जब गुनाह एक, तो कमलेश तिवारी को जेल, प्रशांत भूषण आज़ाद कैसे?
कमलेश तिवारी और प्रशांत भूषण में क्या अंतर है? कमलेश तिवारी ने पैगम्बर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। प्रशांत भूषण ने कृष्ण के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की है। कोई समझदार आदमी न कमलेश तिवारी की टिप्पणी का समर्थन कर सकता है, न प्रशांत भूषण की टिप्पणी का, क्योंकि दोनों की टिप्पणियों के चरित्र मे कोई अंतर नही है। फिर भी कमलेश तिवारी को जेल हुई। प्रशांत भूषण खुले घूम रहे हैं। क्यों?
क्या इसलिए कि प्रशांत भूषण के विरोध में मालदा और पूर्णिया जैसे जुलूस नहीं निकाले जा रहे? क्या इसलिए कि लोकतंत्र में सिर्फ़ हिंसक लोगों की सुनवाई होगी, सहिष्णु लोगों की सुनवाई नहीं होगी? क्या इसलिए कि प्रशांत भूषण प्रभावशाली हैं, बड़े भारी वकील हैं? क्या इसलिए कि प्रशांत भूषण के पीछे दोगले बुद्धिजीवियों की फ़ौज खड़ी है? क्या इसलिए कि सरकार को डर है कि अगर प्रशांत भूषण पर कार्रवाई की गई तो यह कोर्ट में नहीं टिकेगी? अगर हां, तो क्यों कोर्ट में कमलेश तिवारी पर की गई कार्रवाई टिकेगी और प्रशांत भूषण पर की गई कार्रवाई नहीं टिकेगी?
इन सवालों के जवाब बीजेपी सरकार को भी देने चाहिए। इसलिए देने चाहिए, क्योंकि इस देश में यह तय हो जाना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा क्या होगा? क्या स्वतंत्रता के इस दायरे में विभिन्न धर्मों के देवी-देवताओं की आलोचना या निंदा भी शामिल है? अगर हां, तो कमलेश तिवारी से सरकार को माफ़ी मांगनी चाहिए और उसे हुए नुकसानों के लिए उसके परिवार को मुआवज़ा मिलना चाहिए। अगर नहीं, तो प्रशांत भूषण को अविलंब गिरफ़्तार कर जेल में भेजा जाना चाहिए।
एक देश में एक जैसे मामलों के लिए दो तरह के व्यवहार, दो तरह के कानून कैसे चल सकते हैं भाई?