मैं बुद्धिजीवी आप परजीवी (कविता)
मैं बुद्धिजीवी। आप परजीवी।
आइए हम सब
आतंकवादियों द्वारा मारे गए लोगों के प्रति दुख प्रकट करें
फिर आतंकवादियों को सज़ा दिए जाने का विरोध करें।
कभी किसी ग़रीब, किसान, औरत, नौजवान
बूढ़े, बच्चे के अधिकार का ज़िक्र तक न करें
लेकिन आतंकवादियों के कथित अधिकारों के लिए
बड़ी-बड़ी बातें करें
कर्णभेदी नारे लगाएं
सरकार-प्रशासन ठप्प कर दें।
आतंकवाद के लिए कहीं अमेरिका या रूस,
तो कहीं भारत के सैन्य बलों को ज़िम्मेदार ठहराएं।
लेकिन मुल्लाओं, मौलानाओं, मस्जिदों, मदरसों पर
कभी भी उंगली न उठाएं।
कहीं कोई आतंकवादी मारा जाए, तो विधवा विलाप करें।
कहीं कोई सैनिक मारा जाए,
तो मन ही मन ख़ुश हों
कहें कि सैनिक तो मरने के लिए ही होते हैं।
मारे गए आतंकवादी के घर-घर में पैदा होने की दुआ करें
दुनिया के शांतिप्रिय मुल्कों के टुकड़े-टुकड़े करने की ख्वाहिश रखें
बंदूक के दम पर आज़ादी लेने का नारा लगाने वालों को
यूथ आइकन घोषित करें।
जब धर्म के नाम पर लोगों का गला रेता जाता हो
तो घर में बैठकर टीवी देखें, बीवी-बच्चे पालें।
जब आतंकवादियों को फांसी हो,
तो सड़कों पर उतर आएं
फांसी-विरोध का झंडा उठा लें।
मैं बुद्धिजीवी। आप परजीवी।
मैं प्रगतिशील। आप दुर्गतिशील।
आओ मेरी दुकान में।
मानव अधिकारों की बात कर दानवों को बचाएं।
बढ़िया ठेका मिला है, मिल-बांटकर खाएं।
जूठन चाटें। आपस में बांटें।
अपने लिए तो जन्नत है, हूरें हैं, बाग़-बग़ीचे हैं
औरों के लिए बो दिये कांटे ही कांटे।