पीओके अगर भारत का है, तो उसे वापस पाने के लिए भारत क्या कर रहा है?

अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि व मानवतावादी चिंतक हैं।

फारूख अब्दुल्ला अगर कहते हैं कि पीओके पाकिस्तान का है, तो इसकी आलोचना कीजिए, लेकिन पीओके अगर भारत का है, तो उसे वापस पाने के लिए भारत क्या कर रहा है? ज़रा इसपर भी सोचिएगा।

1965, 1971 और 1999 में तीन युद्ध हो गए, लेकिन यह हिस्सा वापस भारत को नहीं मिल सका, तो क्या इसे वापस हासिल करने के लिए कोई चौथा युद्ध होगा, जो पिछले तीन युद्धों से बहुत बड़ा होगा और पीओके को भारत के साथ वापस लेने के मकसद से भारत की तरफ़ से छेड़ा जाएगा? या फिर किसी युद्धेतर बातचीत में पाकिस्तान भारत के चरणों में लोटपोट हो जाएगा और भारत की थाली में पीओके को सजाकर वापस कर देगा?

मुझे यह समझ में नहीं आता कि हम सिर्फ़ पीओके को अपना अभिन्न हिस्सा बताते हैं, लेकिन अपने इस अभिन्न हिस्से की तरफ़ आंख उठाकर देखने की भी हमारी हिम्मत नहीं होती। वहां के नागरिक पाकिस्तानी सरकार और सैनिकों के अत्याचार से त्रस्त हैं, लेकिन उनकी रक्षा के लिए हम कुछ भी नहीं कर पाते, जबकि भारतीय स्टैंड के मुताबिक वे हमारे नागरिक हैं।

ऐसे तो 1947 में पाकिस्तान ने पीओके को हथियाया। 1994 में भारत की संसद ने उसे अपना अभिन्न हिस्सा बताया। लेकिन आज 2017 तक किसी को नहीं मालूम कि पीओके भारत को वापस मिलेगा कैसे? बलूचिस्तान की आज़ादी की बात भी हमने कर तो दी, लेकिन उस दिशा में भी बयान से आगे कोई बात नहीं हो सकी। दरअसल, भारत की सरकारें आज तक पाकिस्तान को लेकर कोई स्पष्ट नीति ही नहीं बना पाई हैं।

भारत में जो भी सरकार आती है, वह पहले पाकिस्तान से दोस्ती की बातें करती है। चाहे वह नरम हिन्दुत्व वाले वाजपेयी की सरकार हो या गरम हिन्दुत्व वाले मोदी की सरकार हो। जबकि अब करीब 70 वर्षों के अनुभव से हमें मालूम हो चुका है कि पाकिस्तान वह रस्सी है, जो जल भी जाए, तो उसकी ऐंठन नहीं जा सकती। पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है, जो इस्लाम के नाम पर आतंकवाद का व्यापार करता है और जिसने अपने ही नागरिकों को गंदगी, गरीबी, जहालत और कट्टरता की आग में झोंक रखा है।

जब हम ऐसा कह रहे हैं तो हम पाकिस्तान के साथ युद्ध की वकालत नहीं कर रहे, बल्कि सिर्फ़ यह कहना चाह रहे हैं कि पाकिस्तान हमारा मित्र नहीं है, न हो सकता है, इस सत्य को हम समझ लें। इसका मतलब यह हुआ कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन है और दुश्मन ही रहेगा, जैसे इजराइल और फिलीस्तीन दुश्मन हैं। फिर सवाल उठेगा कि अगर पाकिस्तान को हमने अपना दुश्मन मान लिया, तो फिर क्या करेंगे? मेरे हिसाब से हमें इसके बाद इन पांच-छह चीज़ों पर ग़ौर करना पड़ेगा-

1. जैसे पाकिस्तान खुलकर पूरी दुनिया में कहता है कि वह कश्मीर के जेहादियों को अपना समर्थन देता रहेगा और वह डंके की चोट पर ऐसा करता भी है। उसी तरह, भारत को भी यह स्पष्ट रुख कायम करना होगा कि वह पीओके, सिंध और बलूचिस्तान के जेहादियों को अपना खुला समर्थन देगा, क्योंकि या तो पाकिस्तान ने वहां अवैध कब्ज़ा किया हुआ है या फिर वह लगातार उन इलाकों में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।

