राम का काम तो कांग्रेस ने किया, बीजेपी ने केवल राजनीति की!
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के संबंध में आज एक प्रिय नौजवान से बात हो रही थी। मैंने उससे पूछा कि मन्दिर में पूजा कब से हो रही है? उसने जबाब दिया कि सदियों से। आम लोगों को, खासकर नई पीढ़ी को यह पता नहीं है कि 1949 में पहली बार उस खाली पड़े ढाँचे में राम, लक्ष्मण, जानकी जी की मूर्ति अचानक रख दी गई और लोग वहां कीर्तन करने लगे।
केन्द्र में उस समय पंडित नेहरू प्रधानमंत्री थे और गोविंद वल्लभ पन्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री। क्या आजादी के तुरंत बाद जो नेहरू जी और कांग्रेस का आभामंडल था, बिना उनकी सहमति के वहां मूर्ति विराजमान रहती या पूजा की अनुमति मिलती? उस समय तक भाजपा के पूर्ववर्ती संगठन जनसंघ की स्थापना भी नहीं हुई थी और गाँधी की हत्या का आरोप झेल रहा आरएसएस अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा था। तब से लगातार वहाँ रामजी की पूजा चलती आ रही थी।
उसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद अटल जी को हटाकर आडवाणी जी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और संघ परिवार ने विहिप को आगे कर पहली बार राम मंदिर के मुद्दे को उठाने का काम किया। उसके पहले 1949 से 1984 तक किसी संगठन ने राम मंदिर का मुद्दा नहीं उठाया। लोग कहते हैं कि इसके पीछे अशोक सिंघल और गोविंदाचार्य का दिमाग था। इस तरह से देखने पर यह लगता है कि 1984 की करारी शिकस्त के बाद यह भाजपा के लिए भावनात्मक नहीं, वरन रणनीतिक मुद्दा था।
1986 में जो रामलला की मूर्ति ताले में बन्द थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उसका ताला खुलवाया और 1989 में राम मंदिर का शिलान्यास भी कराया।
1992 में नरसिंह राव के प्रधानमंत्री रहते उस विवादित ढाँचे को कारसेवकों ने ध्वस्त कर दिया। तब से रामजी टेन्ट में विराजमान हैं।
1998 में अटल जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राम मन्दिर निर्माण की दिशा में कोई प्रयास नहीं हुआ। उल्टे राम रथ यात्रा के नायक उप प्रधानमंत्री आडवाणी जी ने सार्वजनिक बयान दिया कि मैंने कभी राम मन्दिर बनाने का वायदा नहीं किया था। उस समय तो यह तर्क दिया जाता था कि 24 दलों के सहयोग से सरकार है, अपना बहुमत नहीं है, इसलिए लाचारी है।
आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में साढ़े चार साल से अपनी बहुमत की सरकार चल रही है। प्रधानमंत्री भी अपना, राष्ट्रपति भी अपना, उपराष्ट्रपति भी अपना, उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री भी अपना, राज्यपाल भी अपना। अब कौन सी बाधा है राम मन्दिर निर्माण में? सरकार बनते ही जो प्रयास होना चाहिए था, उसको आज तक लटका कर क्यों रखा गया? अगर कोर्ट का ही मामला था तो शुरू में ही कोर्ट में सरकार आग्रह करती कि इसका समाधान अविलम्ब होना चाहिए। सरकार के चाहने पर कोर्ट के वश में इसको टालना नहीं था। लेकिन इनकी मंशा राम मन्दिर का निर्माण नहीं, वरन उसके मुद्दे को जिन्दा रखकर राजनीतिक लाभ लेना है।
आज अपने आई टी सेल के माध्यम से मुख्य न्यायाधीश को गाली दिलवाया जा रहा है और युवा पीढ़ी को भ्रमित करने का काम हो रहा है।
राम मन्दिर तो छोड़िए समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में क्या काम हुआ? जनसंख्या नियंत्रण के लिए क्या प्रयास किया गया? कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के लिए क्या किया गया? 1989 के बाद कश्मीर घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडितो को फिर से बसने के लिए कश्मीर सरकार में रहते क्या किया गया?
यह सब लिखने का कारण नई पीढ़ी को सही वस्तुस्थिति की जानकारी देना है ताकि भ्रम में नहीं रहें।
डिस्क्लेमर :- इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। ज़रूरी नहीं कि बहसलाइव.कॉम भी इन विचारों से सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावों या आपत्तियों के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं।
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