मोदी की जीत कहकर केजरीवाल की हार को छोटी मत कीजिए!

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं।

मीडिया हर रोज़ पीएम मोदी का जादू टेस्ट करता है। मोदी ने राष्ट्र जीता, महाराष्ट्र जीता। हरियाणा, झारखंड, असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जीता… फिर भी उसे पीएम मोदी का जादू टेस्ट करना था। इसीलिए अब एमसीडी चुनाव में बीजेपी की जीत को भी वह पीएम मोदी का ही जादू बता रहा है, लेकिन यह बताने में संकोच कर रहा है कि यह बीजेपी की जितनी बड़ी जीत नहीं है, उससे कहीं अधिक बड़ी केजरीवाल की हार है। शायद विज्ञापन बहादुर केजरीवाल के विज्ञापनों का मोह उसे यह सच बताने से रोक रहा है।

बीजेपी ने पिछले एमसीडी चुनाव में 138 सीटें जीती थीं। इस बार उसे 181 सीटें मिली हैं। दूसरी तरफ़ आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीती थीं। इस हिसाब से उसे 270 में 258 सीटें जीतनी चाहिए थी, लेकिन उसने जीतीं मात्र 48 सीटें। अब कोई मुझे बताए कि 138 के मुकाबले 181 अधिक बड़ा है, या 258 के मुक़ाबले 48 अधिक छोटा है?

बीजेपी की जीत में नरेंद्र मोदी एक फैक्टर हो सकते हैं, लेकिन वह एकमात्र और सबसे बड़े फैक्टर नहीं हैं। सबसे बड़े फैक्टर तो स्वयं केजरीवाल हैं, जिनकी दो साल पुरानी सरकार के ख़िलाफ़ एंटी-इनकम्बेन्सी फैक्टर इस पैमाने पर काम कर रहा था कि उसके मुकाबले पिछले 10 साल से एमसीडी में काबिज बीजेपी का एंटी-इनकम्बेन्सी फैक्टर भी छोटा पड़ गया।

जो लोग कह रहे हैं कि दिल्ली के लोगों ने वार्ड के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट डाला, उन्हें बताना चाहिए कि फिर विधानसभा चुनाव’ 2015 में मोदी के नाम पर वोट क्यों नहीं डाला था, जबकि लोकसभा चुनाव’ 2014 की ज़बर्दस्त कामयाबी के बाद मोदी के जलवे में तब भी कहीं कोई कमी नहीं आई थी? जब विधानसभा चुनाव में मोदी के नाम पर वोट नहीं डाला, तो वार्ड के चुनाव में उनके नाम पर वोट कैसे डाल दिया?

ज़ाहिर है कि जब आप कहते हैं कि वार्ड के चुनाव में जनता ने प्रधानमंत्री का मुखड़ा देखकर वोट डाला है, तो आप दिल्ली की जनता के विवेक पर भी सवालिया निशान खड़ा करते हैं। आपको कहना यह चाहिए कि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ वोट डाला है। और यहां अन्ना हज़ारे की बात मुझे अधिक सही लगती है, जिन्होंने कहा है कि कथनी और करनी में अंतर के चलते ही केजरीवाल की यह हार हुई है।

केजरीवाल ने बड़ी-बड़ी बातें की थीं। ख़ुद को ईमानदार कहा था। बाकी सबको चोर, भ्रष्ट और बेईमान बताया था। लोगों ने उनकी बात पर भरोसा करके एक बार उन्हें आजमाने का फ़ैसला भी कर लिया। लेकिन केजरीवाल ने एक-एक करके उनके सारे भरम तोड़ डाले। कांग्रेस के ख़िलाफ़ आंदोलन करके कांग्रेस के ही समर्थन से सरकार बना ली।