2. जैसे पाकिस्तान भारत में आतंकवादी भेजकर कश्मीर को डिस्टर्ब करने की कोशिश करता है, वैसे हम सिंध, बलूचिस्तान और पीओके में आतंकवादी भेजने की वकालत तो नहीं करते, लेकिन वहां के जेहादियों को खुला राजनीतिक और नैतिक समर्थन देने की वकालत अवश्य करते हैं।

3. पाकिस्तान को पता चलना चाहिए कि वह अधिक से अधिक हमारी छोटी सी कश्मीर घाटी को डिस्टर्ब कर सकता है, लेकिन हम समूचे पाकिस्तान को बेचैन कर सकते हैं। जहां तक कश्मीर घाटी का सवाल है, वहां पर भी सुरक्षा इतनी पुख्ता हो, कि पाकिस्तान की तरफ़ से कोई परिंदा भी पर नहीं मार सके। इसके लिए सुरक्षा बलों को और अधिक अधिकार दिए जाएं।

4. भारत को यह सपना देखना छोड़ देना चाहिए कि पाकिस्तान में कभी स्थिरता आ सकती है या वहां कभी ऐसी लोकतांत्रिक और ताकतवर सरकार कायम हो सकती है, जिसपर सेना, आईएसआई और आतंकवादियों का दखल न हो। धर्म के नाम पर बना कोई भी देश आतंकवाद से मुक्त हो ही नहीं सकता। वहां किसी न किसी रूप में आतंकवाद रहेगा ही। इसलिए भारत को इस बात पर गौर करना चाहिए कि पाकिस्तान का इलाज स्थिरता नहीं, बल्कि अस्थिरता है। उसे इतना अस्थिर होने दिया जाना चाहिए कि वह अपने आप कई खंडों में विखंडित हो जाए।

5. जब पाकिस्तान कई खंडों में विखंडित हो जाएगा, अर्थात पाकिस्तान का अस्तित्व खत्म होकर छोटे-छोटे कुछ देश अस्तित्व में आ जाएंगे, तो वे देश निश्चित रूप से पाकिस्तान के अनुभवों से सबक लेकर धार्मिक कट्टरता का कारोबार छोड़कर अपने नागरिकों के कल्याण के लिए भारत के साथ दोस्ताना रवैया अपनाना चाहेंगे।

6. कुल मिलाकर, भारत को भी घोषित युद्ध की बजाय अघोषित युद्ध की नीति अपनानी होगी, जिसमें पाकिस्तान के साथ दोस्ती कायम करने के दिखावटी उपायों पर निर्भरता कम हो और उसे विखंडित करने की रणनीति पर अधिक काम हो।

और जब हम यह कह रहे हैं तो इसमें यह भी निहित है कि यह न सिर्फ़ भारत के हित में है, बल्कि पाकिस्तान के नागरिकों के भी हित में है। पाकिस्तान के आम नागरिकों से हमें कोई समस्या नहीं है. हमें समस्या उस विचार से है, जिसने धर्म, कट्टरता और आतंकवाद की बुनियाद पर पाकिस्तान जैसे नापाकिस्तान का गठन किया है। उस विचार की हार हो जाए, तो पाकिस्तान के नागरिक भी जीत जाएंगे, जो आज भी भारतीय मुसलमानों की तुलना में अधिक गंदगी, गरीबी और जहालत में जी रहे हैं।

मैं तो यह सोच-सोचकर ही कांप उठता हूं कि वह कैसा देश होगा, जहां स्कूल जाने पर बेटियों को गोली मार दी जाती है या फिर गाना गाने पर किसी गायक की हत्या कर दी जाती है। आज पाकिस्तान में आम मुसलमान असुरक्षित हैं और यह बात दुनिया भर के मुसलमानों को बताई और समझाई जानी चाहिए। पाकिस्तान के भीतर के मुसलमान अधिक खुशहाल हो सकते हैं, अगर वे आधुनिक विचारों को अपनाएं और दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। धार्मिक कट्टरता उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ आतंकवादी बना रही है, जबकि मानवतावादी विचारों को अपनाकर वे इंसान बन सकेंगे।

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