कहीं चुल्लू भर पानी में डूब गया है बिहार में सुशासन!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं।

जैसे देश की राजनीति में “धर्मनिरपेक्षता” शब्द सबसे बड़ा ढकोसला बन गया है, वैसे ही बिहार की सरकार में “सुशासन” का हाल है। जैसे देश की राजनीति में “धर्मनिरपेक्षता” के चौतरफा नारों के बीच धर्मनिरपेक्षता को आप ढूंढ़ते ही रह जाएंगे, वैसे ही “सुशासन” के सर्व-व्यापी शोर के बीच बिहार की सरकार में सुशासन आपको कहीं नहीं मिलेगा।

चार साल पहले छठ पर्व के दौरान गंगा में चचरी पुल पर मची भगदड़ से लेकर मकर संक्रांति के मौके पर ताज़ा नाव-दुर्घटना तक बिहार में हादसों की एक शृंखला बन चुकी है। बीच में बोधगया और गांधी मैदान में बम धमाके भी हुए। गांधी मैदान में एक बार बड़ी भगदड़ भी मची। इन हादसों में सैकड़ों लोग बेमौत मारे गए, लेकिन हर बार प्रशासन की चूक साफ़ नज़र आई।

ऐसा लगता है, जैसे सरकार के भीतर का “सुशासन” भी वहीं कहीं गंगा में डूब कर या किसी भगदड़ में कुचल कर मर गया है या किसी धमाके में उसके चीथड़े उड़ गए हैं। अफ़सोस की बात यह है कि नीतीश कुमार लालू यादव के राज को “जंगलराज” कहा करते थे और लालू यादव नीतीश कुमार के राज को “कुशासन” कहा करते थे। लेकिन दोनों भाई जब इकट्ठा भी हुए, तो बिहार में वे एक अत्यंत ही कमज़ोर और निष्प्रभावी सरकार चला रहे हैं।

आख़िर एक शराबबंदी की आड़ में अपनी सरकार और प्रशासन की कितनी कमियां छिपाओगे सुशासन बाबू? और लालू जी, 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले आपने भी तो पिछली ग़लतियों के लिए जनता से बार-बार माफ़ी मांगी थी। जनता ने आप पर भरोसा भी किया और माफ़ी भी दी, लेकिन अगर दोबारा आपकी सरकार जनता को संतुष्ट करने में विफल रही, तो फिर लोगों से क्या कहेंगे?

और… ये भोज-भात वाली लाल-बुझक्कड़ पॉलीटिक्स बिहार में बहुत हो गई। लोग एक दिन किसी को भरे भोज से भगा देते हैं, दूसरे दिन दूसरे के भोज में भी बुला लेते हैं। इसलिए मेरा ख्याल है कि आप दोनों भाइयों को दाएं-बाएं की सारी राजनीति भूलकर कम से कम दो साल यानी 2017 और 2018 में अच्छी से अच्छी सरकार चलाने की कोशिश करनी चाहिए। फिर 2019 में जितनी राजनीति करनी होगी, कर लीजिएगा। शुक्रिया।

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