फिर, रातों-रात प्रधानमंत्री बनने का सपना लेकर 49 दिन में ही सरकार छोड़कर भाग गए, लेकिन लोकसभा चुनाव में कुछ ख़ास नहीं कर पाए। तब जनता से कहा कि गलती हो गई, माफ़ कर दो, अब दिल्ली छोड़कर कभी नहीं भागूंगा। लेकिन हाल ही में हमने देखा कि एक बार फिर से वे दिल्ली को छोड़ पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के लिए किस कदर लालायित थे। यह अलग बात है कि पंजाब की जनता ने भी उन्हें धूल चटा दी।

केजरीवाल के कई मंत्री और विधायक भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी समेत कई मामलों में एक्सपोज़ हुए। स्वयं इस “ईमानदार” नेता ने अपनी छवि चमकाने के लिए जनता के सैकड़ों करोड़ दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में विज्ञापन देकर फूंक दिए। इतना ही नहीं, अपने राजनीतिक केस के वकील की फीस भी दिल्ली की जनता के पैसे से ही चुकाने की कोशिश की।

बंगला, गाड़ी, तनख्वाह, सिक्योरिटी नहीं लेने का ढोंग रचने वाले केजरी भाई और उनके लगुए-भगुओं ने न सिर्फ़ सब कुछ लिया, बल्कि दूसरी पार्टियों के नेताओं से भी बढ़-चढ़कर लिया। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना डाला। इस बड़े पैमाने पर रेबड़ियां बांटने की कोशिश इससे पहले दिल्ली की किसी भी सरकार ने नहीं की थी।

इतना ही नहीं, दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी, तो वे मुख्यमंत्री को दोषी ठहराते थे। अपनी सरकार बनी, तो बात-बात पर प्रधानमंत्री को दोषी ठहराने लगे। आए दिन लेफ्टिनेंट गवर्नर से बेमतलब पंगे लेते रहे। नियमों-कानूनों के हिसाब से काम करने में उन्हें अपनी हेठी महसूस होती रही। नतीजतन, जनता ने यह तो नहीं माना कि मोदी उन्हें काम करने नहीं दे रहे, बल्कि यह ज़रूर मान लिया कि केजरीवाल ही एमसीडी में बीजेपी को काम करने नहीं दे रहे।

लिहाजा, लोगों को जब राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में पहला मौका मिला, तब भी केजरीवाल को धूल चटाई। और जब इस एमसीडी चुनाव में दूसरा मौका मिला, तब भी धूल चटाई। इसलिए, मोदी की लोकप्रियता को मैं ख़ारिज नहीं कर रहा, लेकिन एमसीडी चुनाव के इन नतीजों को केजरीवाल के ख़िलाफ़ जनता के गुस्से का विस्फोट अधिक मानता हूं।

फिर भी, जो लोग केजरीवाल का डिस्क्रेडिट छीनकर बीजेपी को क्रेडिट देना ही चाहते हैं, वे नरेंद्र मोदी के अलावा थोड़ा सा क्रेडिट राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को भी दें, जिन्होंने एक भी मौजूदा पार्षद को टिकट न देने का अत्यंत जोखिम भरा निर्णय ले लिया। ऐसा रिस्क लेकर उन्होंने एमसीडी में बीजेपी के ख़िलाफ़ एंटी-इनकम्बेन्सी फैक्टर को शून्य कर दिया और पिछली जीत से भी बड़ी जीत हासिल करने की भूमिका रच दी। साथ ही, थोड़ा-सा क्रेडिट प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को भी दिया जाना चाहिए, जिनकी जादुई छवि ने दिल्ली के पूर्वांचलियों को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने में अहम भूमिका निभाई।

और फिर यह कहना भी ज़रूरी है कि अगर वार्ड चुनाव में बीजेपी की जीत का सेहरा प्रधानमंत्री मोदी के सिर बांधा जा सकता है, तो फिर कांग्रेस की करारी हार का ठीकरा भी उसके अघोषित अध्यक्ष सह उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सिर फोड़ना चाहिए, जिनके तेज़विहीन नेत़ृत्व के ख़िलाफ़ बीच चुनाव में अरविंदर सिंह लवली और बरखा शुक्ला ने पार्टी बदल ली।

Print Friendly

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shares