गुरमेहर को बताना चाहिए उसके पिता शहीद थे या युद्ध उन्मादी!
गुरमेहर को शायद इस बात का अहसास नहीं है कि एक आम छात्र की किसी आवाज़ का तब तक कोई मतलब नहीं होता, जब तक कि या तो वह कन्हैया की तरह जेल नहीं भेज दिया जाता या फिर रोहित वेमुला की तरह सुसाइड नहीं कर लेता। उसकी बात इतनी सुनी ही इसलिए जा रही है, क्योंकि वह एक शहीद की बेटी है। उसे एक शहीद की बेटी होने की गरिमा को समझना चाहिए और टुच्ची राजनीति के चक्कर में पड़कर अपने पिता की नाक नहीं कटानी चाहिए।
जब वह यह कहती है कि उसके पिता को पाकिस्तान ने नहीं, युद्ध ने मारा है, तो वह न सिर्फ़ पाकिस्तान को उसके सभी गुनाहों से बरी कर देती है, बल्कि अपने पिता की कुर्बानी को भी एक पल में मिट्टी में मिला देती है। उसे बताना चाहिए कि उसके पिता को शहीद कहा जाना चाहिए या युद्ध उन्मादी? उसे बताना चाहिए कि क्या उसके पिता को सेना में नहीं जाना चाहिए था? या अगर वे भूलवश सेना में चले गए थे, तो क्या उन्हें करगिल की लड़ाई के बीच से मैदान छोड़कर भाग जाना चाहिए था?
गुरमेहर को बताना चाहिए कि अपने पिता की मौत के लिए जिस युद्ध को वह ज़िम्मेदार मानती है, उसकी शुरुआत पाकिस्तान ने की थी या भारत ने की थी? मेरी राय में अभी वह बच्ची है और जैसे-जैसे उसकी बुद्धि का विकास होगा, उसे समझ में आ जाएगा कि लेफ्टिस्टों के चक्कर में पड़कर वह किस पापी पाकिस्तान के प्यार में पड़ गई है। जिस देश के पड़ोस में पाकिस्तान जैसा पापी, धर्मांध, कट्टर और आतंकवादी देश हो, वह युद्ध से कब तक बचा रह सकता है? इसलिए, हम उसका मखौल नहीं उड़ाना चाहते। हां, कभी मिले, तो समझाना ज़रूर चाहेंगे।
बहरहाल, जो लोग गुरमेहर का मखौल उड़ा रहे हैं, एक बात उनसे भी कहना है कि अपने से छोटों का मखौल उड़ाकर हम बड़े नहीं हो जाते। जब साक्षी महाराज और आजम ख़ान जैसे लोगों को इस देश में पॉलीटिक्स करने का हक़ है, तो गुरमेहर को भी हक़ है कि जितना वह समझती-बूझती है, उसके हिसाब से पॉलीटिक्स करे। मेरा ख्याल है कि अगर वह राजनीति में आए, तो कम से कम प्रियंका गांधी और डिम्पल यादव से तो अधिक ही प्रतिबद्ध रहेगी।
इसलिए, ईश्वर उसके पिता की आत्मा को शांति दें और उसे विवेक, ईमानदारी और समझदारी दें, ताकि आगे जीवन में वह तरक्की करे और अपने पिता का नाम मिट्टी में न मिलाए।
वरिष्ठ कवि और पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से।