तो उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी लाई कब्रिस्तान?

जब मैंने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा कि “चुनाव के उत्सव में कब्रिस्तान और श्मशान कहां से ले आए मोदी जी?”, इसके बाद मेरे पास तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं। जो प्रतिक्रियाएं मेेरे सवाल के साथ सहमति में आईं, उन्हें सामने रखने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उनकी बात तो मैं कह ही चुका हूं, लेकिन जो प्रतिक्रियाएं असहमति में आईं हैं, उन्हें स्पेस देना भी ज़रूरी लग रहा है।

किन्हीं अनामिका सिंह ने मेरे फेसबुक पेज पर एक तस्वीर भेजकर बताने की कोशिश की है कि चुनाव में कब्रिस्तान और श्मशान कहां से आया। यह तस्वीर किसी जगह पर सिंचाई विभाग की ज़मीन कब्रिस्तान के लिए स्वीकृत करने पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बधाई देते एक पोस्टर की है। मैं इस तस्वीर की सत्यता की पुष्टि नहीं करता, लेकिन पाठकों के लिए साझा कर रहा हूं।

कुछ अन्य मित्रों ने कहा कि दिल्ली में बंद कमरे में बैठकर किसी पत्रकार के लिए ऐसे सवाल उठाना आसान है, लेकिन यह उत्तर प्रदेश की कड़वी सच्चाई है कि वहां सरकारी योजनाओं में धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। जिन गांवों से अखिलेश यादव की पार्टी को वोट नहीं मिलते या कम मिलते हैं, वहां बिजली नहीं दी जाती, पर जिन गांवों में बिजली देने से सांप्रदायिक तुष्टीकरण का मकसद पूरा हो सकता है, वहां निर्बाध बिजली दी जा रही है।

कुछेक मित्रों ने कहा कि जब पिछले प्रधानमंत्री ने एक चर्चित सांप्रदायिक बयान दिया था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है, तब उसमें किसी को अटपटा नहीं लगा था, लेकिन जब मौजूदा प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि किसी भी सरकार को धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए, तो लोग बात का बतंगड़ बना रहे हैं।

कुछ मित्रों ने कहा है कि मायावती हर सभा में एक धर्म विशेष के लोगों से खुलेआम वोट मांगती हैं, वह भी तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, लेकिन उनके लिए मर्यादा की बात कोई नहीं कर रहा। इसी तरह अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह भी समुदाय विशेष के वोट लेने के लिए हिन्दुओं पर गोली चलवाने की घटना का खुलेआम ढिंढोरा पीटते हैं, जैसे इतने लोगों का नरसंहार करके बड़े पुण्य का काम किया हो, फिर भी कोई उनके लिए मर्यादाएं तय नहीं कर रहा। फिर सारी मर्यादा मोदी के ही लिए फिक्स की जा रही हैं, क्यों?

अपने तमाम ऐसे मित्रों से कहना चाहूंगा कि आज राजनीति की रग-रग में इतनी गंदगी घुस गई है कि किसी भी ग़लत बात को जस्टिफाइ करने के लिए सैकड़ों-हज़ारों दलीलें दी जा सकती हैं। लेकिन दूसरा ग़लत कर रहा है, इसलिए हम भी गलत करें, यह कोई दलील नहीं हो सकती।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने सांप्रदायिक सियासत की सारी हदें लांघ डाली हैं, लेकिन इससे भारतीय जनता पार्टी को यह लाइसेंस नहीं मिल जाता, कि वह भी उसी भाषा में उनका जवाब दे। ख़ासकर प्रधानमंत्री देश का सबसे गरिमामय राजनीतिक पद होता है, इसलिए उनके मुुंह से एक-एक शब्द काफी नाप-तौलकर निकलना चाहिए।

मैंने अपने पिछले लेख में यह तो कहा ही था कि प्रधानमंत्री की यह बात बिल्कुल उचित है कि धर्म के आधार पर किसी सरकार को भेदभाव नहीं करना चाहिए, लेकिन आगे इसकी व्याख्या में उन्होंने जो बातें कही, उससे उन्हें बचना चाहिए था। अगर प्रधानमंत्री ने “सबका साथ, सबका विकास” का नारा दिया है, तो उनकी किसी भी बात से उनकी मंशा पर सवालिया निशान नहीं लगना चाहिए। साथ ही, देश के प्रधानमंत्री को राज्य के जातिवादी और सांप्रदायिक नेताओं के स्तर तक नीेचे नहीं आना चाहिए।

बहरहाल, बिहार और उत्तर प्रदेश- इन दोनों राज्यों को अपने दो फेफड़ों की तरह समझता हूं और दुख तो होता ही है, जब महसूस होता है कि इनमें इतनी गंदगी भर गई है कि सांस लेना भी दूभर हो रहा है। इन दोनों राज्यों की राजनीति को कवर करते-करते ख़ुद में बीमार महसूस करने लगा हूं। इतनी मात्रा में जातिवाद और सांप्रदायिक उन्माद के रहते कोई राज्य कैसे तरक्की कर सकता है?

अभिरंजन कुमार भारत के चर्चित हिन्दी कवि, पत्रकार और चिंतक हैं।
अभिरंजन कुमार भारत के चर्चित हिन्दी कवि, पत्रकार और चिंतक हैं।

वरिष्ठ कवि और पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *