हे नीतीश कुमार जी, आप शर्मिंदा न हों, सत्ता में बैठे लोग शर्मिंदा नहीं होते!

अभिरंजन कुमार जाने-माने लेखक, पत्रकार और मानवतावादी चिंतक हैं।

लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यह है कि जहां सरकार में बैठे लोगों को कभी शर्म नहीं आती, वहीं विपक्ष में बैठे लोग अक्सर शर्मिंदा होते रहते हैं।

बिहार में जब राजद विधायक राजबल्लभ यादव द्वारा एक नाबालिग लड़की से बलात्कार की घटना सामने आई थी, उस समय जेडीयू-राजद-कांग्रेस की सरकार थी, इसलिए जेडीयू-राजद-कांग्रेस के लोग लाख प्रयास करके भी शर्मिंदा नहीं हो पा रहे थे। और जब शर्मिंदा हो ही नहीं पा रहे थे, तो धरना-प्रदर्शन-आंदोलन कैसे करते? लेकिन उस समय बीजेपी विपक्ष में थी, तो हम सबने देखा था कि किस तरह से उसके लोगों के गाल शर्म से लाल-लाल हो गए थे।

इसी तरह, आजकल मुज़फ्फरपुर बालिका गृह थोक बलात्कार कांड के समय राज्य में जेडीयू-बीजेपी की सरकार है, इसलिए जेडीयू-बीजेपी के लोग चाहकर भी शर्मिंदा नहीं हो पा रहे हैं। लोग उनसे ज़बर्दस्ती कर रहे हैं कि भाई थोड़ा तो शर्मिंदा हो लो। इस ज़बर्दस्ती के कारण जब वे पल्ला झाड़ने के लिए कहते भी हैं कि हां भैया, हम भी शर्मिंदा हैं, तो शर्मिंदगी वाली लाली उनके गालों पर उतर ही नहीं पा रही। लेकिन लोकतंत्र की लीला देखिए, राजद-कांग्रेस आजकल विपक्ष में हैं, तो उनके नेताओं की शर्मिंदगी देखते ही बनती है। बिल्कुल लाल टमाटर जैसे गाल दिखाई दे रहे हैं मेरे राजद-कांग्रेस के तमाम दोस्तों के।

मज़े की बात है कि बिहार में जिस तरह के सत्ता समीकरण बने हुए हैं, उनमें बीजेपी और राजद-कांग्रेस के लोगों के शर्मिंदा होने की बारी तो आती-जाती रहती है, लेकिन जेडीयू के लोगों के शर्मिंदा होने की बारी कभी आती ही नहीं, क्योंकि 2005 से ही वह लगातार सत्ता में हैं और नीतीश कुमार जी के ‘त्याग’ की बदौलत मुख्यमंत्री बने दलित नेता जीतनराम मांझी के मिनी कार्यकाल को छोड़ दिया जाए, तो नीतीश कुमार जी बिहार के स्थायी और एकमात्र मुख्यमंत्री हैं। इस प्रकार, हम लोग जेडीयू के भाइयों के शर्म से लाल हुए गाल देखने के लिए 13 साल से तरस रहे हैं।

ऐसे में लगता है कि नीतीश जी और उनके सिपाहियों के शर्म से लाल गाल तो अब तभी देखने को मिलेंगे, जब वे विपक्ष में जाएंगे। लेकिन नीतीश जी भला विपक्ष में जाएंगे क्यों? उन्होंने तो द्विपत्नी प्रथा अपना रखी है। जब भाजपा के साथ सत्ता की शय्या शेयर करते हैं, तो राजद-कांग्रेस वाले मटुकनाथ की पत्नी की तरह रोड पर आकर हंगामा करते हैं। और जब राजद-कांग्रेस के साथ सत्ता की शय्या शेयर करते हैं, तो बीजेपी की हालत मटुकनाथ की पत्नी जैसी हो जाती है।

लेकिन नीतीश जी को पता है कि बीजेपी और राजद-कांग्रेस के लिए जैसी प्रेम-लीला उन्होंने बिहार में रचाई है, उसमें बीजेपी और राजद-कांग्रेस किसी के भी मन में उनके लिए अस्वीकृति का भाव नहीं, बस उन्हें खो देने की पीड़ा है। जब राजद-कांग्रेस वाले उनका साहचर्य खो देते हैं, तो इसे वे भी सहन नहीं कर पाते और जब बीजेपी वाले उनके साहचर्य से वंचित हो जाते हैं, तो दिल तो उनका भी छलनी-छलनी हो जाता है।

इसलिए, अगर नीतीश जी की यही प्रेम-लीला अभी आने वाले वर्षों में चलती रही और कामयाब रही, तो वे विपक्ष में जा ही नहीं पाएंगे, इसलिए शर्मिंदगी उनके आस-पास कैसे फटकेगी? ज़रा आप भी सोचकर देखिए।

इसलिए मुझे लगता है कि मेरे जिन मित्रों ने नीतीश कुमार जी के शर्म-लोप को लेकर अभी जंतर-मंतर पर आंदोलन किया है, वे सभी सिर्फ़ नीतीश कुमार जी का साहचर्य और प्रेम चाहते हैं। चाहते हैं कि किसी तरह सत्ता की शय्या वे उनके साथ साझा कर लें। तेजस्वी तो तेज से भरे युवा हैं, लेकिन राहुल गांधी जी जैसे मेरे स्वघोषित पप्पू भैया और परम आदरणीय श्री अरविंद केजरीवाल जी जैसे हमारे स्वघोषित क्रांतिकारियों की भी दिली इच्छा यही है। यकीन मानिए।

वैसे, चलते-चलते आपको बता दें कि अगर नीतीश कुमार जी को शर्मिंदा होना होता, तो वे
— पटना गैंग रेप के समय ही शर्मिंदा हो गए होते, जब हम लोगों को अपनी पीड़ित बहन को इंसाफ़ दिलाने के लिए आंदोलन छेड़ना पड़ गया था।
— या फिर जब उनकी पुलिस उनकी सभा-स्थली के आस-पास से गुज़रने वाली बिहार की तमाम बहनों-बेटियों के काले दुपट्टे तक उतरवा लेती थी, तभी शर्मिंदा हो गए होते।
— जब उनकी पुलिस ने महिला आंदोलनकारियों को अभद्र तरीके से पीछे से लाठी लगाई थी और जिस तस्वीर को देखकर सुप्रीम कोर्ट तक दहल गया था, तभी शर्मिंदा हो गए होते।

ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जब नीतीश कुमार जी शर्मिंदा हो सकते थे, लेकिन अगर नहीं हुए, तो वास्तव में शर्म-लोप उनकी समस्या नहीं, बल्कि सत्ता का कसूर है। जो व्यक्ति शाश्वत मुख्यमंत्री हो, हर पार्टी और हर गठबंधन का मुख्यमंत्री हो, वह भला शर्मिंदा क्यों होगा?

इसलिए हे नीतीश कुमार जी, मैं राजद-कांग्रेस के अपने भाइयों-बहनों की तरह आपसे शर्मिंदा होने की मांग नहीं करूंगा। शर्मिंदा होने की ज़िम्मेदारी फिलहाल हमीं लोग निभा लेंगे और आगे यदि पटना, बेगूसराय, बेतिया, बक्सर- कहीं ऐसी घटना फिर से हो गई, तो उस दिन उस वक्त की परिस्थितियों के मुताबिक नए सिरे से विचार करेंगे कि हमें शर्मिंदा होना चाहिए कि नहीं। शुक्रिया।

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