अमेरिका से कुढ़ो नहीं, अमेरिका जैसा बनो
अमेरिका और उसके राष्ट्रपति (डोनाल्ड ट्रम्प समेत) अक्सर भारत में कई लोगों को इसलिए बुरे लगते हैं, क्योंकि वे आतंकवाद के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हैं। हम चाहते हैं कि वे भी इस मुद्दे पर हमारी तरह ढुलमुल होते और वे भी अपने बेगुनाह नागरिकों के मारे जाने पर मोमबत्तियां जलाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लिया करते।
अगर अमेरिका और उसके राष्ट्रपति भी आतंकवादियों के मानवाधिकार को बेगुनाह नागरिकों के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण समझते, तो हमारे देश के कई बुद्धिजीवियों को वे भी सुहाने लगते। लेकिन मेरा स्टैंड ज़रा अलग है। जब तक वे अपने नागरिकों की रक्षा के लिए दृढ-प्रतिज्ञ हैं और उनकी तरफ़ उठने वाली हर बुरी निगाह को नोच डालने के लिए संकल्पित हैं, तब तक वे श्रेष्ठ हैं।
जिस दिन वे अपने राष्ट्रीय हितों और नागरिकों की सुरक्षा से समझौता करेंगे, व्यक्तिगत मैं उस दिन उनपर सवाल खरे करूंगा। अगर उन्हें लगता है कि दुनिया के किन्हीं दूरस्थ हिस्सों में कोई ऐसा ख़तरा पल रहा है, जिससे उनके नागरिकों और राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंच सकता है, तो उस ख़तरे को मिटाने के लिए वे जो भी कदम उठाएं, वह जायज़ है।
अमेरिका या किसी देश के लोग अपना राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री इसलिए नहीं चुनते कि वह दूसरे मुल्को के प्रपंची बुद्धिजीवियों के एजेंडे के हिसाब से काम करें, बल्कि इसलिए चुनते हैं कि वह उनकी और उनके मुल्क की ज़रूरतों से गाइड हों। इसलिए जब तक अमेरिका और वहां के राष्ट्रपति अपने नागरिकों की अपेक्षाओं पर खरे हैं, तब तक मैं उनका प्रशंसक हूं।
पहले मैं भी प्रपंची बुद्धिजीवियों के फैलाए भ्रम से भ्रमित होकर अमेरिका और उसके राष्ट्रपतियो के बारे में अक्सर आलोचनात्मक ही रहता था, लेकिन अब जब देखता हूं कि हमारे मुल्क में कुछ दूसरा ही खेल चल रहा है, और हमारे यहां बेगुनाह नागरिकों की जान सबसे सस्ती हो गई है, तब समझ में आया है कि वे लोग कितने सही हैं और हम कितने ग़लत हैं।
इसलिए अब हम अमेरिका से जलते नहीं हैं। अब हम वहां के राष्ट्रपतियों से कुढ़ते नहीं हैं। सच कहूं तो आज यह हमारे दिल की ख्वाहिश है कि किसी दिन हमारा मुल्क भी अमेरिका की तरह ताकतवर बने और हमारे प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति भी हमारे हितों की सुरक्षा के लिए वैसे ही दृढ-प्रतिज्ञ दिखाई दें, जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति दिखाई देते हैं।