क्या मुस्लिम मेरे भाई-बहन नहीं, जो उन्हें नहीं दिखा सकता आईना?

हिन्दू धर्म की मान्यताओं पर भी मैं कभी मोहित नही हुआ। इधर बीच इसमें घुस आई कुरीतियों पर भी मैं हमेशा हमलावर मुद्रा में रहता हूं। जिन प्रमुख मुद्दों पर मैं नियमित रूप से हमले करता रहता हूं, उनमें- पर्व-त्योहारो पर मासूम जानवरों की बलि, कुकुरमुत्ते की तरह उग आए भगवान और बाबा एवं जाति-प्रथा शामिल हैं।

शंकराचार्य ने तो सिर्फ़ साईं बाबा को भगवान मानने से इनकार किया, लेकिन संभवतः मैं अकेला था, जिसने कहा कि स्वामीनारायण इत्यादि के नाम पर भी करोड़ों-अरबों का खेल हो रहा है, इसे रोको। इतना ही नहीं, यह भी कहा कि 33 करोड़ देवी-देवता पहले ही हो चुके हैं, अब इनकी नई खेप मत पैदा होने दो।

निर्मल बाबा, आसाराम बापू, राधे मां इत्यादि कई बाबाओं और माताओं को एक्सपोज करने के लिए मीडिया ने शानदार काम किया। हमने भी उन अभियानों को अपना पूरा वैचारिक समर्थन दिया, और उन्हें धर्म के गोबर पर उग आए गोबरछत्तों की संज्ञा देते हुए समूल उखाड़ने का आह्वान किया।

इसी तरह, राम सेना, हिन्दू सेना, शिव सेना इत्यादि संगठनों एवं साध्वी प्राची, साक्षी महाराज, संगीत सोम- इत्यादि लोगों का अक्सर खुलकर विरोध करता रहता हूं। साथ ही मीडिया से भी लगातार अपील करता रहता हूं कि इन लोगों और संगठनो को अधिक तरजीह न दी जाए।

और आपको यह भी पता है कि मेरे लिखने-बोलने का क्या तरीका है। मैं कभी डिप्लोमैटिक होकर नहीं लिखता। सिर्फ़ भाषाई मर्यादा नहीं छोड़ता, बाकी जो भी कहना होता है, कह देता हूं। कुछ भी बचाकर नहीं रखता। इसके बावजूद हमारे लिखे हुए को हज़ारों-लाखों हिन्दुओं का समर्थन प्राप्त होता है।

जब कभी इस्लाम की कुरीतियों, अंधविश्वासों, ग़लत परंपराओं, नकली धर्मगुरुओं इत्यादि की पोल खोलने की कोशिश करता हूं, तो सारे लोग पिल पड़ते हैं। उनकी भाषा बिगड़ जाती है। वे गाली-गलौज और धमकी देने पर उतर आते हैं। शायद ही कोई समर्थन में सामने आता हो। और तो और, धर्म को अफीम मानने वाले हमारे वामपंथी मित्र और सेक्युलर विचारक भी ऐसे मौकों पर गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाते हैं।

पर मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि जब कभी इस्लाम की कुरीतियों, अंधविश्वासों, ग़लत परंपराओं, नकली धर्मगुरुओं इत्यादि की पोल खोलने की कोशिश करता हूं, तो सारे लोग पिल पड़ते हैं। उनकी भाषा बिगड़ जाती है। वे गाली-गलौज और धमकी देने पर उतर आते हैं। शायद ही कोई समर्थन में सामने आता हो। और तो और, धर्म को अफीम मानने वाले हमारे वामपंथी मित्र और सेक्युलर विचारक भी ऐसे मौकों पर गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाते हैं।

जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने भी अपनी ऐसी ही पीड़ा का ज़िक्र किया है- “Secularism cannot be a one way traffic. When I condemn Hindu fundamentalists, Muslims applaud me. But when I condemn Muslim fundamentalists, most brand me as communal. Sorry, this wont do.”

मैं साफ़-साफ़ पूछना चाहता हूं कि अगर यह भारत हमारा है, हिन्दू और मुस्लिम दोनों इसमें रहते हैं, हम हिन्दुओं के अलावा मुसलमानों को भी अपना ख़ून समझते हैं, तो क्या हमें उनकी बुराइयों, कुरीतियों, अंधविश्वासों, ग़लत परंपराओं, नकली धर्मगुरुओं से उन्हें आगाह करने का अधिकार नहीं है?

हे ईश्वर, हे अल्लाह, हे वाहेगुरु, हे ईसा… मैं तुम लोगों का नाम तो नहीं लेना चाहता, क्योंकि इस धरती पर आज जितने तरह के धत्कर्म हो रहे हैं, उनमें अधिकांश तुम्हीं लोगों के नाम पर हो रहे हैं… फिर भी मजबूरी यह है कि तुम लोगों का नाम लिए बिना लोग समझते ही नहीं हैं, इसलिए तुम्हीं लोगों का नाम लेकर दुआ करता हूं कि धरती से धर्मांधता, कट्टरता, नफ़रत और अंधविश्वासों का नाश हो। तुम्हारे बनाए तथाकथित जन्नतों, स्वर्गों, हूरों, अप्सराओं इत्यादि की चाह में लोग इस धरती को जहन्नुम, नरक, स्त्रियों की शोषण-स्थली या इंसानों की कत्लगाह न बनाएं! सबको सद्बुद्धि मिले।

अभिरंजन कुमार भारत के वरिष्ठ हिन्दी कवि और पत्रकार हैं।
अभिरंजन कुमार भारत के चर्चित हिन्दी कवि और पत्रकार हैं।

वरिष्ठ कवि और पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से।

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