिल होता है।
क्या है नकली या घटिया क्वालिटी की दवाओं का मतलब?
किसी भी दवा के दो हिस्से होते हैं-
- API (Active Pharmaceutical Ingredient)
- Inactive Ingredient
API ही मुख्य दवा होती है। Inactive Ingredient दवाओं में सिर्फ सहायक के तौर पर मिलाया जाता है। दवा की उत्पादन लागत कम करने के लिए छोटी-छोटी दवा उत्पादक कंपनियां दवाओं में एपीआई की निर्धारित मात्रा नहीं डालती हैं। साथ ही, यदि दवाओं को साफ-सुथरे माहौल में नहीं बनाया जाए, तो इसके कारण उसमें बैक्टीरिया के उपस्थित होने का खतरा रहता है। टेस्ट में ऐसी दवाएं घटिया दर्जे की और हानिकारक मानी जाती हैं। ये दवाएं आपकी बीमारी में ठीक से काम नहीं करेंगी और अगर यह दवा एंटी-बायोटिक है, तो इसके अत्यंत घातक परिणाम आपको भुगतने पड़ सकते हैं।
हाल में, भारत में कॉम्बिफ्लेम जैसी पॉपुलर दवा को लैव टेस्ट में घटिया दर्जे का पाया गया था, जिसके बाद कंपनी को उस Batch की सारी दवाएं मार्केट से वापस लेनी पड़ी थीं। दरअसल हमारे देश में दवाओं की गुणवत्ता का नियमित परीक्षण भी नहीं किया जाता है। यही वजह है कि दवा उत्पादन करने वाली कई कंपनियां दो तरह की दवाएं बनाती है। एक जो भारतीय बाजार में खपती है और दूसरी जो विदेशों में निर्यात की जाती हैं।
निर्यात की जाने वाली दवाएं प्रायः उच्च गुणवत्ता की होती हैं, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय देश पर्याप्त जांच के बाद ही इन दवाओं को खरीदते हैं, लेकिन अपने देश में तो सब चलता है। इसके अलावा एपीआई भी दो तरह के होते हैं। एक जो चीन से आते हैं और दूसरे जो यूरोपीय देशों से आते हैं। यूरोप से आने वाली एपीआई चीन की तुलना में बेहतर होती हैं। वैसे भारत में भी कुछ बड़ी कंपनियां एपीआई का उत्पादन करती हैं, लेकिन भारतीय बाज़ार के लिए यह पर्याप्त नहीं है।
क्या हैं एक्सपायरी दवाएं?
जहां तक एक्सपाइरी दवाओं की बिक्री का सवाल है, प्रत्येक दवा के ऊपर उनकी एक्सपायरी तिथि अंकित होती है। जब दवाएं एक्सपायर हो जाती हैं, तो मौत के सौदागर इसे किलो के भाव से खरीद कर उस पर नया प्रिंट लगा देते हैं। एक्सपायरी दवाओं का प्रयोग हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है, जिससे मरीज की मौत भी हो सकती है। दवाएं केमिकल कंपाउंड की बनी होती हैं, जिनका समय के साथ रासायनिक विघटन होता रहता है। दवाओं की गुणवत्ता समय के साथ घटते-घटते उस स्थिति तक पहुंच जाती है, जब उसके प्रयोग से फ़ायदे कम, नुकसान ज्यादा होते हैं।
इसे ऐसे समझें कि प्रत्येक दवा का therapeutic window होता है। इसका संबंध दवा की मात्रा से है। इसका minimum एवं maximum level होता है। minimum level से नीचे होने पर दवा आपको पर्याप्त फ़ायदा नहीं करेगी और maximum level के ऊपर जाने पर दवा का विषाक्त प्रभाव देखने को मिलता है। अतः प्रयोग करने योग्य दवा वही है, जिसमें API therapeutic window के अंदर हो। एक्सपायर दवा या दोयम दर्जे की दवाओं में ऐसा नहीं होता है।
दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाला भारत में कोई रेगुलेटर नहीं!
दवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए विश्व में कुछ दवा मानक एजेंसिया हैं। जैसे UK- MHRA, US-FDA, WHO, MCC-South Africa, TGA-Australia आदि। इसमें US-FDA की मान्यता मिलना किसी भी दवा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट के लिए बहुत बड़ी बात मानी जाती है। भारत में विश्व स्तर की इन मानक एजेंसियों से मान्यता प्राप्त मैनुफैक्चरिंग प्लांट्स बहुत ही कम हैं, विशेषकर US-FDA से मान्यता प्राप्त। दुख की बात यह है कि भारत में ऐसी कोई रेगुलेटरी अथॉरिटी नहीं है।
देश में दवाओं की गुणवत्ता जांचने के लिए प्रयोगशालाओं की भारी कमी है, इसके चलते यह पता करना अत्यंत कठिन है कि मार्केट में चल रही कौन-सी दवा असली है और कौन-सी नकली। इसका एकमात्र उपाय यही है कि दवा आप हमेशा विश्वसनीय दुकानों से ही ख़रीदें और दवा के साथ बिल लेना कभी मत भूलें और अगर कुछ ग़लत लगे तो ड्रग इंस्पेक्टर को तुरंत रिपोर्ट करें।
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