लालू के राजद को छोड़ कोई भी क्षेत्रीय पार्टी मोदी की गोदी में बैठ सकती है, टीडीपी भी!

अभिरंजन कुमार जाने-माने लेखक, पत्रकार और मानवतावादी चिंतक हैं।

मेरे अनेक बीजेपी-विरोधी मित्र आदरणीय राहुल गांधी जी की ही तरह काफी मैच्योर हैं। इसका बड़ा सबूत यह है कि वे इन दिनों तेलुगु देशम पार्टी और उसके नेता चंद्रबाबू नायडू पर लहालोट हुए जा रहे हैं। जबकि मेरा मानना है कि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद ज़रूरी होने पर टीडीपी और चंद्रबाबू नायडू फिर से कभी भी बीजेपी की गोदी में बैठ सकते हैं।

मेरे भोले-भाले मासूम बीजेपी-विरोधी मित्र इस स्पष्ट राजनीतिक संदेश को भी दरकिनार कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर अपना जवाब देते हुए जहां आदरणीय राहुल गांधी जी की हर एक बात की पराकाष्ठा तक पहुंचकर बखिया उधेड़ी, वहीं चंद्रबाबू नायडू जी को केवल इतना कहकर बख्श दिया कि वे अपनी विफलता छिपाने के लिए एनडीए से अलग हुए हैं।

प्रधानमंत्री ने जहां मज़बूती से आंध्र के विकास के लिए एनडीए सरकार की प्रतिबद्धता जताई, वहीं टीडीपी सांसद जयदेव गल्ला की तरफ मुखातिब होकर कई बार कहा कि आपकी बातों का जवाब अवश्य दूंगा। वे चाहते तो सांसद महोदय को इग्नोर भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसका मतलब है कि बीजेपी टीडीपी के प्रति चरम तक नरम है और उसे पता है कि उसकी ज़रूरत उसे कभी भी पड़ सकती है। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि टीडीपी को भी बीजेपी की ज़रूरत कभी भी पड़ सकती है।

यह न भूलें कि जिस दिन बिहार विधानसभा चुनाव 2015 का परिणाम आया था, उसी दिन मैंने कहा था कि 2 साल के भीतर नीतीश कुमार पुनः भाजपा की गोदी में होंगे, तब मेरे अनेक भोले-भाले मासूम मित्र नीतीश कुमार जी की कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीति के गीत गा रहे थे और मुझपर अविश्वास कर रहे थे, लेकिन जब 2 साल से पहले ही वे भाजपा की गोदी में पुनः बैठ गए, तब मेरे सटीक अाकलन के लिए मुझे बधाई देने का साहस नहीं जुटा पाए थे।

एक बात और बता दूं कि इस देश में केवल एक ही क्षेत्रीय पार्टी है, जो बीजेपी से कभी हाथ नहीं मिलाएगी। वह पार्टी है लालू प्रसाद जी की राष्ट्रीय जनता दल। लेकिन इस बात की गारंटी भी मैं तभी तक दे सकता हूं, जब तक राजद की राजनीति पर लालू प्रसाद जी का आधिपत्य है और बेटे-बेटियां उनके वश में हैं। जब लालू प्रसाद जी का अवसान हो जाएगा, तब भी तेजस्वी, तेजप्रताप, मीसा एकजुट रहेंगे और धर्मनिरपेक्षता की इसी राह पर चलते रहेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं।

बहरहाल, दोहराता हूं कि इस समय राजद को छोड़कर कोई भी क्षेत्रीय पार्टी ऐसी नहीं है, जो मौका देखकर बीजेपी से हाथ नहीं मिला सकती है। जी हां, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी मौका देखकर बीजेपी से हाथ मिला सकती है, जिनके बारे में समझा जाता है कि वे बीजेपी-विरोधी पटल पर मज़बूती से अटल हैं।

नेशनल कांफ्रेंस (फ़ारूक-उमर), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (महबूबा), अकाली दल (बादल), इंडियन नेशनल लोक दल (चौटाला), समाजवादी पार्टी (मुलायम-अखिलेश), बहुजन समाज पार्टी (मायावती), राष्ट्रीय लोक दल (अजीत सिंह), जनता दल यूनाइटेड (नीतीश), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (कुशवाहा), झारखंड मुक्ति मोर्चा (शिबू), तृणमूल कांग्रेस (ममता), बीजू जनता दल (नवीन), तेलुगु देशम पार्टी (चंद्रबाबू), तेलंगाना राष्ट्र समिति (केसीआर), जनता दल सेक्युलर (देवेगौड़ा), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (करुणानिधि), अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (पलानीस्वामी-पन्नीरसेल्वम), शिवसेना (उद्धव), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (पवार) इत्यादि किस प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी का नाम लूं, जो बीजेपी से हाथ नहीं मिला चुकी है/नहीं मिलाया हुआ है/नहीं मिला सकती है?

हां, राष्ट्रीय जनता दल को छोड़कर देश में केवल दो और पार्टियां/मोर्चे हैं, जो बीजेपी से कभी हाथ नहीं मिलाएगी। वो हैं- कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां। क्योंकि ये दोनों पार्टियां/मोर्चे भी जिस दिन बीजेपी से हाथ मिलाएंगे, उसी दिन ये समाप्त हो जाएंगे। इस प्रकार बीजेपी-विरोधी गठबंधन में इस वक्त सही अर्थों में केवल तीन पार्टियां/मोर्चे हैं- कांग्रेस, राजद, कम्युनिस्ट पार्टियां। बस।

इसलिए, हे मेरे भोले-भाले मासूम दोस्तो, इस देश में धर्मनिरपेक्षता की राजनीति महज छलावा है। जब बाबा का बुलावा आ जाएगा, तो आपके सभी धर्मनिरपेक्ष दोस्त चढ़ावा चढ़ाने पहुंच जाएंगे। जब आदरणीय राहुल गांधी जी तक शिवभक्त और जनेऊधारी बन गए, तो यकीन मानिए कि केवल बीजेपी ही नहीं, इस देश की तमाम पार्टियां सांप्रदायिक हैं और इसका कोई अपवाद भी नहीं है। बात बस इतनी है कि जो पार्टी आपकी जाति या संप्रदाय का तुष्टीकरण करती है, वह आपको धर्मनिरपेक्ष नज़र आती है, बाकी सब सांप्रदायिक नज़र आते हैं। शुक्रिया।

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