मीटू पर डबल स्टैंडर्ड रखकर कैसे तय होगी कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा?

अभिरंजन कुमार जाने-माने लेखक, पत्रकार और मानवतावादी चिंतक हैं।

देश में ग़ज़ब माहौल है। एक पक्ष विनोद दुआ पर मज़े ले रहा है और एमजे अकबर का बचाव कर रहा है। दूसरा पक्ष एमजे अकबर पर प्रहार कर रहा है और विनोद दुआ पर ख़ामोश है।

ज़ाहिर है कि आज अगर विनोद दुआ भाजपा के पक्ष में बोल रहे होते और एमजे अकबर कांग्रेस के नेता होते, तो इन्हीं लोगों की भूमिकाएं बिल्कुल उलटी होतीं। यह ऐसी स्थिति है, जिस पर आपको उल्टी आ सकती है।

हमारा कहना है कि अगर महिलाओं का शोषण मुद्दा है, तो आपको विनोद दुआ और एमजे अकबर दोनों को एक नज़र से देखने की ज़रूरत है। अगर न्याय के सिद्धांत के तहत सफाई देने और जांच में बेगुनाही साबित करने का मौका देना है, तो दोनों को दें। और अगर कसूरवार मानना है तो दोनों को मानें। पर अगर आप ऐसा नहीं कर रहे, तो स्पष्ट है कि चुनाव से पहले आप अलग-अलग राजनीतिक दलों के हाथों में खेल रहे हैं।

जहां तक #MeToo कैंपेन का सवाल है, तो हर बात में नकारात्मकता ढूँढ़ने के इस दौर में #MeToo की आलोचना में तर्क तो मैं भी बहुत ढूँढ़ सकता हूँ, लेकिन मैं ऐसा पाप करूँगा नहीं, क्योंकि मैं इसके सकारात्मक पहलुओं को भी देख रहा हूँ।

हालांकि यह भी कहूंगा कि अगर #MeToo कैम्पेन हर पुरुष को व्यभिचारी साबित कर देगा, तो इसका फ़ायदा नहीं होगा। लेकिन #Metoo अगर हर पुरुष में यह डर बैठा दे कि व्यभिचार करना अब ख़तरे से खाली नहीं, क्योंकि महिलाएं जाग चुकी हैं, तो इसका फ़ायदा अवश्य होगा।

जहां तक एमजे अकबर द्वारा आरोप लगाने वाली एक महिला पर मानहानि मुकदमा दायर किए जाने का मामला है, तो मैं कहूंगा कि यह उनका कानूनी अधिकार है। इस पर हायतौबा मचाने की ज़रूरत नहीं। आरोप लगाने वाली महिलाएं भी अपने पक्ष को रखते हुए कानून की शरण में जा सकती हैं और अकबर के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करा सकती हैं।

लेकिन जहां तक अकबर के मंत्री पद पर बने रहने का सवाल है, तो मेरा मानना है कि उन्हें सच्चाई सामने आने तक या अपने पक्ष को बेदाग साबित करने तक पद से हट जाना चाहिए। क्योंकि यह केवल कानूनी प्रश्न ही नहीं, नैतिक प्रश्न भी है।

अगर उन पर आरोप लगाने वाली एक-दो महिलाएं होतीं, तो मैं भी शक कर सकता था, लेकिन एक साथ 14-15 महिलाओं पर शक करने का दुस्साहस मैं नहीं कर सकता, खास कर तब, जबकि मुझे पता है कि #MeToo में जो चीजें सामने आ रही हैं, मीडिया जगत की सच्चाई उससे अलग नहीं है।

इसलिए जो लोग यह कह रहे हैं कि एमजे को पद से हटाए जाने से गलत मिसाल कायम होगी, उनसे असहमति जताते हुए मेरी राय यह है कि एमजे अकबर को पद से नहीं हटाने से गलत मिसाल कायम होगी।

#metoo के कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं और कुछ नकारात्मक पहलू भी। यह भी सच है कि कुछ महिलाएं गलत भी हो सकती हैं, पर हमें समाज में #metoo के सकारात्मक परिणामों को उतरने देना चाहिए।

महिलाओं को बुरी नज़र से देखने और भोग्या समझने वालों को दंडित करने के लिए नवरात्र और दशहरे से बेहतर कोई और मौका नहीं हो सकता।

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