इस्लाम की छवि बचानी है, तो पाकिस्तान जैसे देशों को ख़त्म करना होगा!
परवेज़ मुशर्रफ़ पाकिस्तान के आर्मी चीफ थे, जो तख्तापलट करके पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। उन्होंने आर्मी चीफ़ रहते हुए भारत के करगिल में हमला किया और राष्ट्रपति रहते भारत की संसद पर हमला करवाया।
जब वह राष्ट्रपति नहीं रहे, तो अक्टूबर 2015 में ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी, हाफिज़ सईद और जलालुद्दीन हक्कानी जैसे दुनिया के कुख्यात आतंकवादियों को खुलकर अपना हीरो बताया, इसके बावजूद कि अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था।
अब उन्होंने एक बार फिर से लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा के आतंकवादियों को देशभक्त बताया है। इससे ज़ाहिर है कि पाकिस्तान की असली दिशा क्या है। वास्तव में वह आतंकवाद को ही अपना धर्म समझता है अथवा वह इस्लाम और आतंकवाद दोनों को एक ही समझता है।
स्वयं आतंकवादियों के सरगना लगते हैं मुशर्रफ़
इसके बाद भी जब दुनिया के अन्य लोग आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ेंगे, तो कई लोग समझाएंगे कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। कई लोग यह भी कहेंगे कि आतंकवाद को किसी राष्ट्र-विशेष से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन ये बातें अब लीपापोती से अधिक कुछ भी नहीं लगतीं।
अन्यथा न लें, परवेज़ मुशर्रफ़ का ट्रैक रिकॉर्ड और उनके कबूलनामों को देखते हुए मुझे लगता है कि वह स्वयं आतंकवादियों के एक बहुत बड़े सरगना रहे हैं और अलग-अलग समय में ओसामा बिन लादेन से लेकर हाफिज़ सईद इत्यादि तक सभी कुख्यात आतंकवादी उनके मोहरे रह चुके हैं।
विखंडन ही पाकिस्तान का एकमात्र इलाज
पाकिस्तान अपनी पैदाइश के वक्त से ही जिस रास्ते पर रहा है, उसका एकमात्र इलाज उसका विखंडन है, वरना वह विश्व, दक्षिण एशिया, भारत और मानवता के लिए ख़तरा बना रहेगा। जिन्ना से लेकर परवेज़ मुशर्रफ़ और नवाज़ शरीफ़ तक उसके भ्रष्ट व आतंकवादी नेताओँ और उनकी गतिविधियों को देखने के बाद उसमें सुधार की उम्मीद समाप्त हो जाती है।
लेकिन पाकिस्तान से जितना ख़तरा विश्व, दक्षिण एशिया, भारत या मानवता को नहीं है, उससे भी कहीं अधिक ख़तरा ख़ुद इस्लाम को है। क्योंकि जब तक पाकिस्तान का अस्तित्व इस रूप में रहेगा, दुनिया में इस्लाम के प्रति लोगों की नफ़रत बढ़ती ही जाएगी, क्योंकि वह इस्लाम के नाम पर ही पैदा हुआ है और इस्लामिक सोच और कानूनों का ही पालन करने का दावा करता रहा है।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं
अब देखिए न, आज (रविवार, 17 दिसंबर 2017) ही पाकिस्तान के क्वेटा में एक चर्च के ऊपर आतंकवादी हमला हुआ है और इस लेख को लिखे जाने तक कम से कम आठ लोगों के मारे जाने की ख़बर थी। मारे गए लोग क्रिसमस से महज एक हफ्ता पहले इस चर्च में प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुए थे।
ईसाई ही नहीं, हिन्दुओँ के साथ भी वहां क्या सुलूक हुए हैं, इसका ताज़ा सबूत प्रसिद्ध कटासराज मंदिर को लेकर पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से मिल जाता है। कटासराज मंदिर समेत देश के ज्यादातर मंदिर “इस्लामिक राष्ट्र” पाकिस्तान में तबाह हो गए और अब वहां के सुप्रीम कोर्ट को चिंता हुई है कि इससे दुनिया में पाकिस्तान की बड़ी बदनामी होगी।
लेकिन “इस्लामिक राष्ट्र” पाकिस्तान में ज़्यादतियों का यह सिलसिला सिर्फ़ हिन्दुओं और ईसाइयों तक ही नहीं रुका है, बल्कि शियाओं और सूफी मुसलमानों तक पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। ज़ाहिर है कि जो मुसलमान “आतंकवादी इस्लाम” को नहीं मानते, “इस्लामिक पाकिस्तान” उन्हें अपना नहीं मानता।
मदरसों में बनाए जा रहे आतंकवादी
पाकिस्तान के मौजूदा आर्मी चीफ तक ने मान लिया है कि वहां के मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे या तो मौलवी बनेंगे या आतंकवादी। मौलवी बनेंगे तो कट्टरता के बीज बोएंगे। आतंकवादी बनेंगे तो बेगुनाहों को मारेंगे। इसलिए जो भी लोग वास्तव में इस्लाम के हितचिंतक और झंडावरदार हैं, उन्हें ही सोचना चाहिए कि पाकिस्तान का विखंडन किस तरह हो और कैसे इस्लाम के नाम पर कायम इस आतंकवादी राज्य का खात्मा हो।
अगर पाकिस्तान जैसे देश इस रूप में विश्व के मानचित्र पर रहे, तो वो दिन दूर नहीं, जब दुनिया के गैर-इस्लामिक देश मुसलमानों के आने-जाने पर पाबंदी लगा देंगे। और यह कोरी कल्पना नहीं, इसकी शुरुआत अमेरिका से हो चुकी है, जहां छह देशों के लोगों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई है। फिर इस तरह के डायलॉग्स किसी काम के नहीं रहेंगे- “माइ नेम इज ख़ान एंड आइ एम नॉट ए टेररिस्ट।” लोग छूटते ही कहेंगे- “हिज नेम इज खान एंड ही इज ए सस्पेक्ट, मे बी ए टेररिस्ट।”
याद रखें, दुनिया में ट्रंप से लेकर मोदी तक इस्लाम के उसी रूप की प्रतिक्रिया में पैदा हुए हैं, पाकिस्तान जिसे फॉलो करता है और जिसे आतंकवाद कहते हैं। यह कहने-सुनने में जितना कड़वा है, उतना ही सच है!
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